Sumit. Malhotra

Abstract Action

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Sumit. Malhotra

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शिमला घूमने गया।

शिमला घूमने गया।

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बहुत साल पहले गर्मियों की जून महीने की छुट्टियों में मैं अपने माता-पिता और छोटे भाई के साथ शिमला घूमने गया था। 


मैं बहुत आनंदित था कि मैं अपनी पहली यात्रा को पूर्ण करने जा रहा था। शिमला जाने के लिए हम सभी लोगों में तैयारी के लिए भाग-दौड़ शुरू हो गयी थी। पिताजी ने हमें बताया कि हमारे पास कम-से-कम दो-दो आधी बाजुओं के स्वेटर और दो-दो पुलोवर वश्य होने चाहिए। हमारी माता जी ने हमारे पहनने और खाने के लिए बहुत सारा सामान रख लिया था। 


हमनें रेलवे स्टेशन पर जाकर सबसे पहले टिकट खरीद कर प्लेटफार्म पर बैठ गए और ट्रेन के आने पर ट्रेन में बैठ गए और हम किस्मत वाले थे कि हमें बढ़िया सीट भी मिल गई थी। 


रास्ते में टी.टी.सी. सबकी टिकट चैकिंग करने आया और हमारे टिकट भी चैक करके चला गया था। हमने रात का भोजन जो घर से बनाकर लाए थे और वो भी ट्रेन में ही किया और कुछ भोजन ट्रेन में भी मिला और हमने स्वादिष्ट और लजीज भोजन का आनंद लिया।


रात को सोने के लिए हमें ट्रेन में ही चादर, तकिया और कंबल भी दिया गया था। हम दोनों भाई कुछ देर तक तो मोबाइल पर गेम्स खेलते हुए समय व्यतीत करते हुए और कभी अंताक्षरी और कभी बातें करते हुए ट्रेन के सफ़र का आनंद ले रहे थे और नींद आने पर अपनी अपनी सीट पर जाकर सो गए और दूसरे दिन सुबह साढ़े पाँच बजे कालका पहुंचे। 


वहीं से टॉय-ट्रेन की रिजर्वेशन थी लेकिन विडंबना देखिए कि 1, 2, 3 और 4 वेटिंग होने के बावजूद हमारी सीट कनफर्म नहीं हुई थी और जैसे-तैसे हमने चार सीटों पर कब्जा किया और जब तक उन सीटों का मालिक ना जाये उन पर बैठने का आनन्द लेना चाहा। हम दोनों भाई खिड़की की तरफ़ बैठे और ट्रेन के अंदर से बाहर के पर्वत पहाड़ नदी नहरों और बड़े बड़े पेड़ पौधों को देखने वाले है यही सोचकर बहुत ही ज़्यादा रोमांचित हो रहे थे। 

और हमारी किस्मत भी बहुत ही ज़्यादा अच्छी थी कि उन चारों सीटों पर कोई नहीं आया और हम कालका से शिमला यात्रा का भरपूर आनंद लेते हुए शिमला पहुंचे। 


सुबह कालका से शिमला के लिए हमारी ट्रेन निकल चुकी थी और सोलन-धर्मपुर-डिगशोई-बारोग स्टेशनों से होते हुए टॉय ट्रेन निकल चली और हम बहुत ही ज़्यादा प्रसन्न हो रहे थे और पाँच घँटों के शिमला के सफर पर ट्रेन चल पड़ी थी। 


वहां तक ​​पहुंचने में आठ घंटे लगते हैं। ट्रेन ज़िग ज़ैग लाइनों पर बहुत धीमी गति से चलती है। इस लाइन पर जाने वाली ट्रेन में केवल 8 या 9 डिब्बे होते हैं। गति इतनी धीमी है कि कोई भी चलती ट्रेन से नीचे उतर सकता है। दिल तो हम दोनों भाइयों का भी बहुत ही ज़्यादा कर रहा था कि ट्रेन के साथ साथ भागते हुए ये रोमांचक सफ़र करते पर माता पिता जी से डाँट पड़ने के डर से ऐसा नहीं किया और हम दोनों भाईयों ने मन मसोस कर सब्र कर लिया था। 


आसपास के वातावरण में सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। ऊंचे पेड़ राजसी लगते हैं। जैसे-जैसे हम शिमला के नजदीक पहुँचते हैं, हम तापमान में अंतर महसूस कर सकते हैं। हमारे देश के मैदानी इलाकों की परेशान करने वाली गर्मी बहुत पीछे रह गई थी और हमने खुद को कंबल में लपेट लिया था और ऊनी कपड़े पहन लिए थे। हमने रास्ते में पकौड़े और चाय का खूब स्वाद लिया और मौसमी फलों का भी भरपूर स्वाद लिया।


