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savitri garg

Abstract Drama Inspirational

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savitri garg

Abstract Drama Inspirational

एक दिन सखियों संग

एक दिन सखियों संग

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 अचानक बड़े दिनों के बाद मां के घर जाना हुआ। मां के घर पर यूं! ही मेरी एक बचपन की सहेली से मुलाकात हुई। हम दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे दोनों बहुत बदल चुके थे, परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियों में हम दोनों को कभी एक दूसरे से मिलने का मौका ही नहीं मिला। जब वह अपनी मां के घर पर आती तो मैं नहीं जा पाती थी और जब मैं अपनी मां के घर जाती थी तो वह नहीं आ पाती थी। इस बार कई सालों के बाद ऐसा संयोग बना कि हम दोनों सहेलियां एक साथ अपनी-अपनी मां के घर में आईं थीं । बड़े ही दिनों के बाद मिले थे इसलिए हम दोनों बहुत ही बदल गए थे स्वाभाव से, रहन-सहन, व्यवहार से, सब बदल चुका था। व्यवहार में बस गंभीरता थी, जो बचपन की बातें थीं वह सब पीछे छूट गई थीं। लग ही नहीं रहा था कि हम दोनों बचपन में सहेलियां थीं और कई वर्षों तक एक साथ रही थीं। हम दोनों एक दूसरे को देख कर बार-बार बस यही बोल रहे थे कि तुम कितनी बदल गई हो। मैं बोली कि लग ही नहीं रही कि तुम वही राधा हो और वह मुझे बोल रही थी कि तुम कितनी बदल गई हो लग ही नहीं रही कि तुम श्यामा हो। हम दोनों बहुत देर तक यही एक दूसरे को बोलते रहे और यही बोल - बोल कर बहुत देर तक हंसते रहे, इसी तरह काफी समय बीत गया और शाम हो गई फिर उसने (राधा) बातों- बातों में बताया कि तारा और चंदा भी आई हुई हैं।

 मुझे तो याद ही नहीं था। मैं बोली कौन तारा और चंदा ? फिर उसने हंस के बताया कि अरे ! तुम्हें नहीं याद है क्या? जिनको हम दोनों परीक्षा में खूब नकल कराया करते , परीक्षा में पास करवाया करते थे, फिर उनसे बदले में अपना काम करवाया करते थे और कहते थे कि अगर तुम काम नहीं करोगी तो इस बार तुम लोगों कि हम लोग मदद नहीं करेंगे, इस चक्कर में बेचारी हमेशा हम लोगों का काम किया करती थीं। फिर राधा हंसी और बोली -वह भी क्या दिन थे! हम लोग कितने बदमाश, शैतान हुआ करते थे न , कैसे लोगों को सताया करते थे और कितनी मस्ती किया करते थे । वह लोग भी कैसे हम लोगों का काम खुशी-खुशी किया करती थीं और कभी बुरा नहीं मानती थीं। फिर मुझे भी याद आया अच्छा वो! बोलकर मैं रुक गई और अपने स्कूल के दिनों में हम खो गए।

फिर राधा ने कहा क्यों ना उन लोगों को भी बुलाया जाये और एक जगह बैठकर सब बातें करते हैं और बचपन के गुजरे हुए पल को याद करके जीते हैं ऐसी जगह चलते हैं जहां कोई भी जवाबदारी और परेशानी ना हो सिर्फ बचपन और बचपन की बातें हों ।मैं भी तैयार हो गई और हम दोनों ने एक जगह चुनी और वहां पर उन दोनों को भी बुलाया और वो लोग भी बड़े ही प्यार से मिलने आई और हम चारो सहेलियों ने खूब मस्ती -मजाक की । हम सब एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे, हमारी खुशी का ठिकाना न था। ऐसा लग रहा था कि हम सब किसी नई दुनिया में प्रवेश कर गये हो। हम खूब यादें ताजा की और अपनी नई ,पुरानी बातों को खूब याद भी किया, स्कूल की बातें ,टिफिन की बातें, जो बातें उस समय बुरी लगती थीं उन बातों पर अब हंसी आ रही थी और वही अपनी-अपनी बातें, अपने बच्चों में वही बचपना देखकर एक दूसरे को बातें बताकर हंस रहे थे फिर समय कब बीत गया पता ही नहीं चला ऐसा लग रहा था कि समय भी पंख लगा कर बैठा था और हम लोग अपनी- अपनी मां के घर चले गए और अपने परिवार में जाने की तैयारी की और अपने-अपने घर चले गए । ससुराल आकर फिर वही जवाबदारी में लग गये। किसी को स्कूल की टिफिन ,किसी को ऑफिस की तैयारी , किसी की चाय उसी में फिर से लग गये ,वही समय फिर से चालू हो गया। उस दिन अपनी सहेलियों से मिलकर यह महसूस हुआ। कि कभी-कभी हम सब को बचपन के मित्रों से मिलकर बचपन की यादों को ताजा करते रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए अपने मित्रों से तो मिलना ही चाहिए। यही यादें ही तो हैं जो इंसानों को जिंदा दिल बनाए रखने में मदद करती हैं। अगर ऐसा करो तो सच में लगता है कि कुछ पल के लिए ही सही पर उस पल (बचपन) को जरुर महसूस करते हैं, जी लेते हैं।





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