रियुनियन
रियुनियन


अभी नाश्ता करके बैठा ही था कि,मोबाईल का वही भक्तिमय हनुमान चालीसा वाला धुन बजने लगा! मुझे भी नहीं पता था, एक वक्त का सबसे बड़ा फ्लर्ट इंसान इतना कैसे बदल गया, शायद ये वक्त का ही तकाजा था, जो मै पुजा-पाठ करने लगा!
ये फोन तो कभी मुझे चैन से रहने नहीं देगा,एक काम का फोन आयेगा नहीं,बस पकाने वालों के हजारों आ जाते हैं,अपने मन में बड़बड़ाते हुये जैसे मैने फोन उठाया! उधर से एक चीर-परिचित आवाज ने दिमाग की सारी तारें हिला दी मेरी !
"हाय! रितेश कैसा है", उधर से शांत और ठहराव युक्त आवाज आयी, थोड़ी देर के लिये मैं विस्मित सा सोचने लगा, आखिर कहा सुनी है ये आवाज!
" ओह... आर यू राज मेहरा फार्म बिहार", अचानक से याद आया मुझे और उसका चेहरा आंखो के सामने घूम गया!
"यस डियर! अंग्रेज़ी झाड़ने कि आदत नहीं गयी तेरी अभी तक", उधर से राज ने चुटकी ली!
" बहुत दिनों बाद याद किया यार बिहारी, नंबर कैसे मिला मेरा तुझे", कहते हुये युहीं मेरे अधरों पर हल्की सी मुस्कान आयी !
"बस यार ये मत पुछ बहुत मशक्कत कि है तेरे नंबर के लिये, काॅलेज क्या छुटी तुने तो रिश्ते ही तोड़ लिये हमसे", राज ने शिकायती लहजे में कहा!
"ऐसा नहीं हैं यार", मैने अपनी सफाई दी!
" अच्छा सुन हमारे प्लस 2(इंटर) के छात्रों का रियुनियन है स्कूल में ,कल ही मेरे इमेल पर मैसेज आया था ,तुझे आना है, और मुझे ना नहीं सुनना है! पार्टी का थीम अपने अनुसार कोई भी बाॅलीवुड ड्रेस है!", राज ने मेरी बात काटते हुये कहा!
"और कौन-कौन आ रहा है", मैने उत्सुकता से पुछा!
"स्मिता तो आ रही है उससे मेरी बात हुई थी", राज ने कहा!
" और अमर वो भी तो था अपने ग्रुप में", मैने याद दिलाया!
"तुझे तो पता है यार वो मुझसे नाराज चल रहा था, अंतिम परीक्षा के बाद से, पर मैने स्मिता से कहा दिया है वो उसको बुला लेगी,पर तुझे आना है बेटा ना आया तो पिटेगा मुझसे, चल यार फोन रखता हुं, अब मिल के बहुत सारी बातें करेंगे, ", राज काफी उत्साहित लग रहा था और हो भी क्यों ना सबसे सफल वही तो था ग्रुप में !
" ओके बाय", मैने कहते हुये फोन रख दिया!
मै तो घर पर ही था कुछ दिन पहले ही नौकरी से रिजायन जो किया था, आराम से सोफे पर बैठ मैं रियुनियन में जाने के फायदे और ना जाने का नुकसान गिनने लगा! मन तो हिलोरें ले रहा था सबसे मिलने के लिये,पर नाकामयाबी औकात भी दिखा रही थी! इसी उधेड़ बुन में मैं कब अतीत के आगोश में चला गया पता नहीं ! दिल्ली के एक स्कूल में चार दोस्तों का ग्रुप था, राज मेहरा, रितेश राज, स्मिता गुप्ता और अमर राजपुत!
राज मेहरा बिहार के एक गरीब परिवार से था पर पढ़ने में अव्वल था, शायद इसलिए उसके माता- पिता ने दिल्ली भेजा था पढ़ने अपना खेत बेचकर और आज डाक्टर के पद पर कार्यरत था और डाक्टर लड़की से ही शादी भी किया था! अमर ग्रुप का सबसे अमीर परिवार बंदा था,दिल्ली से ही था, पढने में औसत था, डाक्टर बनना चाहता था पर बन ना पाया, पर आजकल आयात-निर्यात का बिजनेस करके सौ डाक्टरों से ज्यादा कमाता था (पैसे से ही पैसा बनता है शायद ये बात सच थी दुनिया में,उसके कामयाबी से तो यही लगता था) लव मैरिज किया था उसने किसी विदेशी से!
