भीगी बारिश जलते पलाश
भीगी बारिश जलते पलाश
जुलाई का महीना, रात भर बहुत तेज बारिश के बाद सुबह की सूरज की किरणों संग बारिश थम गई थी। भीगा भीगा मौसम और सूरज की हल्की रोशनी..... बड़ा ही खुशनुमा मौसम था। आरती मौसम का मजा लेने छत पर आती है, सुकून सा महसूस करती है।
वैसे भी रात पति के साथ झगड़ा हो गया था, अक्सर ऐसा होता है पूरी रात झगडे़ में ही व्यतीत हो जाती है।
मन ही मन आरती यही सोचती है यहां सब कुछ बिकता है, जज्बात भी और मोहब्बत भी।
पैसे वालों की अलग ही कहानी है।
आरती छत पर थोड़ी राहत महसूस कर रही थी कि अचानक उसे दीपक की याद आती है। दीपक उसके साथ कॉलेज में पढ़ता था, दीपक बहुत होशियार था। दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे। आरती हमेशा चाहती थी दीपक के साथ में अपनी गृहस्थी बनाये लेकिन उसने दीपक को कभी कहा ही नहीं।
दीपक कॉलेज से इकोनॉमिक्स में डिग्री हासिल कर आगे पढ़ने अमेरिका जाना चाहता था, उसने यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए फार्म भरा और उसका प्रवेश हो गया। दीपक अमेरिका जा रहा था, अब तक आरती ने दीपक से कोई बात भी नहीं कही थी, अपनी इच्छा कभी उस पर जाहिर नहीं की थी। फिर भी दीपक आरती से कहता है, सिर्फ 2 वर्ष की बात है, तुम मेरा इंतजार करना। और आरती हां में सिर हिलाती है।
इधर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था... आरती के लिए प्रतीक का रिश्ता आया। प्रतीक पैसे वाले घर का अच्छा कमाता लड़का था, तो पापा ने रिश्ता पक्का कर दिया। आरती तब पापा का विरोध नहीं कर पाई और प्रतीक के साथ विवाह बंधन में बंध गई।
उसे घर में कोई तकलीफ नहीं है लेकिन प्रतिक को शराब की लत है और बेवजह झगड़ा करता रहता है, उसने रात ऐसा कुछ कहा, जो शब्द पीड़ा को अपने मन में आत्मसात कर आरती की आंखों से बहे जा रहे थे, प्रतीक उसे समझना तो दूर सुनना भी नहीं चाह रहा था।
ऐसे में मन तो कहीं दूर भटकने निकल जाता है,
शरीर जीने लगता है।
जिंदगी में रमने की कोशिश में, क्या कुछ टूट रहा है, किससे कहती वह।
आरती का अंतर्मन खयालों से जूझता रहा और पलाश जो पुरजोर खिला था रात की बारिश से जल गया।
