रील बनाम रीयल
रील बनाम रीयल


“ फेनटासटिक सांग ,कमाल का रोमांस। वाह!आकर्षक , शानदार जोड़ी ।कद-काठी दोनों का एक जैसा ।लगता ही नहीं कि दोनों शूटिंग करने आये हैं। ऐसा लग रहा है जैसे इन खूबसूरत वादियों में हनीमून मना रहे हों ।” एक साथ कई आवाजें दर्शक-दीर्घा से आई।
“ अरे... सालों से चल रहा है दोनों में रोमांस। नायक की बेचारी भोली पत्नी परेशान रहती है। वो सुंंदर और गुणी भी है ,पर, नाटी है! हाह..! इसलिए फिल्म के डाइरेक्टर साहिब ने प्रेमिका और पत्नी को एक साथ लेकर यह फिल्म बना रहे हैं ।थियेटर, सिनेमा में काम करने वाले लोगों के लिए प्यार की परिभाषाएं कुछ अलग होती है...! जहाँ, जिससे मिले, दोस्ती हुई और फिर इश्क।पति-पत्नी का रिश्ता मात्र यूज़ एंड थ्रो , हा..हा..हा...।”
दूसरे कोने से फिर एक तेज आवाज आई। ये आवाज़ गर्म सलाखों की तरह मेरे कानों में चुभने लगी । "ओह! हद है !लोग अपना टेंशन दूर करने पिक्चर का जमकर रसास्वादन करते हैं। पर, जैसे ही पटाक्षेप हुआ, गिरगिट की तरह रंग बदलते इन्हें देर नहीं लगती। भिड़ जाते हैं, नायक-नायिका की बखिया उधेड़ने। जैसे खुद दूध के धुले हों ?! "
यही सोचते हुए मैं साथी कलाकार (रोहित) के साथ, भीड़ को चीरते हुए बाहर निकल आयी। सामने पार्किंग में लगी कार की तरफ आगे बढ़ ही रही थी कि अचानक रोहित ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा , ”रुको .. कुछ जरूरी बातें करनी है।”
“ अभी नहीं ... मुझे जल्दी घर पहुँचना है।” अपना हाथ खींचते हुए मैं तेजी से आगे कदम बढायी।
“प्लीज, मेरे वास्ते बस दो मिनट।” रोहित ने विनम्रता से कहा। “
अच्छा.. जल्दी बताओ , क्या कहना है?“
“ मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।” कहते हुए रोहित ने मुझे बाहों में भर लिया।
“ अरे...छोड़ो मुझे ।तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया ! रोहित, रील लाइफ और रीयल लाइफ में बहुत का अंतर होता है । शादी में सिर्फ लड़का -लड़की ही नहीं, दोनों परिवार को भी जुड़ना पड़ता है ।”
“हाँ...सब पता है। मेरे परिवार में मैं हूँ और मेरी पत्नी। हम दोनों में तालमेल नहीं है इसलिए अब वो मेरे साथ नहीं रहती । जब पटरी नहीं... तो साथ रहने से क्या फायदा ?! ”
“ और, मेरे परिवार में ? बताओ, मैं विधवा हूँ, सिर्फ इतना ही पता है ना ? "
“अरे..मैडम , तुम्हारे ड्राईवर से मुझे सारी जानकारी मिल चुकी है। तभी से मैं तुम्हारा दिवाना हूँ। सब पता है , तुम्हारी एक अपाहिज बेटी है... ? उसीके खातिर तुमने एक्टिंग का रास्ता अपनाया ,ताकि उसके इलाज के लिए अधिक पैसा हो सके । है ना? ”रोहित मेरी आँखों में आँखें डालकर, मानो जवाब मांग रहा था। मैं आश्चर्यचकित रोहित को देखती रही और वो अपलक मुझे ......
" एक बात तुम्हें बताना चाहता हूँ , मुझे संतान नहीं चाहिए। हाँ, तुम्हारी बेटी का पिता कहलाना अच्छा लगेगा। अब निर्णय तुम्हें लेना है। चलता हूँ । ”
मैं रोहित को एकटक निहारने लगी। आज वह मर्द कम... देवता अधिक नजर आ रहा था । उसका कंधा थपथपाते हुए मैंने आहिस्ते से कहा , " जाओ, धर्मपत्नी को वापस ले आओ । अपनी पत्नी को छोड़कर, दूसरी स्त्री को अपनाना धर्म विरूद्ध है । रोहित, एक स्त्री का दिल उसके अंदर भी धड़कता होगा!"
इतना सुनते ही रोहित की आँखें नम हो गई। दृढ़ संकल्प लिए वह प्रायश्चित करने के पथ पर अग्रसर हो चला।