पुश्तैनी बंगला
पुश्तैनी बंगला
गांव में दादी का पुश्तैनी बंगला था। दादी को अपने इस प्यारे से घरौंदे से बहुत प्यार था, लेकिन दादी की सेहत अब ठीक नहीं रहती और शहर वह बेटे के पास जाना नहीं चाहती है।
दादी पड़ोसी की प्यारी गुड़िया सोनू से कहती है - सोनु मेरा बगीचा सूख गया है, गमलों में भी कई दिनों से पानी नहीं डाला किसी ने। तुम ही मेरा काम कर देना।
सोनू - दादी थोड़ी देर में आती हूं और आपके सभी पौधे ठीक कर दूंगी।
दादी प्यार भरी निगाहों से सोनु को ढेरों आशीर्वाद दे देती है।
गांव में उन्हें सभी दादी कहते हैं। दादी का बेटा है जो शहर में नौकरी करता है, उसकी अपनी गृहस्थी है। वह दादी से शहर आने की बहुत बार कहता है, परंतु दादी हरदम यही कहती है - बेटा यहीं बियाह कर आई थी, तेरे पापा ने बहुत प्यार से यह घर बनाया था और नाम रखा घरौंदा। अब वह नहीं रहे लेकिन मैं जब तक हुं यहीं रहूंगी।
मां आप अब थकने लगी हैं कब तक संभाल पाएंगी, अब आपकी सेहत भी ठीक नहीं रहती है हम यहां आकर रह नहीं सकते आप आएंगी तो हम इस बंगले को बेचकर शहर में अच्छा फ्लैट ले लेंगे, आराम से रहेंगे।
मान जाओ मां, परंतु दादी....
दादी की आंखों से दर्द बहने लगता है, सारी जिंदगी यहीं रही हूं अब शहर नहीं रह पाऊंगी। तुम अपना काम संभालो बेटा पड़ोस की शर्मा चाची और उनकी बेटी सोनू मेरा बहुत ध्यान रखते हैं।
मां शर्मा चाची को हम आपकी जिम्मेदारी कैसे सोंप सकते हैं उनके अपने घर के काम है।
दादी - नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है वह लोग मुझसे बहुत प्यार करते हैं और जरा आवाज देने भर की देर है दौड़ कर आते हैं। बेटा जो प्रेम बाहें फैला दें वही प्रेम है, और वह लोग मुझे मां ही समझते हैं। फिर रामू बरसों से आता है मेरे सभी काम कर जाता है।
मां आप मेरी बात मानती ही नहीं हो।
बेटा यह मेरा घरोंदा है और मैं आखिरी पल तक इसे सम्हालूंगी। कितना पसीना, कितनी मेहनत लगी है इसे बनाने में, तुम्हें कैसे समझाऊं फिर तेरे पिता की यादें हैं यहां, नहीं नहीं ...मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।
बेटा विवशता से मां की ओर देखता है और कहता है मां जैसा आप चाहें...
