Sumit. Malhotra

Abstract Tragedy Action

4.5  

Sumit. Malhotra

Abstract Tragedy Action

जीवन का चलचित्र।

जीवन का चलचित्र।

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ये उन दिनों की बात है जब मैं दिल्ली किसी नौकरी के लिए साक्षात्कार देने गया था और सुबह ग्यारह बजे मुझे वहाँ पर पहुँचना था और मैं दस बजे ही पहुँच गया था। मुझे वहाँ पर बैठे हुए दो घंटे हो गए थे पर मेरा साक्षात्कार शुरू नहीं हुआ था और ये कंपनियाँ बेरोज़गार युवाओं का कितना फ़ायदा उठाया करते हैं और साक्षात्कार से लेकर सैलरी देने तक हर चीज में फ़ायदा उठाते हैं। इसी कंपनी वालों ने मुझे पहले भी हरियाणा में पचकूला बुलाया था और वहाँ पर भी उस दिन सुबह नौ बजे पहुँच गया था।


मेरे पहुँचने के बाद भी सुबह से लेकर शाम सात बजे और फ़िर रात के दस बजे तक बैठाया गया था और दो बार सिर्फ़ चाय पिलाई गई थी और एक बार सुबह जाते ही और एक बार रात को आठ बजे के लगभग पिलाई गई थी। पूरा दिन बीत जाने के बाद भी साक्षात्कार शुरू नहीं हुआ था और दिल्ली आने के लिए कहा गया था। ख़ैर मैं दिल्ली आ गया था और यहाँ भी वहीं कहानी फिर से दोहराई जा रही थी और दोपहर को तीन चार बजे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और सबसे पहले एक फार्म भरवाया गया था।


कंपनी के बेरोज़गारों के शोषण करने का पहला चरण शुरू हुआ और सब सवालों के जवाब अच्छे से देने के बाद भी पाँच साल का बाँड भरवाने के बाद ही नौकरी मिलेगी ये कहा गया था। हम पाँच नौजवान साक्षात्कार देने आये थे और हम पाँचों में से मुझे और एक अन्य नौजवान को छोड़ कर उन तीनों को रख लिया गया और सीधे असिस्टेंट मैनेजर बनाया गया और हम दोनों को दूर-दूर के शहरों में जाकर ट्रेनिंग और फ़िर नौकरी मिलेगी कहा गया था। हम दोनों को बाँड भरने को कहा गया और हमने साफ़ साफ़ मना कर दिया।


हमसे कहा गया था कि पाँच साल तक हमें बहुत दूर भेजने की बात हो रही थी और तीन हज़ार रुपये ट्रेनिंग पीरियड के लिए मिलेंगे और जहाँ भेज रहे थे वहाँ पर तीन हज़ार रुपये जैसे ऊँटों के मुँह में जीरा था। पाँच साल तक सौ से दो सौ रुपये बढ़ाने के लिए कहा और बाँड भरने की बात से हम दोनों ने मना कर दिया। हम दोनों ही निराश होकर रात को दस बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे। दोनों ने ही अपने अपने गंतव्य के लिए रेलगाड़ी पकड़ीं और अब मैं दिल्ली से लुधियाना साक्षात्कार देने जा रहा था और रेलगाड़ी में बैठ गया था।


रेलगाड़ी में मैं जनरल डिब्बे की टिकट लेकर बैठ गया और रेलगाड़ी चल पड़ी थी और मैंने कोट पैंट शर्ट और टाई भी डाली हुई थी और किसी मैनेजर की तरह ही लग रहा था और तभी एक दो स्टेशन आने के बाद अचानक ही हरियाणा पुलिस के दो जवान एक लड़के के साथ जो बहुत ही ज़्यादा घबराया हुआ लग रहा था और डरा सहमा सा था के साथ उसी डिब्बे में चढ़ गए और जनरल डिब्बे के शौचालय के पास खड़े हो गए थे। मैं वहीं पर ऊपर की तरफ़ बैठा हुआ था और मैने देखा कि जैसे ही रेलगाड़ी चल पड़ी तो वो दोनों पुलिस वाले उस लड़के को थप्पड़ मारने लगे थे।


उन्होंने उस लड़के को धमकाना शुरू कर दिया और उस डिब्बे में ज़्यादा भीड़ नहीं थी और पन्द्रह बीस सवारियाँ बैठी हुई थी। उन्होंने उस लड़के के दायें हाथ की बीच वाली उंगली में सोने की अंगूठी पहनी हुई थी वो निकाल रहे थे और वो निकाल नहीं पा रहे थे तो उन्होंने उस लड़के की अंगूठी निकालने के लिए अन्याय और पाप की सारी हदें पार कर दी और भगवान जी का शुक्र था कि वो अंगूठी निकाल ली गई वर्ना लग रहा था कि वो उस लड़के की उंगली तोड़ने से भी पीछे नहीं हटते।


अगला स्टेशन नजदीक आ रहा था और वो दोनों हरियाणा पुलिस के जवान वो सोने की अंगूठी और उसके पर्स में से रुपये निकाल कर उतर गए और वो लड़का बहुत ही ज़्यादा डरा हुआ था और उसको लुटने के लिए पुलिस वालों ने टार्चर किया था। हम सबने उसे पास बैठाया और पानी पिलाया और एक अंकल और आंटी जी ने थर्मस में से चाय पिलाई और धीरे-धीरे सारी बातें पता चली कि वो लड़के को भी लुधियाना जाना था और वो वहाँ अपने बड़े भाई से मिलने गया था और बड़े भाई ने जनरल क्लास का टिकट देकर कुछ रूपये भी दिए थे और चलती रेलगाड़ी में वो सवार हुआ था


वो गलती से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में चढ़ गया था और वहाँ पर वो दोनों पुलिस वालों ने उसे पकड़ लिया था और टिकट चैक करने के बाद कि वो गलत डिब्बे में चढ़ गया था, तो उस लड़के की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे थे और उन दोनों ने उसकी जनरल क्लास की टिकट फाड़कर उसे बिना टिकट दिखा कर लूट रहे थे। हमारे साथ जो लोग सफ़र कर रहे थे, उनमें से कुछ अच्छे पदों पर काम कर रहे थे पर बिना टिकट यात्रा करने वाला समझ कोई मदद नहीं कर रहा था। मैंने मन ही मन में भगवान जी से प्रार्थना की कि ये कैसी आपकी लीला है कि हम मध्य वर्गीय लोगों को ना तो नौकरी मिलेगी और ऐसे ही लूटा भी जायेगा। जीवन का चलचित्र मैंने जो फ़िल्मों में ही देखा था वो सब मेरी आँखों के सामने घटित हो गया था और हम सब मजबूर हो के उस लड़के के लिए कुछ नहीं कर पाए।


समाप्त। 


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