पति महाशय क्या केवल आपकी ही बड़ी बहिन को फ़िक्र होती है !!!
पति महाशय क्या केवल आपकी ही बड़ी बहिन को फ़िक्र होती है !!!
"रिया ,देवेन क्या कर रहा है ?", रिया की बड़ी ननद काजल ने फ़ोन पर बात करते हुए पूछा।
"अरे दीदी ,मेरा हाथ नहीं पहुँचता ;इसलिए देवेन पंखें साफ़ कर रहे हैं। " रिया ने बातों -बातों में बोल दिया। बोलते ही रिया को अपनी ग़लती का एहसास हो गया था। उसने अपनी जीभ काटते हुए सोचा ,"फँस गयी , आज फिर दीदी उसे पति की देखभाल और सेवा करने का लेक्चर देंगी। "
रिया जो सोच रही थी ,सोलह आना सही था। "क्या रिया ,तुम देवेन को छुट्टी वाले दिन भी थोड़ा आराम करने नहीं देती। मैंने तुम्हारे जीजाजी को आज तक एक ग़िलास पानी भी अपने आप से लेने नहीं दिया। सारे सप्ताह ऑफिस का काम और फिर छुट्टी वाले दिन घर का काम ;मेरे देवू को थोड़ा भी आराम नहीं। ऐसे तो उसकी सेहत ख़राब हो जायेगी। ", काजल ने शिकायती लहजे में कहा।
"जी दीदी ,वो वीकेंड पर इतने सारे काम होते हैं न; नौकरी के कारण मुझे भी पूरे सप्ताह फुरसत नहीं मिलती तो बस इसलिए। ",रिया ने अपनी बात कहने की कोशिश की।
"तुम आजकल की लड़कियों के ये नए -नए चोंचले हैं। वैसे भी तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है ?नौकरी करनी भी है तो करो। साथ ही घर भी सम्हालो। ",काजल ने कहा।
रिया की इच्छा तो हुई कि दीदी को २-४ सुना दे। शादी से पहले ही तो इन लोगों को पता था कि मुझे अपना काम कितना पसंद है। काम करने से मुझे ख़ुशी मिलती है। शादी भी इसी शर्त पर की थी कि शादी के बाद नौकरी नहीं छोडूँगी। लेकिन काजल दीदी जब देखो तब मुझे सुना देती।
लेकिन रिया ने यह सोचकर कि अभी बात का बतंगड़ बन जाएगा ,कुछ नहीं कहा।
"जी दीदी। ",बस इतना सा कहकर रिया ने फ़ोन रख दिया था।
दीदी से बात करने के बाद रिया का मूड ऑफ हो गया था। रिया का फूला हुआ चेहरा देखकर देवेन ने पूछा ,"क्या हुआ ?"
"होना क्या है ?तुम्हारी काजल दीदी का फ़ोन था। आज फिर वही पुराना लेक्चर ;पति से काम मत करवाया करो। ",रिया ने नाराज़ होते हुए कहा।
"अरे यार ,तुम उनकी बात दिल से मत लगाया करो। एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया करो। ",देवेन ने कहा।
"हर बार यही करती हूँ। लेकिन बार -बार के फिकरे मुझसे सहन नहीं होते। सहने की भी कोई सीमा होती है। तुम ही दीदी को एक बार बोल दो न कि मुझे बुरा लगता है। ",रिया ने कहा।
"रिया ,तुम जानती तो हो कि काजल दीदी मुझे कितना प्यार करती हैं ? दीदी को मेरी फ़िक्र है ;इसलिए ऐसा बोलती हैं। अब कभी से तुम्हें फ़ोन पर ही तो कहती हैं। दीदी को कुछ कहूँगा तो उन्हें बुरा लगेगा। ",देवेन ऐसा कहकर चले गए थे।
क्या केवल लड़के के घरवालों को ही उसकी चिंता होती है ?क्या मेरे घरवालों को मेरी चिंता नहीं होती है। रिया अभी भी अपनी सोच के भंवर में घूम रही थी।