हमारे साथ एक और परिवार भी बैठा हुआ था और वो पति पत्नी और दो उनके बच्चे थे और बेटा आठ साल और चार साल की बिटिया जो बहुत ही सुंदर गुड़िया सी लग रही थी और वो पति महाशय जी अपनी पत्नी से बहुत ही बुरा व्यवहार कर रहे थे और पूरी यात्रा के दौरान उस आदमी ने अपनी पत्नी का जीना मुहाल कर दिया था। वो अपनी पत्नी से ऐसे व्यवहार कर रहा था कि जैसे वो उसकी पत्नी नहीं बल्कि कोई खरीदी हुई गुलाम या नौकर हो। 


ट्रेन के डिब्बे में बैठे हुए सभी यात्रियों और हम को उस इंसान पर बहुत ही ज़्यादा क्रोध आ रहा था पर सभी कुछ भी नहीं कर पा रहे थे और हमारा दिल कर रहा था कि उसे मार-मार कर सीधा कर सकते पर हम सभी मजबूर थे। तभी कोई स्टेशन आया और वो महाशय की पत्नी के दुर्भाग्य से उनकी चार साल की बेटी ट्रेन चलने पर डिब्बे में नहीं दिखाई दी और वो पति महाशय ने इस बात के लिए भी अपनी पत्नी को दोषी करार दिया और देखते ही देखते तीन चार थप्पड़ अपनी पत्नी के मारे थे और अब डिब्बे में बैठे हुए सभी यात्रियों ने उस महाशय को खूब खरी खोटी सुनाई और पुलिस के हवाले करने की धमकी भी दी थी।


तभी साथ वाले डिब्बे से कोई बच्चे के जोर जोर से रोने की आवाज़ आई और वो चार साल की बेटी साथ वाले डिब्बे में एक आदमी की गोद में रो रही थी और वो आदमी उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था। वो कोई बच्चे उठाने वाले गिरोह का सदस्य था जो छोटे छोटे बच्चों को उठा के ले जाते थे और ये उस मासूम सी परी जैसी लाडली बिटिया की किस्मत अच्छी थी कि वो बच्चे उठाने वाले को नहीं पता था कि साथ वाले डिब्बे में उस बच्ची के माता पिता भी मौजूद है और बिटिया की आवाज सुनकर जब उस बिटिया के मम्मी पापा ने देखा और बिटिया को देने के लिए कहा तो वो बच्चे उठाने वाला चलती ट्रेन से उतर कर भागने लगा और उस डिब्बे में मौजूद सभी यात्रियों में से कुछ यात्रियों ने उसे भागने नहीं दिया और भागते हुए दबोच लिया। 


अगले स्टेशन पर उन महाशय को उनकी बेटी मिल गई थी। वो बिटिया बहुत डरी हुई थी और अपनी मम्मी के पास चली गई और उसकी मम्मी ने उसे गोद में उठा लिया था और उस बच्चे उठाने वाले को शिमला पहुंचने पर पुलिस के हवाले कर दिया गया था। 


कालका से शिमला की यात्रा अपने आप में एक अद्भुत ही अनुभव था। शिमला में डलहौजी रोड पर स्थित एक भव्य होटल में हमारा आवास था। यह होटल पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसकी गुणवत्ता सेवा के कारण इसे टूरिस्ट पैराडाइज के नाम से जाना जाता है।


अगली सुबह, हमने एक बस किराए पर ली और अपने परिवार के साथ हमने शिमला और उसके आसपास के सभी देखने लायक स्थानों का दौरा किया। हमने शिमला में मॉल, लोअर बाज़ार, जाखू हिल और प्रसिद्ध कालीबानी मंदिर का दौरा किया। हम कुफरी और नालदेरा भी गए। ये स्थान इतने सुंदर हैं कि आगंतुकों पर इनकी स्थायी छाप है। 


शिमला भारत के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक है। यह इसलिए है कि अंग्रेजों ने इसे भारत सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। गवर्नर के लॉज को उन्नत अध्ययन केंद्र में बदल दिया गया है। शिमला अब हिमाचल प्रदेश की राजधानी है।


जाखू एक पहाड़ की चोटी है जो चारों ओर से ऊंचे पेड़ों से घिरा है। यह खड़ी उड़ान के माध्यम से है कि हम जाखू तक पहुंच सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हनुमान जाखू से लक्ष्मण के लिए संजीवनी ले गए थे।


चार दिनों के बाद, हमें अपने मन को मारकर वापस आना पड़ा और दिल तो कर रहा था कि हमेशा के लिए वहाँ पर ही अपना आशियाना बनाकर रहे पर ऐसा संभव नहीं था और हमें वापिस आना पड़ा था। रास्ते में पापा जी ने हम दोनों भाइयों को समझाया कि जी की जी में रहना और हर इच्छा या ख़्वाहिश पूरी नहीं होती है।


समाप्त।


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