STORYMIRROR

savitri garg

Abstract Drama Others

3  

savitri garg

Abstract Drama Others

## बचपन के खेल

## बचपन के खेल

3 mins
11


 सबका बचपन एक जैसा ही होता है। कोई भी हो, चाहे जिस भी उम्र का हो ,वह एक बार जरूर चाहता है कि काश! उसका बचपन एक बार जरूर वापस आए। चाहे पिछली पीढ़ी हो या आने वाली पीढ़ी हो बचपन तो सबका एक ही जैसे होता है। और बचपन के खेल भी एक जैसे ही होते हैं जैसे - कबड्डी, रस्सी- कूद, खो-खो, चिड़िया- बल्ला , क्रिकेट- मैच, पेड़ों में झूला डालकर झूला- झूलना , सांप- सीढ़ी, कौड़ी ,चौपढ बचपन के खेल तो बहुत सारे हैं, हर जगह अलग-अलग तरह से खेले जाते हैं जैसे हमारे समय में एक खेल था कि –
 दो लोग मिलकर फूल लेकर, एक तख्ती से इधर से मारता, तो दूसरा दूसरे ओर से मारता था। खेल का नियम यह था कि जिधर फूल गिरेगा उधर वाले के ऊपर नंबर चढते जाएंगे इसलिए बहुत बचना पड़ता था यह ध्यान रखा जाता था कि फूल गिरने न पाए नहीं तो हार हो जाएगी।
(चिंगा) मार्बल खेलते थे। उसके दो तरह के गेम थे एक तो कई लोग मिलकर खेलते थे और उसमें दम लगाया जाता था जो मार ले उसके सारे मार्बल ( चिंगा) हो जाते थे । और दूसरे वाले खेल में एक जीतने वाला आदमी, हारने वाले आदमी को ऑर्डर देता था कि मार्बल( चिंगा )को उसे हाथ के टखने से गड्ढे तक ले जाना होगा तभी हारने वाले खिलाड़ी का दांव उतरता था।
 रस्सी- कूद, भाला- फेंक ऐसे बहुत से खेल थे जो हम सब मिल-जुलकर बचपन में खेलते थे। बचपन में कोई भी भेदभाव नहीं रहता था लड़कियों के कुछ अलग से भी खेल थे जैसे रस्सी- कूद, खो- खो आदि।बचपन में हम सब मोहल्ले के बच्चे स्कूल से आकर इकट्ठा होकर शाम में जब तक अंधेरा ना हो जाए, या तो जब तक घर का कोई सदस्य बुलाने न आए तब तक खेल चलते थे।कभी- कभी तो मार भी ही पड़ती थी कि अब कब तक खेलोगे, जब तक खेलते- खेलते लड़ाई ना हो जाए , फिर सब मिलकर उस लड़ाई को खत्म करके , जिनकी लड़ाई हो फिर से उनकी दोस्ती कराके, फिर हम सब अपने - अपने घर में वापस चले जाते थे। फिर अगले दिन शाम को सब वापस आकर आपस में मिलजुल कर एक साथ खेलते थे ।अगले दिन को शाम होते- होते सब की लड़ाई खत्म हो जाती थी फिर सब मिलकर एक साथ खेलते थे कोई बैर नहीं होता था। बचपन की बात ही कुछ और होती है। हमारे बचपन में बाहर के खेल अलग और अंदर के खेल अलग- अलग होते थे तरह-तरह के खेल लूडो ,सांप सीढ़ी,शतरंज आदि खेलते थे । कुछ शारीरिक रूप से खेले जाने वाले खेल होते थे और कुछ मानसिक रूप से खेले जाने वाले खेल होते थे इसलिए सब तरह का खेल खेलना जरुरी रहता था, शारीरिक- मानसिक विकास के लिए ।अब समय बदला और खेल खेलने के तरीके भी बदल गए। जो खेल हम लोग घर के बाहर निकल कर चार दोस्तों के साथ मिलकर शारीरिक रूप से खेल खेलते थे, खेल तो वही है, बचपन भी वही है, लेकिन खेल खेलने के तरीके बदल गए, वही खेल अब बच्चे मोबाइल कंप्यूटर के जरिए अकेले ही बैठकर खेल लेते हैं और आजकल तो इंटरनेट के जमाने में दूर-दूर बैठे दोस्त भी एक दूसरे के साथ कंप्यूटर के जरिए कंप्यूटर में गेम खेल लेते हैं। जैसे खेल खेलने का तरीका बदला, आनंद लेने का तरीका बदल गया। उसी तरह शारीरिक, मानसिक बदलाव भी हुआ और इससे बहुत कष्ट भी होता है, कंप्यूटर के जरिए आंख खराब होती है , बैठे-बैठे मोटापा आदि भी बढ़ता है


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract