Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance

पत्नी - सुदर्शना (2)…

पत्नी - सुदर्शना (2)…

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मेरे ऑफिस में एक दिन, मैंने अपने फ्रेंड से सुना कि एक नई लड़की ने हमारे प्रोजेक्ट में ज्वाइन किया है। वह अत्यंत रूपवती है। तब मेरी भी इच्छा हुई कि मैं भी उसे देखूँ, फिर भी मैंने इसके लिए अनावश्यक अधीरता प्रदर्शित नहीं की। 

उस संध्या ऑफिस से लौटते समय, जब मैं पार्किंग में अपनी बाइक लेने गया तो देखा कि एक लड़की अपनी स्कूटी, वहाँ खड़ी अन्य गाड़ियों में से निकालने में परेशान हो रही है। मैंने उसकी सहायता करना उचित समझा। मैंने उसके पास जाकर, पूछा - "मैं, सहायता करूं? आपकी!"  

लड़की ने तब मेरी ओर देखते हुए कहा - "जी हाँ, कृपया! "

जैसे ही तब मैंने उसका चेहरा देखा, मुझे ‘दिव्य मानव’ द्वारा मुझे दिखाई, तस्वीर स्मरण आ गई। यह लड़की, उस तस्वीर वाली सुदर्शना थी। मैंने चौंक जाने के भाव छुपाते हुए, उसकी स्कूटी निकाल दी थी। 

उसने, मुझे थैंक यू, कहा था। 

तब मैंने पूछा -" आपका नाम सुदर्शना तो नहीं?"

अब वह चकित हुई थी। उसने उल्टा प्रश्न किया - "आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?"

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ कह दिया - "जस्ट अ गेस वर्क, मुझे लगा कि आप पर ऐसा ही कोई नाम शोभा देता है।"

सुदर्शना मेरे कहने से लजा गई थी। फिर वह और मैं, अपने अपने रास्ते चल निकले थे। कुछ दिनों तक सुदर्शना और मेरे बीच कुछ विशेष बात नहीं हुई थी। हाँ मैं, सहकर्मियों में उसके रूप की चर्चा होते, जब तब सुना करता था। तब मैं सोच रहा होता था कि रहने दो सबकी रूचि उसमें, आखिर में तो सुदर्शना मेरी ही होनी है।

मैंने एक दिन इंस्टाग्राम में सुदर्शना की खोज की थी। सुदर्शना की आईडी मिल जाने पर मैंने, उसकी एक प्यारी तस्वीर डाउनलोड की थी। 

मैंने, कंप्यूटर एप्लीकेशन के प्रयोग से, उसके साथ अपनी तस्वीर मर्ज की थी। फिर हमारी सयुंक्त फोटो के तीन और संस्करण क्रिएट किए थे। इन तस्वीरों में क्रमशः, दूसरी में आज से 15 वर्ष बाद, तीसरी में 25 वर्ष बाद, और चौथी में 35 वर्ष बाद के, हम दोनों के लुक्स दर्शित हो रहे थे। 

फिर ऐसे तैयार, इन चारों तस्वीर के प्रिंट आउट लेकर मैंने, लेमिनेशन करा लिए और उन्हें, घर में रख दिए थे। 

बाद के समय में कार्य प्रसंग में हुई सहज मुलाकातों में, हम दोनों करीब आए थे। अंत में, दस माह बाद सुदर्शना और मेरा विवाह हो गया। 

हनीमून के लिए हमने केरल के समुद्रतटीय नगरों में प्रवास किया। उसी बीच एक दोपहर मैंने, पूर्व में लेमिनेट की गईं वे तस्वीरें, सुदर्शना को दिखाईं और पूछा - "सुदर्शना इसमें से देखकर बताओ कि तुम्हें, अपने साथ इनमें से किस रूप में मुझे देखना हमेशा पसंद होगा?"