स्मिता गुप्ता यू.पी. से थी,पर ग्रुप कि सबसे कंजूस बंदी बनिया जो थी, मेरी पहली क्रश, और अभी बैंक में कार्यरत थी, किसी इंजिनियर से शादी कि थी और एक बच्चा भी था उसका शायद! मैं रितेश दिल्ली से ग्रुप का सबसे मस्तीखोर बंदा, पढने में सबसे बेकार, एम. बी.ए. किया था मैने, सबको पता था मैं कुछ नहीं करूंगा और मैने सबको सही भी साबित किया, ना मेरा कैरियर ही सेटल था ना ही पर्सनल लाईफ!
शायद इसलिए मैं अपने ग्रुप से कटकर अलग तन्हाई कि जिंदगी जी रहा था और अपनी असफलताओ का दामन पकड़ा था,पर पता मुझे सबके बारे में था कि कौन क्या कर रहा है लाईफ में स्कूल के ही कुछ सुत्रों से! सब अपने-अपने कपल के साथ आने वाले थे, मैंने मन ही मन सोच लिया था मै नहीं जाऊंगा अपना मजाक बनवाने उनके बीच, पर अभी किसी को मना भी नहीं करूंगा, ये बातें मन में रखुंगा!
फिर एक दिन ऐसे ही मोबाइल मे अपरिचित नंबर से काॅल आया!
मैनें उठाया और कहा, "हैलो,! उधर से हैलो के रुप में एक अधेड़ युवती की मधुर सी आवाज कानों में बिखर गयी, पर मैं उसको पहचान ना पाया!
" अरे बुद्धु अभी भी वैसा है तू, मै स्मिता यार", उधर से वो बिना बादल के बारिश जैसी मेरे पर बरस गयी!
"अरे स्मिता! कैसी हो", मैने अपने मन के उत्साह को दबाते हुये कहा आखिर वो कभी मेरी क्रश जो थी!
" चल पड़े हट! तूझे उस बिहारी डाक्टर ने बताया है कुछ", एक बच्चे कि माँ होने के बावजूद अभी भी एकदम बिंदास थी वो!
"हाँ बताया तो है", मैने कहा!
" हाँ तो मुझे पता है कि तू क्या करने वाला है, ध्यान से सुन ले बेटा मैने अमर से भी बात कि है, वो आ रहा है, जो तु ना आया मतलब हमारे ग्रुप से तेरा जीना-मरना भी छुट जायेगा बता देती हुं", धमकी भरे लहजे में उसने कहा!
"अभी भी नहीं बदली तू बिलकुल वैसी ही है", मैने चुटकी ली!
" बदलुं क्यों, मैं तो अपने हसबैंड को भी बराबर ठोक-पीट के रखती हुं", उसने हंसते हुये कहा!
जो दबे एहसास जग से गये थे स्मिता कि आवाज सुनकर, हसबैंड नाम सुन के दिल टुट सा गया, उसने नहीं पुछा मेरे बीवी के बारे में शायद जैसे उसे पता था, उनको भी मेरे बारे में खबर होगी जैसे मुझे सबके बारे में थी!
"चलो फोन रखती हूँ, मिलते है रियुनियन के दिन, बाय", फोन तो उसने रख दिया पर मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया!
काश हिम्मत करके कह दिया होता यार उस दिन ज्यादा से ज्यादा मना ही करती ना,पर कई बार उसने हिंट तो दिया था, पर मेरे जैसे फंटूश को कोई लड़की पसंद क्यों करेगी यही सोचकर जाने दिया! इसी उहापोह में शाम हो गयी थी, पर अब जाना लगभग 75 परसेंट तय था, क्योंकि धमकी जो मिली थी अपने क्रश से, ये किसी अंडरवर्ल्ड के धमकी से कम नहीं थी क्योंकि स्मिता जो बोलती है करती है ये सबको पता था!
फिर मैने अपनी डायरी खोल के देखी, उसमें अमर का नंबर था, बहुत पुराना नंबर था, मैने सोचा मिला कर देखता हूँ, उठा लिया तो ठीक वरना जाने दुंगा!
ऐसे तो हरदम किस्मत का मारा ही रहा हुं मैं, पर इस बार बार ये जुआ मैं जीत गया! घंटी गयी आवाज आयी उधर से एक गंभीर आवाज आयी, "हैलो"!
मैं थोड़ा सहम गया जो बंदा कभी मेरे पैसे कि कैंटीन से कटिंग चाय पीता था अब वो दिल्ली शहर का नामचीन पैसे वाला हस्ती था! कृष्ण सुदामा की सी जोड़ी थी हमारी!
