पुलिस
पुलिस
सैकड़ों अकल मंद मिलते हैं
काम के लोग चंद मिलते हैं
जब मुसीबत आती है तब
पुलिस के सिवाय सब के
दरवाजे बंद मिलते है!
आमतौर पर पुलिस को कोसने वालों की पहली और आखिरी उम्मीद भी पुलिस ही होती है। किसी भी विवाद की सहन सीमा समाप्त होते ही 'पुलिस है ना' अपने आप देख लेगी। मतलब करा-धरा खुद और देखेगी पुलिस। हर वक्त अपनी ड्यूटी के लिए तत्पर पुलिस किसी भी घटनास्थल पर पहुंच कर हालात को संभाल लेती है। दो पक्षों के बीच सही को सही और गलत को गलत मानकर दंडित करने का फैसला तो बाद में होता है लेकिन तात्कालिक परिस्थितियों पर काबू पाते हुए शांति कायम करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। मानव संघर्ष के शुरुआती समय से सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए पुसितिंग व्यवस्था की जरूरत रही है।
हिंदू काल में इतिहास में दंडधारी शब्द का उल्लेख आता है। भारतवर्ष में पुलिस शासन के विकासक्रम में उस काल के दंडधारी को वर्तमान काल के पुलिस जन के समकक्ष माना जा सकता है।
सन् 1765 में जब अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी हथिया ली तब जनता का दायित्व उनपर आया। वारेन हेस्टिंग्ज़ ने सन् 1781 तक फौजदारों और ग्रामीण पुलिस की सहायता से पुलिस शासन की रूपरेखा बनाने के प्रयोग किए और अंत में उन्हें सफल पाया।
लार्ड कार्नवालिस का यह विश्वास था कि अपराधियों की रोकथाम के निमित्त एक वेतन भोगी एवं स्थायी पुलिस दल की स्थापना आवश्यक है। इसके निमित्त जनपदीय मजिस्ट्रेटों को आदेश दिया गया कि प्रत्येक जनपद को अनेक पुलिस क्षेत्रों में विभक्त किया जाए और प्रत्येक पुलिस क्षेत्र दारोगा नामक अधिकारी के निरीक्षण में सौंपा जाय। इस प्रकार दारोगा का उद्भव हुआ।
इस प्रकार मूलत: वर्तमान पुलिस शासन की रूपरेखा का जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस था। बार्डर पर आर्मी और शहर में पुलिस होने से ही जनता सुकून से है। लॉकडाउन के दौरान विपरीत परिस्थितियों में पुलिस के सर्वोत्तम कार्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी के लिए अच्छी तो किसी के लिए बुरी पुलिस है तो हमारे लिए ही। शहर-गांव में जलसा हो या तनाव पुलिस की मौजूदगी कितनी जरूरी होती है, यह सब जानते है. दोषी और निर्दोष के बीच जबरदस्त दबाव में काम करने वाली पुलिस को सलाम!