सहज प्रवृत्ति अनुरूप उसने, मेरे अभी के रूप वाली तस्वीर पर हाथ रखा था। तब मैंने कहा - "अगर, तुम मेरा यह रूप ही देखना चाहोगी, बाद के रूप नहीं देखना चाहोगी तो मुझे, 4-5 वर्ष में ही मरना होगा। अन्यथा 4-5 वर्ष में मेरे मुखड़े की आभा, आगे निरंतर फीकी पड़ती चली जाएगी।"  

सुदर्शना ने मेरे मुँह पर अपनी हथेली रखते हुए कहा -" नहीं, मनोहर ऐसा अशुभ नहीं कहते।" 

तब मैंने, उसे पुनः वे तस्वीरें बताते हुए पूछा - "हाँ अब कहो, अब बाकी 3 में से कौनसा मेरा रूप देखना, तुम सहन कर पाओगी? "

सुदर्शना ने हँसते हुए सभी फोटो समेट कर एक ओर रखते हुए कहा -" मनोहर, तुम्हें उस रूप के लिए हमारी शक्लों का, 75 वर्ष बाद का संस्करण बनाना होगा। मैं विवाह की हीरक जयंती के पूर्व तुमसे बिछुड़ना सहन नहीं कर पाऊँगी।" 

मैं, खिसियाया हुआ सा हँसा था। सुदर्शना ने मुझे भगवान के द्वारा कहे गए, शेष 3 डायलाग मारने के अवसर नहीं दिए थे। तब समुद्र तट पर चल रही, शीतल जल समीर में मैंने, सुदर्शना को प्यार से अपनी बाँहों में ले लिया था। जब सुदर्शना, मेरी बाँहों में होने की मधुर अनुभूतियों में आनंदविभोर हो रही थी, तब मैं सोच रहा था कि ‘सुंदरता और साथ’ को लेकर, पत्नी का मन कम चंचल होता है। वह, ‘अधिक सुन्दर’ या ‘अधिक अच्छे’ साथ के लिए, भटकना पसंद नहीं करती है। इसलिए पतिव्रता होने में उसे कठिनाई नहीं होती है। 

कुछ मिनटों तक मेरे आलिंगन में रहते हुए ही सुदर्शना ने कहा था - "मनोहर, हमें अपने रूप सौंदर्य के कम होते जाने की चिंता क्यों पालनी चाहिए। हममें जो भी शारीरिक कमी एवं परिवर्तन आएंगे वे हमारे परस्पर के साथ रहते हुए ही तो आएंगे। ऐसे रूप परिवर्तन, ना आप, मेरे और ना ही मैं, आपमें रोक सकूँगी। तब हमें ध्यान यह रखना होगा कि हम आपसी साथ को, इस तरह से जियें कि हमारे मन की सुंदरता क्रमशः निखार पाती चली जाए।" 

तब मैं सोच रहा था - स्वयं को सबके बीच अच्छे बनाए रखने के लिए शारीरिक रूप के अपेक्षा, ‘मन सुंदर’ रखने का सुदर्शना का यह विचार ही, उपयुक्त है।  

घर लौटने के बाद मैंने एक चित्रकार से, हमारे 35 साल बाद के रूप वाली तस्वीर बड़े आकार में बनवा ली थी। फिर एक सीनरी की तरह, उसे बैठक कक्ष की वॉल पर लगा लिया था। इसे देखकर, हमारे परिचित, रिश्तेदार पूछा करते कि इस तस्वीर में आप दोनों से मिलते जुलते, ये लोग कौन हैं? इस पर सुदर्शना मुस्कुरा दिया करती थी। मैं उत्तर देता था - "यह हम दोनों की ही, अब से 35 वर्ष के बाद की तस्वीर है। "

लोग चकित होकर इस आशय के प्रश्न करते - "भला, इस तस्वीर को अभी दीवाल पर लगा लेने का औचित्य क्या है?"

मैं कहता -" समय निरंतर चलता जाएगा, हम लोगों के रूप, शक्ति आदि शिथिल होती चली जाएगी। इस क्रम में, तस्वीर को देखते हुए हम एक बात निरंतर अपने ध्यान में रखना चाहते हैं। "

लोग पूछते -" कौनसी, बात?"

इसका उत्तर सुदर्शना देती - 

"वह बात यह है कि जब सभी को वृद्धावस्था में भी, सबका प्यारा होना पसंद है तब हमें, तन की नहीं, मन की सुंदरता को निखारने पर ध्यान देना चाहिए … "       

(समाप्त)


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