"हैलो अमर", मैं झिझकते हुये बोला!
" अरे! रितेश कैसा है भाई तू, कहाँ था इतने दिन", उधर से चहकती हुयी आवाज आयी! शायद मेरा आवाज अभी भी वैसा ही थी जो अमर ने झटके में मुझे पता पहचान जो लिया था!अरे ये असंभव कैसे हुआ राजा भोज ने गंगु तेली को कैसे पहचान लिया, अपने आप को कितने ही निम्न उपमाओं से अलंकृत कर दिया मैने उस छन भर में!
"यार! तू रियुनियन में आ रहा है क्या? ", मैने खुद को सहज करते हुये पुछा!
" यार स्मिता ने फोन तो किया था और तुझे तो पता ही है उसकी धमकियाँ पर यार राज मेहरा भी आ रहा है और मुझे उसके चेहरे से नफरत है, तो मैं कन्फर्म नहीं हु यार सहीं बोलु तो", अमर दुविधा में ये बोला!
"पर यार! मैं और स्मिता भी तो होंगें तुम हम दोनों से बात कर लेना! और सब अपने-अपने कपल के साथ आ रहे हैं अच्छा है ना कोई एकदुसरे कि शादी में नहीं गया था, सब एक जगह मिल लेंगे और हमे भी तो तेरी गोरी मेम से मिलने का सौभाग्य मिलेगा, बड़ी तारीफे सुनी है भाभी जी कि", अब मैं धीरे- धीरे खुल रहा था, अमर का अपनापन देखकर!
"ठीक है! डन मिलते है फिर रियुनियन के दिन! अभी थोड़ा बिजी हुं बाद में काॅल करता हूँ तुझे", कहते हुये उधर से अमर ने फोन काट दिया और शुन्यता सी गूंज गयी मेरे कानों में!
आखिर वो दिन आ ही गया मै अकेला था तो सबसे पहले पहुंच गया सफेद पायजामे कुरते में, अपनी हाईट के कारन मैं सिलसिला मुवी का रंगबरसे गाने का अमिताभ का सा लग रहा था!
मैंने मन ही मन सोच लिया था कि कोई नौकरी के बारे में पुछे तो झूठ बोल दुंगा, आखिर सबके बीवी हस
बैंड के सामने इमेज भी तो अच्छी चाहिए थी मुझे और एक झुठ से फर्क भी क्या पड़ता है भला!झिझक थी स्कूल के अंदर जाने में तो मैं कैंपस में ही टहल कर सबका इंतजार करने लगा!
कुछ दस साल ही हुये होंगे यहाँ आये पर लग रहा था सालों बीत गये!कुछ नये क्लासेज बने थे और कैंटीन भी पहले से ज्यादा साफ-सुथरा और व्यवस्थित था! बिल्डिंग हमारे वक्त में पीले रंगो में होती थी, अब ब्लू रंग दिया था इनलोगों ने! काफी कुछ बदल गया था!बहुत से लोग आये जा रहे थे, जिनका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था, कितनो ने तो मुझे देखकर हाय किया पर मुझे पता भी ना था वो कौन है, पर वो मुझे जरूर जानते होंगे! तभी सामने एक हुंडई कार एकदम से आकर रुकी और उसमें से राज और उसकी बीवी निकले!
राज ने बहुत मेंटेन किया था खुद को, कहा गरीबी के कारन तीन-तीन दिन.धोकर वही शर्ट पहनता था और आज देखो साहब ब्रांडेड कपड़ो में मुन्ना भाई एम. एम. बी.एस. का बोमन ईरानी जैसे खड़ा था, पेट थोड़ा निकल गया था,बाल भी उड़ गये थे! मैने बहुत लोगों में देखा है ये पैसे और बाल का कनेक्शन, बाल रहता है तो पैसा नहीं और पैसा रहता है तो बाल नहीं, पर हो सकता है मैं गलत भी होऊ, क्योंकि ये मेरी धारना थी! पर राज को देखकर यही लगा वक्त सबका आता है बस मेहनत करते जाओ!
"नमस्ते भाभी", मैने उसकी बीवी कि ओर देखकर हाथ जोड़ा!
उसकी बीवी भी शक्ल और हाव भाव से डाक्टर ही लग रही थी, उनहीं के जैसा शांत और गंभीर व्यक्तितव था!
" नमस्ते! आप ही है ना रितेश जी बहुत सुना है आपके बारे में इनसे! ये कहते है इस ग्रुप के सबसे बडे़ कामेडियन आप ही थे, कभी आना आप हमारे घर", कहते हुये उसके अधरों पर मुस्कान थी!
