प्यार

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अपने विश्वस्त गुप्तचर से प्राप्त सूचना ने औरंगजेब को क्रोधित कर दिया था। तड़प कर पूछा उसने-

"सच कह रहे हो तुम ? तुम्हें मालूम तो है न कि तुम क्या कह रहे हो ?"

"जी हुजूर ! जो मेरी बात जरा सी भी झूठे निकले तो आप मुझे सूली पर चढ़ा दें।"

"लेकिन नामुमकिन है यह।" 

औरंगजेब बड़बड़ाया।

"मैं इस पर भरोसा नहीं कर सकता। तुम्हें अपनी बात सच साबित करनी होगी।"

औरंगजेब बोला।

"मैं तैयार हूं हुजूर !" 

 गुप्तचर चला गया। औरंगजेब अंगारों पर लोटना रहा। उसी रात गुप्तचर फिर आया और शहजादा औरंगजेब को अपनी वह विशेष सूचना दे गया।

 अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ औरंगजेब जनानखाने की ओर चल पड़ा।

जनानखाने के एक भाग में शहंशाह शाहजहां और उनकी बेगमें रहती थीं। दूसरी ओर वह भाग था जहां उनकी दोनो पुत्रियों जहाँनारा और रोशन आरा का निवास था। दोनों अविवाहित ठित क्योंकि औरंगजेब उनके लिये अपने जैसा कट्टर , हृदयहीन और निर्मम वर नहीं ढूँढ़ सका था जो उसके साथ मिलकर मुल्ले मौलवियों के इशारों पर नाच सके और धर्म के नाम पर अत्याचार कर सके। सच तो यह था कि वह सपनी बहनों का विवाह ही नहीं करना चाहता था। वे दोनों पिता शाहजहाँ की हमदर्द ठित। यह बात औरंगजेब को सख्त नापसंद थी। इसलिये भी उसने मजहब के नाम पर उन पर तमाम बंदिशें लगा रखी थीं।

परन्तु प्रेम तो पागलपन का ही दूसरा नाम है। जिसे प्यार की लगन लग गयी हो वह कब किसी बंदिश की परवाह करता है ? उसे तो मुहब्बत और महबूब के सिवा कुछ और सूझता ही नहीं। मुहब्बत के लिये वह बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिये हमेशा तैयार रहता है।

औरंगजेब रात के घने अंधकार में रोशन आरा के महल में पहुंचा और धड़धड़ाता हुआ महल में प्रवेश कर गया।

 उस समय रोशन आरा अपने प्रेमी महमूद के साथ थी प्रणय वार्ता कर रही थी।

 महमूद शहंशाह की सेवा का एक मामूली सैनिक था जो रोशन आरा से सच्चा प्यार करता था। दोनों छुप-छुप कर मिला करते थे। औरंगजेब का आगमन अप्रत्याशित था फिर भी किसी प्रकार उसकी एक प्रिय दासी ने उसे शहजादे के आगमन की सूचना दे दी।

 भागने का समय न था। रोशनारा घबरा गई। उसे कोई भी सुरक्षित स्थान न सूझा तो उसने महमूद को गुसल के लिए चूल्हे पर रखी पानी गर्म करने वाले हंडे में छुप जाने के लिये कहा। हंडे में पानी भरा था। दिसम्बर का महीना। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी।

हंडे का पानी बर्फ़ की तरह ठंडा था। महमूद ने एक बार अपनी प्रेयसी की अनुनय भरी आंखों की ओर देखा।

"मेरी इज़्ज़त अब आपके हाथ में है। मेरी मुहब्बत की लाज रखना।"

रोशनआरा हाथ जोड़ कर फुसफुसाई। कोई और उपाय न था। महमूद उस ठंडी रात में ठंडे पानी में के हंडे में छुप कर बैठ गया।

औरंगजेब ने पूरे महल को खंगाल डाला परंतु कहीं उसे महमूद या कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं मिला। तब उसने महल की सेविकाओं को एकत्र करके पूछा -

"कहां है वह जवान जो शहजादी से मिलने आया था ? सच सच बता दो वरना सबके सिर कलम कर दूंगा।"

 औरंगजेब की क्रूरता से सभी अवगत थी किंतु किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। औरंगजेब के धमकाने पर एक दासी ने उंगली से पानी के हंडे की ओर संकेत कर दिया।

"ओह। आपा जान ! लगता है किसी ने हमें गलत खबर दी थी। माफ़ कर दीजिये हमें।"

वह कुटिलता से मुस्कुरा कर बोला। फिर सैनिकों को आदेश दिया -

"खड़े क्यों हो ? हंडे में पानी भरा है। सुबह होने में थोड़ी ही देर बाकी है। तुम लोग शहजादी के नहाने के लिए पानी गर्म कर दो।"

 उसके कहने पर सैनिकों ने हंडे के नीचे ठंडे पड़े चूल्हे में आग जला दी।

 शहजादा तब तक वहीं खड़ा रहा जब तक पानी उबलने न लगा। और फिर पाँव पटकता हुआ वहाँ से चला गया।

 उसके जाने के बाद शहजादी भाग कर हंडे के पास पहुंची। ढक्कन हटा कर देखा। महमूद उबल कर मर चुका था। उसने अपने दांत भींच रखे थे। अपनी पाक़ मुहब्बत को रुसवाई से बचाने के लिए मुंह से एक उफ़ भी निकाले बिना उसने अपनी जान दे दी थी।

शहजादी मूर्छित होकर गिर पड़ी। इतिहास गवाह है, शहजादी रोशन आरा ने फिर जीवन भर विवाह नहीं किया और जब तक जीवित रही उसने महलसरा से बाहर पांव नहीं रखा।


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