Bindiya rani Thakur

Classics

4.8  

Bindiya rani Thakur

Classics

पुराने दिनों की एक याद

पुराने दिनों की एक याद

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बाकी सभी बच्चों की तरह मेरा बचपन भी बहुत अच्छा था, स्कूल से आकर बस्ता रखा नहीं कि खेलने के लिए सीधे घर से बाहर भाग निकलते, माँ आवाजें लगाती रह जातीं और हमारे कानों को खेल के आगे कहाँ कुछ सुनाई देता! 

वापस आते समय डर से हालत खराब! सीधे दादी के पीछे छुप जाते , और हमारी प्यारी दादी के आगे माँ कुछ कह नहीं पातीं और हम आराम से विजयी मुद्रा में आँगन में हाथ-मुँह धोने चले जाते।

दादाजी तबतक अपने होटल से तरह तरह की मिठाइयाँ और नमकीन लेकर आते और हमलोग पहले मुझे पहले मुझे कहकर उनके आगे-पीछे डोलते रहते, वैसे हमसब भाई बहनों को पता था कि दादाजी छोटे भाई को सबसे पहले देंगे और मुझे सबसे अंत में मिलेगा फिर भी रोज हम यही सब करते खाने के बाद सबको चाय भी मिलती क्योंकिहमारे जमाने में बच्चों के चाय पीने में कोई बुरी बात नहीं थी।

फिर पिताजी के घर आने का समय हो जाता और हम सब भाई- बहन डर के मारे पढ़ने के लिए बैठ जाते। पिताजी की डाँट से भी दादी ही बचा लेतीं। उस समय हमारे गाँव में बिजली नहीं आई थी तो लैंप और लालटेन की रौशनी में हमसब पढ़ते, खाना खाने के बाद दादी के संग सोते और कहानी सुनते- सुनते निंदिया रानी की गोद में चले जाते।

कहानी सुनने के लिए हम सब दादी की सेवा में लगे रहते कोई उनकी छड़ी ला रहा है तो कोई पीने के लिए पानी!

घर में हमेशा उत्सव का माहौल रहता। कोई ना कोई बुआ आकर महीने दो महीने रहतीं तो बहुत मजा आता।  

दादी वैद्य का काम जानती थीं और दिन में लोगों से घिरी रहतीं और सबसे कमाल की बात तो यह है कि वे जिसका भी इलाज करतीं वह ठीक हो जाता और यह काम वह मुफ्त में करतीं। साथ ही वह ज्योतिष शास्त्र की भी ज्ञाता थीं। प्रतिदिन हमारे होटल में दादाजी द्वारा गरीबों को मुफ्त खाना खिलाया जाता। दादी और दादा दोनों बहुत ही अच्छे लोग थे, हमेशा परोपकार के काम में लगे रहते थे।

भगवान ने बहुत जल्दी ही हमसे उन्हें छीन लिया, कहते हैं भगवान के पास अच्छे लोगों की कमी है इसीलिए वे अच्छे लोगों को जल्दी से अपने पास बुला लेते हैं।  

आजकल शायद भगवान ने ऐसे लोग बनाना बंद कर दिया है !


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