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Sumit. Malhotra

Abstract Action

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Sumit. Malhotra

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सुमित का बचपन।

सुमित का बचपन।

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पन्द्रह जुलाई को दोपहर बारह बजे कुरूक्षेत्र जंक्शन के स्टेशन मास्टर श्री सूरज बलराम मल्होत्रा के रेलवे क्वार्टर में एक शादीशुदा महिला को प्रसव पीड़ा होने लगी और वो कोई और नहीं मेरी मम्मी जी पुष्पा जी को लेबर पेन हुआ था। 


दाई माँ ने आकर मम्मी जी का प्रसव कराया और थोड़ी देर बाद बच्चे की किलकारी से आंगन गूंज उठा था। 


दाई माँ ने मेरे दादा जी स्वर्गीय श्री सूरज बलराम मल्होत्रा जी को जो अपने संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के साथ बाहर खड़े हुए थे और उनको जाकर दाई माँ ने बताया कि बेटा हुआ है और माँ-बेटा दोनों स्वस्थ है। 


ये सुनकर पापा जी श्री सुरेश चंद्र मल्होत्रा जी और ताया जी श्री रमेश मल्होत्रा जी और दोनों चाचा श्री नरेश और श्री मुकेश मल्होत्रा बहुत प्रसन्न हुए और बाहर ढोलक बजाने वाले ने ढोलक बजाना शुरू कर दिया और मल्होत्रा परिवार की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था और सब इकट्ठे होकर नाचने लगे। पूरे रेलवे स्टेशन के सभी क्वार्टरों में मिठाइयाँ बाँटी गई और मेरे मम्मी-पापा जी बहुत ही ज़्यादा प्रसन्न हो रहे थे। उनके घर मैंने उनके बड़े बेटे ने जन्म लिया था और मम्मी-पापा जी और दादा-दादी सहित सभी की खुशी और भी बढ़ गई थी। 


लोग पुत्र जन्म पर धूमधाम से उत्सव मानते है, उसका घर में भव्य स्वागत करते है वैसे ही मेरे जन्म लेने के बाद मेरा पहला जन्मदिन बड़े ही धूमधाम से त्यौहार की तरह मनाया गया था। 


फिर कुछ दिन बाद मेरा नामकरण किया गया और पंडित जी ने श शब्द से नाम रखने के लिए कहा और जन्म कुंडली बनाने के बाद देखकर बोले कि इसका नाम श से शीतल रख सकते हैं पर सभी ने मेरा नाम सुमित और घरेलू नाम शिन्टू रख दिया गया था।


पापा जी जो लघु जल सिंचाई नलकूप विभाग टोहाना में जेई के पद पर कार्य कर रहे थे और मम्मी-पापा जी और मैं तीनों टोहाना आ गए थे। 


जब मैं ढाई साल का हो गया और तब बहुत ही कम बोलता था और बिल्कुल भी नहीं चलता था तो मम्मी-पापा जी को चिंता हुई कि बेटा बोल और चल क्यों नहीं रहा है और तब पापा जी के ऑफिस में क्लर्क अंकल की पत्नी ने मुझे चलाना शुरू किया और मैं फिर चलने लगा और कुछ दिनों बाद बोलने भी लगा था। 


मम्मी-पापा जी का कहना है कि मैं बचपन में बहुत बार गुम हो गया था और जल्दी ही मिल भी गया था। पापा जी ऑफिस जाते जो घर के पास ही था और मैं भी उनके पीछे चला जाता था और इसीलिए कई बार गुम हो गया था। मम्मी जी कहते हैं कि मैं बचपन में पापा जाऊँ पापा जाऊँ कहता रहता था और पहली बार जब मैं गुम हुआ था तो सिर्फ़ तीन साल का था और पापा जी के पीछे ऑफिस गया और वो जीप में बैठ कर काम से गए तो मैं भी उनके पीछे-पीछे पैदल चला गया था और शाम को संध्या के समय मिला था और घर से दो तीन किलोमीटर दूर चला गया था और मुझे अकेले रोता देखकर मम्मी जी के साथ एक टीचर आंटी ने मुझे देख लिया और मम्मी-पापा जी को अपने घर बुलाया और इस प्रकार मैं मम्मी-पापा जी को मिल गया था। 


एक बार मम्मी-पापा जी बोटिंग करने गए और मुझे वहाँ पर कुछ नाँव की रखवाली कर रहे चौकीदार अंकल से ध्यान रखने के लिए कहा और कुछ देर बाद जब मम्मी-पापा जी आये तो उन चौकीदार अंकल को बहुत डाँटा था क्योंकि मैंने दो तीन नाँव की रस्सी खोल दी थी और वो सब नाँव पानी में तैर रही थी। चौकीदार अंकल ने माफ़ी भी माँगी थी। 


जब मैं सात साल का हुआ तो दादा दादी जी से मिलने कुरूक्षेत्र जाता था तो वहाँ पर जामुन का पेड़ घर में था तो जामुन तोड़ता था और एक दिन दादी जी ने मुझे कमरे में बंद कर दिया था।

 

ऐसे ही एक बार मैं मम्मी-पापा जी और छोटे भाई के साथ उनके दोस्त के घर गया था और वहाँ पर एक बार एक बिस्कुट खा लिया था और दोबारा उनके पूछने पर मैंने मासूमियत से जवाब दिया कि मम्मी-पापा जी ने दोबारा लेने से मना किया है और उनके बार-बार कहने पर भी मैंने दोबारा कुछ नहीं लिया था। 


कहते हैं कि छोटे बच्चे स्कूल बहुत ही कम जाया करते हैं और मुझे जो आया आंटी लेने आती थी तो मुझे स्कूल पहुँचाने में उन्हें नानी याद आती थी और एक बार तो उनकी साड़ी खुल गई थी। 


ऐसे ही एक बार मैं मम्मी-पापा जी के साथ दशहरे का मेला जो अंबाला सिटी के सिविल हॉस्पिटल के पास लगता था तो पानी पीने गया और पता नहीं कैसे पानी की टंकी में गिर गया था और मम्मी-पापा जी मुझे ढूँढ रहे थे और उन्हें नहीं पता कि उनका बेटा पानी की टंकी में गिर गया था और वो तो भला हो उस दस ग्यारह साल के बच्चे का जिन्होंने मम्मी-पापा को मेरे बारे में बताया और मुझे मम्मी-पापा जी ने पानी की टंकी से निकाला और मेरी जान बचा ली थी।


समाप्त।


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