साले ने ये क्या इमेज बना दिया मेरा अपनी बीवी के नजरों में,मैनै अंदर से गुस्सा और ओठों पर झुठी मुस्कान लेकर राज कि ओर देखते हुये सोचा!
वो मेरे अंतर्मन कि व्यथा को समझ गया और उसने हंस के मेरे जले पर और नमक रख दिया!
" तू अभी तक वैसे ही दिखता है रितेश यार, डोले-शोले बना लिये है बस", रितेश ने मेरी झेंप मिटाने को मेरे हाथों को पकड़ कर कहा!
तभी हम दोनों को स्मिता अपने हसबैंड के साथ हमारे ओर आते दिखी!
उजले चुड़ीदार में थी वो शायद चांदनी कि श्रीदेवी बनने कि कोशिश कि थी और हसबैंड सुट में था!
अरे ये कितनी मोटी हो गयी है, मैने मन में सोचा, उसको देखकर मेरा उसके तरफ का बचपन वाला आकर्षण जाते रहा और उसका पति तो पुरा कोयला था, उसको देखकर मेरे मन में असीम शांति कि लहर सी दौड़ गयी!
कहीं ना कही मै खुद को जीता हुआ महसूस कर रहा था!
सच में लड़कियां शादी के बाद मोटी और आनाकर्षित हो जाती हैं!मैं ही क्या बुरा था इसके लिये यार जो इसने इस काले भैंसे को चुना!तभी अचानक स्मिता कि तेज आवाज ने मेरी तंद्रा तोड़ी!
"हाय फ्रेन्डस", दुर से चिल्लाते हुये मुझे फिल्म वाली टुनटुन से कम नहीं लगी वो, उसने और उसके हसबैंड ने सबसे हैंड शेक किया!
स्मिता ने कहा, " पार्टी दो राज, ग्रुप में बस तुम ही डाक्टर बने, तुम ही लायक थे आखिर एक बिहारी ने बाजी मार ही लिया"!
"बैंक मैनेजर्स आर नाॅट इवेन बैड", राज ने इंगलिश झाड़ी!
इतने में मैं खुद को बहुत कम महसूस कर रहा था और मै मन ही मन ये सोच रहा था कि काश कुछ ऐसा हो कि धरती फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं या वक्त रूक जाये कि मुझे इनके सवालों जो अब मुझपे आने वाले थे को ना झेलना पडे़!
तभी एक बड़ी चमचमाती राॅयल रायस जिसने सब कि आंखे चौंधिया दी पास आकर रुकी,उसमें से काफी महंगी सुट पहने जिंदगी ना मिलेगी दोबारा वाले रितिक रौशन के गेट- अप में और उसकी विदेशी बीवी रेड सिलकन साड़ी पहने जिसमें उसके शरीर का काफी हिस्सा दिख रहा था निकले!
मेरी तो आंखे ही ठहर गयी उसके बीवी पर ऐसा लग रहा था जैसे स्वर्ग कि कोई अपसरा हो, सच ये जितनी खुबसूरत लड़कियां होती है इनपर तो जैसे अमीर लड़को का एकाधिकार होता है जैसे!
हमारे ग्रुप का सबसे पैसे वाला बंदा था! अमर उतरा और आज उसने मुझे बेइज्जत होने से बचा लिया!
जैसे अमर आया राज के हैंड शेक को इग्नोर करते हुये उसने मेरे, स्मिता, उसके हसबैंड और राज के बीवी से हाथ मिलाया!
स्वभाविक था राज का बुरा लगना!
तभी हम सातों स्कूल के अंदर गये और हमारा ध्यान एक तरफ बैठ कर बातें करने में ज्यादा था!
तभी राज कि बीवी बोली", मुझे लगता है, इन चारों को हमे थोड़ी प्राइवेसी देनी चाहिए आईये हम तीनों स्कूल घुम कर आते हैं!
बाकि के दोनों ने भी इस बात में सहमति जतायी और तीनों वहां से चल दिये!
अब मैं, राज, स्मिता और अमर एक टेबल पर थे!
तभी वही हुआ जिससे मैं इतनी देर से बच रहा था, पर धन्य हो भगवान का कि उन तीनों के बेटर हाॅफ नहीं थे उस वक्त सो झेप कम हुयी मुझे!
"तु क्या कर रहा है रितेश आजकल", अमर के तीर जैसे चुभते सवाल मेरे कानों में पड़े!
