प्यार के बीज : हास्टल की बारिश
प्यार के बीज : हास्टल की बारिश
आज सुबह से ही बारिश हो रही थी। वैसे भी सावन के मौसम में कभी भी बारिश होने लगती है। पर आज तो वारिस शुरू हुई तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। सुधा को ऑफिस जाना था। पर जब बारिश बंद नहीं हुई तो उसने छुट्टी लेने का निश्चय किया। ऑफिस में ज्यादा काम भी नहीं था सो बाॅस ने स्वीकार कर लिया। अब हमारे समाज में लड़का लड़की में कितना भी भेद हो पर कार्यालयों में नजारा प्रायः अलग होता है। पुरुष कर्मचारी को आसानी से अवकाश नहीं मिलता पर महिलाएं तो बस सूचना दे दें, यही काफी है। लड़की होने का फायदा सुधा अक्सर उठाती थी। बाॅस एक प्रौढ़ व्यक्ति था। सुधा को बेटी की तरह ध्यान रखता। प्रायः सहकर्मी मजाक में कह भी देते - 'सर। आप हममें और सुधा में पक्षपात करते हो। जब बारिश में हम आ रहे हैं तो सुधा क्यों नहीं आयी। और अब तो लड़का और लड़की एक समान हैं। इस बात में सुधा को विशेष छूट देना गलत है।' पर यह तो बस मजाक का विषय था।
पर सुधा के पति राजीव की किस्मत इतनी बढ़िया नहीं थी। आज तो उसके बाॅस ने एक जरूरी मीटिंग में चलने के लिये जल्दी बुलाया था। राजीव जल्दी ही रैन कोट पहनकर निकल गया।
बरसात के मौसम में सुधा पुरानी बातों को याद कर मुस्कराने लगी। बच्चे मम्मी का बेमतलब मुस्कराना समझ न सके। सुधा अभी उन्हें समझा भी नहीं सकती। सुधा अपनी पुरानी यादों में खो गयी।
छोटे कस्बे की सुधा इंजीनियरिंग करने कालेज में आयी। वैसे सुधा के माता पिता का उसपर बड़ा प्रेम था। पर लड़की को दूर भेजने में डर रहे थे। पर हास्टल की सुविधा होने से उनकी चिंता थोड़ी दूर हो गयी। सुधा के साथ कमरे में एक और लड़की रहती थी। दूसरी लड़की का नाम मोहिनी था। वह भी उसी के साथ पढ़ती थी।
सुधा कमरे की खिड़की से बाहर देखती तो सड़क के दूसरी तरफ एक चाय की दुकान थी। शाम को छात्रावास में रहने बाले और भी दूसरों लड़कों की पसंदीदा जगह थी। मोहिनी इस बात मे ज्यादा समझदार थी। उसे लगता कि यह भीड़ अक्सर हास्टल की लड़कियों को ताकने के लिये है। वह तुरंत दरवाजा बंद कर देती। अब सुधा भी समझ गयी थी। और उनके कमरे की खिड़की बंद ही रहने लगी।
सुधा की लड़कों के विषय में अच्छी धारणा न थी। जब भी लड़कियां बाहर जातीं तो अक्सर लड़कों की नजर उनपर होती। कालेज के बाद अक्सर एक लड़का उस दुकान पर चाय बनाता था। कालेज के लड़के अक्सर वहाँ चाय पीने आते थे।
बारिश का मौसम था। आज एक अध्यापक ने बताया कि कल से डाइंग की कक्षा शुरू होगी। सामान की एक सूची बता दी। आज शाम को सभी लड़कियां बाजार सामान लेने गयीं। वापसी में तेज बारिश होने लगी। पता नहीं कैसे सुधा फिसल गयी। शायद पैर में मोच आ गयी थी। मोहनी को भी समझ नहीं आ रहा कि क्या करें। तभी चाय की दुकान पर चाय बनाने बाला लड़का वहां आ गया।
'अरे। क्या हुआ आपको। '
' कुछ नहीं, गिर गयी है। शायद मोच आ गयी है। क्या आप हमारी मदद करेंगे। ' मोहनी ने कहा।
सुधा मन ही मन नाराज थी कि भला मोहनी एक आवारा लड़के से क्यों मदद ले रही है। हास्टल पहुंचकर फिर क्लास लूंगी। अभी तो इस मुसीबत से राहत मिले।
वह लड़का तुरंत एक रिक्शे को ले आया। एक नजदीकी डाक्टर के पास तक पहुंचने को कहकर वह पैदल ही चल दिया। बारिश तेज थी। डाक्टर की दुकान पर ज्यादा भीड़ न थी। पर डाक्टर ने उस लड़के को देखते ही उसे भीतर बुला लिया। सुधा की जांच की गयी। उसके एड़ी में मोच थी। सो मलहम लगा कर गर्म पट्टी बांध दी गयी। फिर उसी लड़के के सहयोग से वापस हास्टल तक आयीं।
