Savita Gupta

Tragedy

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Savita Gupta

Tragedy

रेड लाइट

रेड लाइट

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सुबह जब पापाजी प्रतिदिन की भाँति ठीक आठ बजे मॉरनिंग वॉक से नहीं लौटे तो मन चिंतित हो गया ।आशंकाओं के काले बादलों ने मन को घेर लिया जो स्वाभाविक था। बरसों से नित्य सुबह घड़ी की सुई नौ पर और पापाजी द्वार पर हाज़िर।पता नहीं कैसे मैन्टेन करते इतनी वक्त की पाबंदी कभी -कभी तो सचमुच आश्चर्य होता।

रीता ने दिलासा देने के ख़ातिर कहा  कि “आ जाएंगे, कोई दोस्त मिल गया होगा, गप्पें मार रहे होंगे।”

लेकिन विवेक घर के कपड़ों में ही निकल गया पता लगाने।बहुत फ़िक्र करता था।बरसों से नित्यदोनों बाप बेटा नौ के बाद एक घंटे साथ में चाय पीते अख़बार पढ़ते और बीच -बीच में यहाँ वहाँ कीबातें करते। विवेक को चाहें कितना भी आवश्यक कार्य हो वह इस समय को पापाजी के लिएसुरक्षित रखता।


दोपहर तक हर जगह दोस्तों के घर, बाज़ारों के चक्कर लगाने के बाद भी पापाजी का कुछ पता नहीं चला, तो तीन बजे विवेक ने पुलिस थाने में कम्प्लेन लिखवा दिया। दिन भर बिना खाए पिए पापा की तस्वीर दिखा -दिखा कर ढूँढता फिर रहा था ।


पुलिस अपना काम कर रही थी। मोबाइल का लोकेशन शहर की बदनाम गलियों के आस पास का बता रहा था।विवेक उस गली का कभी नाम नहीं सुना था। यहीं पला बढ़ा पर ऐसी भी कोई जगह है, इस शहर में उसे मालूम भी नहीं था।


एक हफ़्ते होने को आए थे, पर पापाजी का कहीं अता पता नहीं चल पा रहा था। विवेक ने सोचाअ पने स्तर से छान बिन कर लेता हूँ।पापाजी का एक फोटो अभी चार दिन पहले ही खींचा था अपने मोबाइल से जब वे राग अपने पोते की पहली कमाई से लाए हुए कुर्ते को पहन कर नाप रहे थे। पिस्ता ग्रीन रंग का कुर्ता जिसपर गहरे हरे रंग की धारियाँ बनी हुई थी। बहुत खिल रहा था उनपर। कितनी शान से फ़ोटो खिंचवाए थे ।पोते के लाए तोहफ़े को पहनकर। वरना मैं जब भी कहता मार्केट चलने तो भड़क जाते कहते “इतने सारे हैं जिन्हें मैं पहन ही नहीं पाता क्या कपड़ों की प्रदर्शनी लगानी है ? व्यर्थ में पैसे बर्बाद मत करो।” मोबाइल में पापा का हँसता हुआ फ़ोटो देख आँखों में अश्रु बूँद छलक उठे।


आज सातवाँ दिन था पापाजी को खोए हुए। सँकरी गलियों से होते हुए उस गुमनाम, बदनाम अंधेरी गली में पहुँच गया। जहाँ दिन में भी चका चौंध था।छोटे- छोटे चाइनीज़ बल्ब की लड़ियाँ जलती बुझती नाच रही थी ।दोनों तरफ़ कतार से बने कमरे जिन पर बदरंग से अलग-अलग रंग के पर्दे लटके हुए थे।हर कमरे के बाहर मद्धिम लाइट जल रही थी और हर कमरे के सामने नाबालिग, जवान, अधेड़ महिलाएँ खड़ी थी। कोई जींस टॉप में तो, कोई भद्दी अंग दिखाऊ वस्त्रों में तो कोई साड़ी के पल्लू से अपनी चर्बियों को छुपाती ।चेहरे पर सस्ते भड़काऊ मेकअप लगाए, ओठ को गाढ़े रंग से रंग कर गालों पर लाली और आँखों को काजल से सजाए ख़ूबसूरत दिखने की कोशिश में …कुछ तो वाक़ई बेहद खूबसूरत थीं । सभी अपने -अपने कमरे के सामने खड़े होकर विभिन्न तरह के सस्ते हावभाव, इशारे से मुझे ग्राहक समझ कर रिझाने बुलाने की होड़ करने लगी।कभी साड़ी का पल्लू गिराकर भद्दा इशारा करती। कोई कहती दो सौ लूँगी, कोई सौ लूँगी …आ जा हीरो, मेरे राजा, माई लव न जाने कौन -कौन से नाम से मुझे पुकार रही थी।

उन्हें देख प्यार तो दूर दया, करुणा के भाव हृदय में  उठ रहे थे। एक लगभग साठ साल की  महिला ने हाथ पकड़ लिया और गिड़गिड़ाते हुए कहने लगी, ”ओ, बाबू पंद्रह दिनों से कोई नहीं आया मेरे पास, दस रूपया  ही दे देना ।आओ चलो कमरे में…”अंदर तक हिल गया मैं मानो बिजली गिर गई हो मेरे तन बदन पर…।माँ समान उस महिला पर पाँच सौ का एक नोट फेंक कर दौड़ते हुए कुछ दूर एक पान की गुमटी पर बाहर रखे एक बेंच पर हताश होकर बैठ गया।

क्या बनाऊँ साहब मीठा लोगे या जर्दा वाला लोगे? पान वाले ने मुझसे पूछा उसकी मुस्कुराहट कुछ और ही बयां कर रही थी ।मैंने ना में सर हिला दिया और आगे बढ़ गया फिर न जाने मन में क्या आया पलट कर उसे पापाजी की तस्वीर दिखा कर उससे अनमने ढंग से पूछा “क्या तुमने इन्हें देखा है?

अरे, ये तो मास्टर साब हैं। कुछ दिनों पहले सुबह -सुबह रोज़ की तरह बच्चों को पढ़ा रहे थे कि अचानक बेहोश हो गए। अभी तक होश नहीं आया है।हम सब चंदा करके सदर अस्पताल में भर्ती करवा दिए हैं।अब हमें उनका कोई पता भी तो नहीं पता था  और न उनके पास फ़ोन ही था कि कोई नंबर पता चलता।

“ क्या सच? कैसे? कहाँ हैं? जल्दी मुझे उनके पास ले चलो।” एक साथ मैंने कई प्रश्न दाग दिए।

रास्ते में पान वाले ने बताया कि उन रेड लाइट वाली महिलाओं के बच्चों को मुफ़्त में ये सज्जन रोज़ पढ़ाया करते थे।सारे बच्चे पास में बने एक कमरे में आ जाते। उस कमरे का किराया भी वही सज्जन पुरुष देते थे। भगवान उनकी रक्षा  करें ।

अस्पताल में मुख पर कई पाइप से घिरे बेहोश पड़े पापा को देख मैं लिपट कर रोने लगा।


आज सात महीने बाद डॉक्टरों ने सारे पाइप निकाल दिए और बोले “कब तक मशीन के सहारे ज़िंदा रखोगे पापा को…”और तीन घंटे बाद ही पापा को डेड डिक्लेयर कर दिया डॉक्टरों ने।

पापा के साथ वो राज भी चला गया कि आख़िर क्यों पापा ने उन बच्चों को ही पढ़ाने के विषय में सोचा।



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