ईश्वर का घर
ईश्वर का घर
हमारे परिवार के इष्ट मित्र थे सुशील जी उनकी कोरोना काल में मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी शीला बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की है पर पति की मृत्यु से विक्षिप्त सी हो गई है, और भगवान जैसी ईश्वरीय सत्ता पर से उनका विश्वास ही उठ गया है। उन्हीं दिनों पास ही गली में एक मंदिर का निर्माण होना था तो सभी से चंदा मांगा जा रहा था।
वह एकदम विफर पडी़ मंदिर क्यों बनवा रहे हैं, यह क्या पागलपन है। ईश्वर अगर होते तो कोरोना से हमारी सहायता ना करते, इतने लोगों को मरने देते क्या? उत्तराखंड में क्या हुआ? मैं नहीं मानती इन सब बातों को और चंदा तो मैं बिल्कुल नहीं दुंगी। तभी वहां उनकी कंपनी के बॉस आए जहां वह नौकरी करती थी। बॉस ने श्रद्धा पूर्वक पंडित जी को नमस्कार किया और अपनी ओर से बड़ी धनराशि का चेक साइन कर चंदा स्वरूप पंडित जी को दिया और कहा और चाहिए तो बताना।
मन्दिर ही तो है जो हमारी संस्कृति को जीवित रखे हैं और शांति का अनुभव कराते हैं। ईश्वर की श्रद्धा पर कहां संशय रखना। यह सुनते ही शीला जी का मन थोड़ा शांत हो गया और उन्होंने अपनी तरफ से चंदा भी पंडित जी को दे दिया। यह सोचकर किसी को तो हमें पूजनीय मानना ही होगा तब फिर भगवान ही क्यों ना हो।
किस्मत का दोष ईश्वर को नहीं दिया जा सकता, मेरे भाग्य में यही लिखा होगा।