" एक्चुअली यार! मै अभी तक सेटल नहीं हुआ लाईफ में, कुछ दिन पहले ही रिजाइन किया है अपनी तीसरी जाॅब से और अगला ढुढ़ रहा हूँ", आखिर हिम्मत करके मैंने सच बोल ही दिया और काफी हलका महसूस करने लगा, अब जिसको जो सोचना है सोचे, मैं ये बोझ और नहीं सह सकता था!
सच बोलना इतना भी मुश्किल नहीं है मैने मन में सोचा!
किसी ने अलग रियेक्ट नहीं किया शायद सबको मेरा हाल पता था, जैसे मुझे उनका पता था!
"सुन मेरे कंपनी मे एक मैनेजर कि पोस्ट खाली है, एम. बी.ए. किया है ना तुने, कल आ जाना इंटरव्यू के लिये", अमर ने अपना कार्ड देते हुये कहा और मै सच था उसने एम. बी.ए. के बारे में जब खुद से कहा मुझे पता चल गया सबको मेरी नाकामयाबी के बारे में पता था!
मैने कार्ड रख लिया!
तभी राज ने अमर के तरफ देखते हुये कहा, " मुझे माफ नहीं करेगा मेरे भाई ,दस साल हो गये इस बात को"!
अमर उठ के जाने को हुआ कि मैने अमर का हाथ पकड़ लिया और कहा उस दिन जो भी हुआ था आज क्लीयर कर लो, अब बहुत हो गया, स्मिता ने भी मेरे बात का समर्थन किया!
" राज बोला, यार देख उस दिन जब तु मुझसे जवाब दिखाने कह रहा था, मजिस्ट्रेट देख रहे थे खिड़की से छुप कर, अगर मैने दिखा दिया होता तो हम दोनों एक्सपेल्ड हो जाते, मुझे पता था तुझे भी साइंस लेना था और मेरे वजह से ही तेरा ये सपना अधूरा रह गया था, पर क्या मुझे माफ नहीं करेगा मेरे दोस्त, मुझे ये बात अंदर से खाये जाती है हरदम, कितने अच्छे दोस्त थे हम, काफी मिस करता हूँ तुझे", राज ने भरी आंखों से अपनी बात रखी!
कहानी ये थी कि फाईनल परीक्षा में दोनों के रोल नंबर आगे पीछे थे! अमर ने कई बार राज कि फीस भरने में मदद कि थी, इसके बदले राज भी अपनी दोस्ती निभाता था और परीक्षा में अमर को जवाब दिखाता था, पर अंतिम परीक्षा में राज नहीं दिखा पाया और अमर फेल हो गया और उसका साइंस लेने का सपना अधुरा रह गया! अमर ने सोचा राज ने उसे धोखा दिया और उस वक्त उसका खून भी गर्म था तो उसने किसी कि ना सुनी और दोनों को बात किये दस साल बीत गये थे!
"इट्स ओके, मुझे ये बात पता नहीं थी राज! साॅरी फोर ओवररिएकटिंग", अमर ने राज के हाथ पर अपना हाथ रखते हुये कहा, वो अब बात को समझ गया था,सारे गिले-शिकवे जाते रहे,पर दिल कि कसक तो जाते-जाते ही जाती है!
" अरे मैं तुझे मोटी बुलाता था तू तो सच में मोटी हो गयी", माहौल कि गंभीरता कम करने के लिये मैने स्मिता कि टांग खिचते हुये थोड़ा मजाक किया!
सब हंस दिये!
"बेटा औरत होना आसान नहीं है इतना, बच्चे कि डिलीवरी का दर्द, घर संभालना और जाॅब भी ,वक्त ही नहीं मिलता कि खुद पर ध्यान दूं और तू क्या समझेगा तूने तो शादी भी नहीं कि अब तक, अब कर ले वरना बच्चें भी नहीं होंगे तेरे", स्मिता ने चुटकी ली!
मैं स्मिता के बेबाकपन का आज भी कायल हो गया था!फिर वो तीनों सामने से आते दिखे!
" आपलोगों का स्कूल बहुत सुंदर है", अमर कि बीवी ने अपने विदेशी लहजे में टूटी-फूटी हिंदी में कहा!
फिर हम सातों मिल कर खूब घूमे और स्कूल बंद होने के बाद भी बहुत सा समय पास वाली पहाड़ी पर बिताया जहाँ हम हरदम स्कूल बंक करके जाया करते थे! ढ़लते सुरज के साथ बहुत सी फोटोज ली!
सच कितना सुंदर वक्त था ना बचपन, काश फिर से वापस आ जाता!