Moumita Bagchi

Romance

3.0  

Moumita Bagchi

Romance

पूनम की वह रात

पूनम की वह रात

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363



उस दिन भी आसमान में ऐसी ही चांदनी छिटकी हुई थी। गर्मी की दोपहरी के बाद शीतल चांदनी रात। सामने उमड़ता- घूमड़ता बंगाल की खाड़ी। उसने देखा था,खिड़की के पर्दे को ज़रा हटाकर। ऑफिस से पिकनिक के लिए आए थे, वे लोग! आठ-दस जनों की एक टोली। रात को रुकने का प्रोग्राम भी था और सुबह फिर सब अपने गंतव्य को चले जाने वाले थे। अभी दो साल पहले की तो बात है। सारी घटनाएँ सुवर्णा के जेहन में साफ- साफ है।


अमित को घर से ही ज़रा -सी सरदर्द और हल्की सर्दी खांसी हो रखी थी। परंतु इतने थोड़े से वह कब रुकनेवाला था। एथलिट था, स्टेट-लेवेल पर क्रिकेट भी खेल चुका था। फिर इसी पिकनिक के आयोजन-प्रबंधन में वही अगुआ था। लेकिन तबीयत माने तब न? यहाँ पहुँचकर समुंदर की हवा लगते ही दोपहर तक तेज बुखार से उसका बदन तपने लगा था। चुपचाप एक गोली खा ली थी। मगर शाम तक बुखार का पारा और चढ़ गया तो उसे मजबूरन खाट पकड़नी पड़ी।


दफ्तर में उड़ती-उड़ती खबर थी कि सुवर्णा और अमित के बीच कोई खिचड़ी पक रही है। दोनों ही कनखियों से जब-तब एक दूसरे को देखा करते थे। सीधे-सीधे बात करते हुए तो उन्हें किसी ने न देखा था कभी! हाँ, कुछ काम पड़े तो अलग बात थी। बस इतना ही। परंतु एक दूसरे के करीब होने पर उन दोनों के ही चेहरे पर एक सुंदर सी लालिमा छा जाती थी। वह यदि अनुराग नहीं था तो और क्या था?

बहरहाल,अमित की ऐसी अवस्था में सुवर्णा डाॅक्टर बुलाकर ले आई। जब दूसरे सारे कॅलिग सागर के मोहना देखने की पैदल यात्रा की योजना बना चुके थे, तो वह थकान का बहाना करके रुक गई। होटल के किचन से गर्मागर्म सूप बनवाकर ले आई और अमित को बहला फुसलाकर पिला दिया। उसकी इस सेवा से अमित अंदर तक कृतज्ञ हो उठा था। बाहर पूनो का चाँद और कमरे में सिर्फ अमित और सुवर्णा!


जरा भावुक होकर,उसका हाथ पकड़कर अमित बोला


" क्या तुम मेरी बनोगी, हमेशा के लिए?"


" अमित, तुम कभी मुझे भूल तो न जाओगे?"


" कभी नहीं, इस पूनम की रात की कसम!"


फिर दोनों देर तक एक दूसरे के गले लग के बैठे रहे!


सुबह तक अमित ठीक हो चुका था। और फिर सभी अपने- अपने घर को चले गए थे।


दोनों की यूँ मीठी -मीठी प्रेम कहानी चल ही रही थी कि कोई बारह चौदह पूनम के बाद अमित के लिए एक बढ़िया जाॅब का ऑफर आता है और वह यह दफ्तर छोड़कर विदेश की नौकरी को स्वीकार कर लेता है।


फिर सबकुछ पीछे रह जाता है। पूनम की रात भी और सुवर्णा भी।दो वर्ष बाद सुवर्णा फिर उसी रिसाॅर्ट में आई है। उसे वही कमरा मिला था। खिड़की से बाहर झांका तो वही पूनम की चाँद भी दिखी। फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार वह अकेली आई थी! निपट अकेली! और उससे जब यह अकेलापन न सहा गया तो कमरे में ताला लगाकर वह निकल पड़ी। समुंदर के किनारे रेत पर चलते हुए वह बड़-बड़ायी--


" कहा था कभी नहीं भूलूंगा पूनम की रात की कसम---"

उसकी बात समाप्त होने से पहले ही निकट से कोई बोला पड़ा-


" तो क्या गलत कहा था?"


सुवर्णा ने ध्यान से उस छायाकृति को देखा तो कुछ स्पष्ट न दिखाई दिया।तब मोबाइल निकालकर उसका टार्च जलाकर रौशनी की तो देखा---

अमित खड़ा हँस रहा था! वह लौट आया था। अपनी पूनम की रात वाली कसम पूरी करने के लिए!



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