पुनर्विवाह।
पुनर्विवाह।
सुबह से ही मेरे पाकिस्तान के लाहौर में रह रहे नाना जी श्री राम कपूर जी जोकि वहाँ के जाने माने पटवारी थे। उन्हें शादी करना पसंद नहीं था और वो कुंवारे ही तमाम उम्र रहना चाहते थे।
एक दिन जब वो खेतों में गए तो वहाँ पर एक बहुत ही सुंदर और मृगनयनी नयन वाली लड़की से टकराव हुआ तो दोनों ही गिर गए और राम ने ही उस लड़की को उठाने में सहायता की और उस लड़की ने सफेद साड़ी पहनी हुई थी। उन्होंने घर जाकर कह दिया कि उन्हें एक लड़की पसंद आ गई है और वो सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी से विवाह करेंगे।
राम के माता पिता बहुत ही ज़्यादा ख़ुश हुए कि उनका बेटा विवाह के लिए मान गया है और जब लड़की के बारे में जांच पड़ताल की तो पता चला कि लड़की तो विधवा है और एक बच्चे की माँ भी है।
माता पिता ने यह जानकर राम को इस रिश्ते के लिए साफ़ साफ़ मना कर दिया और राम ने भी जिद्द करके कसम खाई कि वो या तो तारा से विवाह करेगा और वरना जीवन भर कुंवारा रहेगा। कुछ दिनों बाद राम के माता पिता मान गए और तारा के पिता को भी मना लिया और
अब देवउठान एकादशी को विवाह का शुभ मुहूर्त निकला था।
उनके घर आज चहल-पहल थी। देवउठान एकादशी को ही उनका पच्चीस वर्षीय तारा से पुनर्विवाह होने जा रहा था।
विवाह-स्थल पर सादगी से रीति रिवाजों से विवाह-संस्कार पूरे किये जा रहे थे। एक ओर एकत्रित आस-पड़ोस की महिलाओं की मण्डली इस विवाह के सम्बन्ध में अपनी अपनी राय ज़ाहिर कर रही थी।
तारा की पड़ोसन आंटी कमलेश बोली -”अरे मैं तो सोच रही थी कोई बड़ी उम्र का दूल्हा होगा पर ये इतना जवान भला विधवा और एक बच्चे की माँ से क्यों ब्याह करने लगा ? ..पर ये तो तारा के साथ का ही लग रहा है और सुंदर भी बहुत है।” दूसरी पड़ोसन आंटी कमल सिर का पल्लू ठीक करते हुए बोली -” ठीक कह रही हो भाभी जी …तारा से पूछा था मैंने कि दुल्हे की भी दूसरी शादी है क्या ?…बाल बच्चे भी हैं क्या ?…तो बोली ‘नहीं चाची जी ये इनकी पहली ही शादी है।”
पड़ोसन दादी सुधा मुंह बनाती हुई बोली -” हो न हो कोई कमी तो है इस लड़के में वरना एक बच्चे की विधवा माँ से कोई कुंवारा क्यों ब्याह करने लगा ये बात समझ से बाहर है और वो सरकारी पटवारी है और तेरे ताऊ ये बता रहे थे।"
उन मधुमक्खियों की घिन-घिन चुगलखोरी तब टूटी जब फेरे पूरे हो गए और तारा के पिता जी रमेश बाबू नवदम्पत्ति को आशीर्वाद देते हुए बोले -” तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनी रहे और बेटा तुमने जो भारतीय समाज की दकियानूसी सोच को दरकिनार कर मेरी विधवा बेटी के जीवन में फिर से खुशियां भरी हैं और मैं इसके लिए तुम्हारा आभारी हूँ ।”
दूल्हे राजा राम ने रमेश बाबू के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा -” मैंने कोई उपकार नहीं किया है .तारा मुझे मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ जीवन संगिनी लगी इसीलिए मैंने उसका हाथ आपसे मांग लिया और मुझे पता है कि यहाँ उपस्थित लगभग सभी का यही मत होगा कि मुझ में कोई न कोई कमी जरूर है जो मैंने एक बच्चे की विधवा माँ से विवाह का निश्चय किया और हाँ मुझ में बहुत बड़ी कमी है और वो है कि मैं भारतीय समाज की दकियानूसी सोच के अनुसार नहीं चलता जो सोच ये कहती है कि एक विधवा लड़की को केवल बड़ी उम्र का ,विधुर पुरुष ही ब्याहकर ले जा सकता है।”
दूल्हे राजा की ये बातें सुनकर कमल सुधा दादी व कमलेश के साथ साथ गाँव की औरतें एक दूसरे का मुंह ताकते हुए सोचने लगी -” कहीं दूल्हे राजा ने हमारी बातें सुन तो नहीं ली और शर्मिंदा हुई अपनी परम्परा और ओछी सोच को लेकर और वो सब राम से नज़रें नहीं मिला रही थी।
दूल्हे राजा राम और दुल्हन रानी तारा का धूमधाम से पुनर्विवाह हुआ और वो सब सुखी जीवन बिताने लगे।
समाप्त।
