राखी नहीं रक्षा कवच चाहिए
राखी नहीं रक्षा कवच चाहिए


उसके अंदर का उठता शोर बाहर के शोर से परास्त हुए जा रहा था।कब थमेगा यह शोर।एक माह हो गया इस शोर से लड़ते हुए और स्वयं से जूझते हुए।
दादी कहा करती," धीरे चला कर छोरी, हिरनी सी दौड़ती चली जाती है।" और वह कहती, "मैं दौड़ती नहीं, उड़ती हूं दादी।"वह जब नेहा तेज स्कूटी चलाती तब अपने लिए उड़न परी से कम ना समझती।और वह ऐसे ही उड़ती ही चली जा रही थी एक दिन , जब सामने आती तेज कार से उसकी स्कूटी को भयंकर टक्कर लग गयी।जान तो बच गई थी पर जो हुआ वह अब उसे स्वीकार नहीं था।अभी तो उसने आसमान को छूने की चाहत जगाई थी कि वह परकटी सी जमीन पर आ गिरी थी।हवा से बात करती हुई वह सामने आती कार को ना देख पाई और तेजी से उस में जा घुसी।नियति ने उससे एक पैर छीन लिया था। आधा चेहरा रगड़ खाकर बहुत क्षतिग्रस्त हो गया था।उसका एक्सीडेंट शहर के प्रसिद्ध आटा व्यापारी सतीश जी की कार से हुआ था।यह जानते हुए भी कि गलती पूरी नेहा की थी, सतीश जी के कहने पर उनके ड्राइवर ने तुरंत कार रोक उसे हॉस्पिटल पहुंचाया था।
नेहा के पिता एक साधारण मिल कर्मचारी थे और एकमात्र बेटी की खुशी में ही अपनी खुशियां तलाशते थे।पत्नी के गुजर जाने के बाद घर पर एक बूढ़ी मां और बेटी के साथ में अपना जीवन गुजार रहे थे।बेहद लाडली होने की वजह से नेहा के जिद पर उसके पिता ने उसे बड़ी मुश्किल से इंतजाम करके स्कूटी दिलाई थी।उन्हें क्या पता था कि स्कूटी उनकी सारी खुशियां छीन लेगी।अस्पताल पहुंचाने से लेकर उसके ऑपरेशन का पूरा खर्चा सतीश जी ने उठाया था ।चिकित्सीय सुविधा दिलाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने नेहा को।
सतीश जी ना केवल एक कामयाब व्यवसाई थे बल्कि एक प्रमुख राजनीतिक दल के सदस्य भी थे।उनका सौम्य स्वभाव उनकी प्रगति में सहायक था।
राजनीतिक उभरती हुई उनकी शख्सियत सबकी आंखों में चुभती थी और अब तो कारण भी बन गया था उन्हें परास्त करने का।
जितने दिन नेहा अस्पताल में भर्ती रही कोई ना कोई विवाद का विषय बनता रहा । कभी मीडिया वाले और कभी कोई विरोधी दल कर्मी नेहा के परिवार को उकसाने चला आता।अपनी लड़की की गलती मान कर नेहा के पिता ने कोई भी पुलिस रिपोर्ट नहीं की थी पर
विरोधी दल उन्हें बार-बार सतीश जी के विरुद्ध कदम उठाने को उत्तेजित कर रहा था।
नेहा बेचारी उसकी तो दुनिया ही बदल चुकी थी। युवावस्था के रथ पर तो उसने अभी सवारी करी थी कि रथ भरभरा कर गिर गया था ।विरोधी दल का महिला संगठन उसे सामने आकर सतीश जी के खिलाफ बयान देने को कह रहा था।असहनीय दर्द से परेशान नेहा को यह शोर भी असहनीय हो गया था।
पूरे एक महीने वह अस्पताल रही इस बीच सतीश जी के परिवार की ममता ने उसका मन भिगो दिया था।सतीश जी की मां से लेकर उनकी पत्नी तक नेहा के हाल चाल पूछने आ चुकी थी।
नेहा के घर तक भी सतीश जी ने ही उसको अस्पताल से डिस्चार्ज के बाद पहुंचाया।घर आकर नेहा का सब्र टूट गया। जिस चेहरे पर उसे नाज था वह आज अपनी आभा खो बैठा था और उसका एक पैर क्या गया उसे लगा जैसे उसकी आत्मा ही निकल गई थी ।पूरी रात उसने आंसुओं में काटी। बराबर लेटी दादी उसका सिर सहलाती रही लेकिन उसके मन के ताप को शांति कहां।पूरी रात सही से ना सो पाने के कारण नेहा देर तक सोती रही।
अचानक शोरगुल से उसकी नींद खुली। देखा दिन काफी बढ़ चला था और बाहर लोगों की भीड़ भी।उसका सिर बहुत भारी था चाह कर भी वह बढ़ते शोर से सो नहीं पा रही थी।उसने कराहते हुए पिता को आवाज़ दी।
पिता दौड़ के उसके पास आए , उनसे नेहा को पता चला बाहर एक युवा लड़कों का दल आया हुआ था।बार-बार एक ही बात से परेशान नेहा अचानक उठ बैठी और वह बोली ,"पापा मुझे आप बाहर ले चलो।"नेहा के चेहरे को बहुत गंभीर देख कर उसके पिता और दादी सहारे से उसको बाहर ले गए।
उसे बाहर देखकर भीड़ अब शांत थी।नेहा के पिता की तरफ मुंह करके कुछ लोगों ने कहा, "हम आपकी मदद करने आए हैं।"नेहा ने बहुत हल्के स्वर में कहा ,"मुझे किसी की कोई मदद नहीं चाहिए आप लोग कृपया अपने घर जाइए।"
क कार्यकर्ता बहुत जोश में जोर से बोला ,"चिंता मत करो बहन हम सब भाई तुम्हारे साथ हैं हमें राखी बांध सतीश जी पर मुकदमा दायर करो"..... सभी युवा लड़के सतीश जी के खिलाफ नारे लगाने लगे।नेहा ने भीड़ से कहा," अरे मुकदमा तो तुम लोगों पर दायर होना चाहिए बेवजह बतंगड़ बनाने के लिए सतीश जी के रक्षा कवच के आगे तुम्हारी राखियां किसी काम की नहीं है।"अब शोर थम गया नेहा के रक्षा कवच को देखकर सब लज्जित थे।