प्यार में प्रेमिका का त्याग
प्यार में प्रेमिका का त्याग
यूं! तो प्यार के किस्से काफी सुने - जाने होंगे लेकिन प्यार भी ऐसे आसानी से नहीं मिलता। प्यार का रंग लाल माना जाता है लेकिन लाल रंग के भी कई मायने होते हैं। बस नजरिये की बात है- प्यार करना , प्यार होना आसान बात है, लेकिन उसे निभाना बड़ी ही समझदारी का काम होता है। प्यार हमेशा बलिदान, त्याग, समर्पण, सहयोग, संयम, समझदारी मांगता है। प्यार तो करना आसान होता है लेकिन उसे निभाना बड़ा ही मुश्किल काम होता है। हर रिश्ते में सिर्फ प्यार से काम नहीं चलता, प्यार के साथ-साथ समझदारी ,संयम ,सहयोग ,समर्पण ना हो तो रिश्ता निभाना कठिन हो जाता है। ऐसे ही राजू और रानी का प्यार था ।दोनों बचपन से एक साथ ही पड़ोस में रहते थे। साथ में रहना, खाना, पढ़ना, खेलना सब कुछ था। धीरे-धीरे दोनों बड़े हो गए स्कूल खत्म हो गया दोनों ने कॉलेज में भी एक साथ एडमिशन ले लिया परिवार वालों को भी कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि दोनों बचपन से ही साथ में रहते थे तो घर वाले भी मान गये वो लोग सोचते थे कि चलो साथ में हैं तो सही है। कॉलेज के दिनों में भी सब बढ़िया चल रहा था दोनों पढ़ने में भी तेज थे । फिर उन्हें प्यार हो गया, पता ही नहीं चला कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई और दोनों एक दूसरे के साथ रहने लगे, दोनों की जोड़ी कॉलेज में बड़ी फेमस हो गई थी । कुछ दिन बाद परिवार वालों को भी पता चल गया कि ये दोनों आपस में प्यार करने लगे हैं सब ने समझाया कि पहले पढ़ाई पूरी कर लो फिर प्यार -शादी में पड़ना। लेकिन वो दोनों लोग नहीं माने और मरने- जीने की बातें करने लगे तो परिवार वाले भी इन दोनों की शादी के लिए मान गए और शादी करवा दी। अब दोनों लोग एक साथ रहने लगे और पढ़ाई करने लगे और किसी तरह दोनों ने पढ़ाई पूरी कर ली। सब सही चल रहा था लोगों को लगता था कि इन लोगों का प्यार बहुत ही गहरा है और न जाने ये लोग प्यार में क्या -क्या करेंगे । लोग इनके प्यार की मिसालें देते रहते, कहते देखो- दोनों का प्यार कितना गहरा है इन दोनों का प्यार परवान चढ़ ही गया । कुछ दिनों के बाद इन दोनों के कॉलेज के दिन खत्म हो गए और रानी की नौकरी सरकारी दफ्तर में किसी आफिसर के रूप में लग गई और राजू की नौकरी किसी निजी कंपनी में छोटे से पद पर लग गई। कुछ दिनों तक सब सही था लेकिन कुछ दिनों के बाद भी राजू की नौकरी ऐसे ही निजी कंपनी में छोटी सी नौकरी रही। रानी को अब ये देखकर बेकार लगता उसे लगने लगा कि मेरा पति छोटा सा कर्मचारी है और मैं एक बड़ी सरकारी अफसर हूं लोग , दोस्त , यार , चिढ़ाते हुए कहते कि “क्या यार तुम्हारा पति क्या करता है ? अपने यहां राजू को भी रखवा लो कुछ तो अपने पावर का असर दिखाओ।” ये सुन कर रानी को बड़ा बेकार लगता था और वह राजू को हमेशा समझाती कि तुम कुछ बड़ा कर लो और तुम भी सरकारी आफिसर बनने कि कोशिश तो करो, लेकिन राजू हमेशा हंसी में टाल दिया करता। कुछ दिनों बाद उनके यहां एक बेटी का जन्म हुआ था कुछ दिन तो ऐसे बीते गये और कुछ दिन बाद यह लड़ाई झगड़े में तब्दील हो गयी । राजू और रानी का हमेशा किसी न किसी बात पर झगड़ा हुआ करता था। रानी कहती – तुम अच्छी नौकरी ढूंढने की कोशिश तो करो और कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ लो। राजू हंसकर जवाब दिया करता “क्यों तुम्हें शर्म आती है क्या कि तुम्हारा पति छोटी सी कंपनी का कर्मचारी है” और वहीं बात खत्म हो जाती। फिर कुछ दिन बाद किसी बात को लेकर फिर झगड़ा हुआ तो रानी ने कहा अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं अपनी मां के यहां अपनी बेटी को लेकर यहां से चली जाउंगी क्योंकि इस सब से बेटी पर बुरा असर पड़ रहा है । वह मानसिक रूप से परेशान हो रही है, बच्चा परेशान हो मैं ऐसा नहीं देख सकती। वह राजू को हमेशा समझाती रहती लेकिन राजू समझने को तैयार ही नहीं था फिर रानी ने सोचा कि क्यों न इसे इसी की भाषा में समझाया जाय क्योंकि रानी को भी समझ नहीं आ रहा था कि घर का माहौल कैसे ठीक किया जाय क्योंकि वह हर तरह से राजू को समझा कर हार चुकी थी। एक दिन फिर किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ और रानी अपनी बेटी को लेकर अपनी मां के यहां चली गई और मां के यहां रहने लगी। और राजू से कहा या तो तुम कुछ अच्छा काम ढूंढ़ो, या तो मैं भी अपनी नौकरी छोड़ दूंगी। लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि यही दोनों प्यार करने वाले लोग हैं जो मरने- जीने की बातें करते थे जो अब मरने- मारने की बातें कर रहे हैं । रानी की मां ने दो-तीन दिन बाद समझाकर वापस भेज दिया और कहा - जाओ अपने पति के साथ रहो, तब तो तुम उसी के साथ रहना चाहती थी अब क्या हुआ? जाओ अपने पति के साथ रहो। और समझदारी से कुछ रास्ता निकालो। जिससे तुम्हारी गृहस्थी और बच्ची दोनों सही रहे। सोचो और समझने की कोशिश करो की समस्या कहां है। फिर से रानी कुछ दिनों बाद वापस अपने मां के यहां से राजू के पास आ गई और राजू ने फिर उसे चिढ़ाया क्यों तुम वापस आ गई मैं छोटा सा कर्मचारी हूं तो तुम्हें शर्म आती है न। मैं वहीं काम करूंगा जैसा भी है, यही है । कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर रानी ने बहुत सोचा और अपनी नौकरी सच में छोड़ दी और राजू को कहा -तुम जो करना चाहते हो वही करो मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी मैं अपनी बेटी को परेशान नहीं देख सकती। और मैं अपना घर बिखरने नहीं दे सकती। जो तुम कमाओगे उसी से गुजारा होगा । राजू के झगड़ों , तानों से तंग आकर रानी आखिरकार नौकरी को छोड़ ही देती है और सोचती है जो होगा देखा जायेगा। कुछ दिनों तक राजू मजाक समझता रहा उसके बाद उसे समझ में आया सच में इसने नौकरी छोड़ दी और मुझे छोटा महसूस ना हो इसलिए उसने यह त्याग कर दिया राजू को भी बातें समझ में आई और वह भी मेहनत करके एक बड़ी कंपनी में बड़ा अधिकारी बन गया और दोनों एक साथ फिर हंसी खुशी रहने लगे । कहते हैं जहां प्यार है वहीं त्याग है, जहां त्याग है वहीं समर्पण है , जहां समर्पण वहीं समझदारी है , जहां समझदारी है वहीं प्यार है। इसीलिए प्यार करना आसान है उसे निभाना कठिन है।