रिया और देवेन एक कामकाज़ी युगल ,अपने परिवार से दूर मेट्रो सिटी में रह रहे थे। हर एक भारतीय पुरुष की तरह देवेन को भी घर के कामकाज करने का कोई अनुभव नहीं था और साथ ही उसने भी बचपन से यही सीखा और समझा था कि घर के कामकाज की पूरी जिम्मेदारी एक स्त्री की ही होती है। लेकिन अपने आसपास के युगलों को देखकर ,देवेन अब रिया की कुछ कामों में मदद कर देता था। देवेन द्वारा घर में एक पत्ता भी हिलाया जाना ,देवेन के घरवालों को नाग़वार गुजरता था।
रिया के ससुराल वाले कभी फ़ोन पर या जब कभी उनके पास रहने आते थे तो ;यह जता ही देते थे कि रिया एक अच्छी पत्नी नहीं है। देवेन द्वारा रिया में कुछ भी न कहना, रिया को अच्छा नहीं लगता था। आज भी ऐसा ही कुछ हुआ था।
बात आयी -गयी हो गयी थी। तब ही एक दिन रिया की बड़ी बहिन प्रिया का देवेन के पास फ़ोन आया। हालचाल पूछने के बाद प्रिया ने कहा ,"देवेन जी ,आपको बराबर से रिया की घर के कामकाज में मदद करनी चाहिए। रिया भी तो कंधे से कन्धा मिलाकर घर के ख़र्चों को पूरा करने में आपकी मदद कर रही है। मेरी रिया ने तो कभी यहाँ अपने मायके में इतना काम नहीं किया था। अच्छे पति को अपनी पत्नी का पूरा सहयोग करना चाहिए। बेचारी कितनी कमजोर हो गयी है। उसका अच्छे से ध्यान रखिये। "
"जी दीदी ,"देवेन भी शर्माशर्मी में कुछ बोल नहीं सका और उसके बाद प्रिया दीदी ने फ़ोन रख दिया था।
रात्रि वेला में देवेन जैसे ही घर में घुसा ,रिया को देखते ही उसका गुस्सा फूट पड़ा ,"तुम्हारी दीदी को ज़रा भी तमीज नहीं है कि अपनी छोटी बहिन के पति से कैसे बात करें। मैं तुम्हारी घर के काम में मदद करूँ या न करूँ ;यह हम दोनों का निजी मामला है। तुम्हारी दीदी कौन होती हैं ;मुझे बताने वाली या समझाने वाली। कैसे कह रही थी कि तुम घर खर्च चलाने में मेरी मदद कर रही हो ;जैसे मैं अपनी बीवी के टुकड़ों पर पल रहा हूँ। "
"देवेन ,दीदी मुझे बचपन से ही बहुत प्यार करती हैं। उन्हें मेरी फ़िक्र होती है ;इसलिए ऐसे कह दिया होगा। एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दो ;इतनी सी बात को दिल पर मत लो। ",रिया ने शांति से देवेन को उसी की भाषा में कहा।
"कैसे निकाल दूँ ?",देवेन ने कहा।
"जैसे मैं काजल दीदी की बातें एक कान से सुनकर दूसरी से निकाल देती हूँ। तुम्हारे साथ तो पहली बार हुआ है ;मेरे साथ तो ऐसा कितनी ही बार हुआ है। अगर तुम्हारी बहिन को तुम्हारी फ़िक्र हो सकती है तो मेरी बहिन को क्यों नहीं। ",रिया ने शान्ति से कहा और वहाँ से चली गयी।
देवेन के पास अब बोलने के लिए कुछ नहीं था। देवेन ने अपनी काजल दीदी को क्या कहा ;रिया नहीं जानती ;लेकिन उस दिन के बाद से कम से कम काजल दीदी ने तो रिया को अच्छी पत्नी के फ़र्ज़ याद दिलाने बंद कर दिए थे।
