बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
वक्त के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है,
लोग भी, रास्ते भी, अहसास भी।
और फिर रिश्ते क्या कहें, रिश्तों पर तो व्यवहारिकता(prectical) का जामा चढ़ गया है।
नेहा एमबीए की डिग्री लेकर कंपनी में काम कर रही है। नेहा के पिता उसकी शादी को लेकर चिंतित रहते हैं, वह अक्सर अपनी पत्नी कुसुम से कहते रहते हैं, नेहा सुनती ही नहीं है वरना अच्छा लड़का देख कर उसकी शादी कर देते। नेहा तैयार नहीं है पापा की बात सुनने। तभी नेहा की दोस्ती अपने कलिग अंकुश से होती है। अंकुश उसी शहर में रहता है और उन दोनों की दोस्ती कब प्यार में तब्दील हो जाती है नेहा समझ ही नहीं पाती है। अंकुश के सामने शादी का प्रस्ताव रखती है परंतु अंकुश कहता है मैं लिव इन रिलेशनशिप के बारे में सोच रहा हूं।
नेहा बहुत उहापोह में है, घर पर कैसे बात करेगी... पर करना तो होगा। नेहा अपनी छोटी बहन पम्मी से बात करती है तो पम्मी कहती है दीदी पापा ने अपनी जिंदगी जी है और हम बड़े हो गए हैं, अपने फैसले लेने का हमें हक है।
नेहा के पापा को जब पता लगा उनके तो पैरों तले से जमीन खिसक गई। आज की पीढ़ी सारे रिश्ते नाते, जीवन मूल्यों को ताक पर रख अपनी मन मर्जी कर रही है। संज्ञा शून्य से नेहा के पिता कहते हैं, क्या करें अगर नेहा को इजाजत देते हैं तो जात बिरादरी रिश्तेदार क्या कहेंगे। नेहा कहती है - मुझे नहीं परवाह किसी की जो सोचना है सोचे, मैं अपने तरीके से जीना चाहती हुं।
नेहा के पापा कुसुम से कहते हैं यह बदलते रिश्तों की तस्वीर मेरी तो समझ में नहीं आती है, लेकिन बच्चों की मर्जी के आगे कुछ कर भी नहीं सकते हैं।
कितने खूबसूरत होते थे पति पत्नी के रिश्ते....
परिवार होते थे, रिश्ते होते थे एक गुलदस्ते में सजे।
आज यह बदलते रिश्तों की तस्वीर...
कई रंगों का गुलदस्ता था परिवार, बड़ी शान से मुस्कुराता।
अब अलग-अलग अपनी-अपनी, क्यारियां हो गई है।
