परवरिश
परवरिश
बड़े बेटे को यादकर रमा की आँखों में आँसू आ गए।मन ही मन सोच रही थी,कि परवरिश तो दोनों बेटों की मैंने एक जैसी की और एक जैसे ही संस्कार दिए,फिर कहाँ कमी रह गई।
छोटा बेटा मुझे छोड़कर कहीं जाता नहीं और बड़ा है,कि कभी अपने पास बुलाता नहीं।
तभी रमा की नजर बालकनी में रखे दो गमलों पर गई। अपने आँसू पोंछ वह गमले में लगे पौधों को देखने लगी।एक पौधा कुम्हला गया था, वहीं दूसरे पौधा बड़ा हो गया था उसमें फूल भी निकल आए थे।
दोनों पौधे उसने एक ही दिन लगाए थे,एक जैसा ही खाद पानी दिया।दोनों को ही एक ही प्रकाश में रखा फिर क्यों एक मुरझा गया और एक फल फूल रहा है?
उसके विचारों को तब विराम लगा, जब छोटा बेटा उसे ढूँढता हुआ बालकनी में आया और बोला-
"माँ, लगता है पौधों को लेकर आप कुछ ज्यादा ही दुखी हो रही हो।अब आपने तो दोनों की एक जैसी ही देखभाल की पर दोनों ने अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार चीजों को ग्रहण किया। इसलिए आप अपने को दोषी न समझो,बल्कि खुश रहा करो फूल वाले गमले को देखकर।"
"सच कहा तूने बेटा" रमा ठंडी आह भरते हुए बोली।