कमरे में पहुँचते ही -
'सुन मोहनी। यह क्या। '
' क्या मतलब। '
' खिड़की खोलने से खुद मना करती थी। और एक आवारा लड़के से जो लड़कियों को ताकता रहता है, मदद मांगने की क्या जरूरत थी। थोड़ी देर रुककर किसी बड़े आदमी से मदद मांगती। '
सुनते ही मोहनी अपने माथे पर हथेली मारकर बोली -' अच्छा। ये बता। वह कौन लड़का है। उसे जानती है। '
' जानती क्यों नहीं हूं। सामने चाय बनाता है। '
' और उससे ज्यादा। '
सुधा चुप रही।
' वह हमारे कालेज में चतुर्थ वर्ष के छात्र राजीव हैं। हर साल प्रथम आते हैं। सारे कालेज में उनकी शराफत की चर्चा है। '
' तुझे कैसे पता। '
' क्योंकि मैं पढ़ाई के अलावा दुनिया दारी पर भी ध्यान रखती हूं। '
' फिर चाय की दुकान का क्या किस्सा है। '
' यह दुकान उनके पिता जी की है। राजीव सर ने अपनी पढ़ाई अपने पिता का काम में सहयोग करके पूरी की है। अब भी थोड़ी देर अपने पिता का साथ देते हैं। मैंने तो दूसरे लड़कों से बचने के लिये खिड़की बंद रखने को बोला था। '
सुधा को न जाने राजीव की कहानी सुन क्या हो गया। रात सपने में भी उसे राजीव दिखाई दिया। अब सुधा मौका देख खिड़की खोल उस चाय बाले को देखती थी। उसमें न जाने सुधा को क्या आकर्षक था।
एक दिन फिर बरसात की शाम थी। सुधा बाजार से आयी। हल्की बारिश हो रही थी। पर चाय की दुकान पर सुधा रुक गयी। राजीव और उसके पिता दुकान पर थे। बारिश में दुकान ज्यादातर खाली थी।
'अंकल। मैं थोड़ी देर बारिश रुकने तक यहाँ बैठ सकती हूं। '
' आओ बिटिया। '
पता नहीं। शायद सुधा उस दुकान पर रुकना चाहती थी। राजीव को नजदीक से देखना चाहती थी।
' अरे। राजीव। एक चाय बिटिया के लिये बना ला। बारिश में भीग गयी है बिचारी। '
' अभी बनाता हूं। '
और राजीव चाय बनाने लगा। सुधा चोर नजर से उसे देख रही थी। बारिश के बाद सुधा हास्टल आ गयी।
अब तो सुधा जब मन हो, राजीव की दुकान पर आ जाती। कोई भी काम हो, राजीव को बता देती। बाजार से कुछ मंगाना हो तो राजीव से कह देती। सुधा को पता चल गया कि राजीव भी बा़हम्ण परिवार से है। और नजदीक ही उसका छोटा सा घर है।
फिर राजीव की नौकरी लग गयी। उसने अपने पिता से दुकान बंद करने को कहा तो पिता ने कहा कि बैठे मन नहीं लगेगा। तो फिर एक बड़ी दुकान खोलकर उसपर रेस्टोरेंट बना दिया। पिता तो बस काउंटर पर बैठते और काम कारीगर करते। सुधा अब भी कभी कभी उस रेस्टोरेंट में जाती थी।
अब सुधा इंजीनियर बन गयी थी। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी। एक दिन उसके पिता ने कहा - 'सुधा। अब मैं तुम्हारे हाथ पीले करना चाहता हूं। तुम्हें इस विषय में कुछ कहना है तो बताओ।'
आज सुधा शरमा गयी। अपने भावी पति का चेहरा कैसा होगा यह सोचने के लिये उसने अपनी आंखें बंद की तो राजीव दिखाई देने लगे। आखिर शरमाते हुए सुधा ने किसी तरह अपनी पसंद पिता को बता दी। पिता दूसरे ही दिन राजीव के पिता से मिलने चल दिये। राजीव के पिता ने बस इतना कहा - 'हमारा बेटा तो कभी से आपसे बात करने की कह रहा है। वो तो मैं ही उसे समझाता रहा हूं कि चाय बाले के बेटे होकर इतने ऊंचे ख्वाब न देखो। अब समझा। ईश्वर मन में प्रेम के बीज कभी एकतरफा नहीं बोते।'
सुधा वर्तमान में लौट आयी। शाम होने को आयी। उसने अब आलू प्याज के पकोड़े बनाये हैं। राजीव के आने का इंतजार सुधा देख रही है। मन ही मन सोच रही है कि चाय तो आज आपके हाथ की पीऊंगी।

