अनपढ़
अनपढ़
रमा की बहू रिया की किट्टी पार्टी चल रही थी,वह चाय की ट्रे लेकर ड्रॉइंग रूम आई तो अचानक उसके हाथ से ट्रे छूटकर नीचे गिर गई।ये देख रिया चिल्लाई-"एक भी काम इस बुढ़िया से सही से नहीं होता,अनपढ़ गँवार कहीं की।इतने महँगे कप प्लेट तोड़ दिए"और रिया ने जैसे ही सासु माँ को मारने के लिए हाथ उठाया,तो उसकी सहेली मीना ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली-"ये क्या कर रही हो रिया?अपने से बड़ों पर कोई हाथ उठाता है क्या?हमारे घरों में भी ऐसे बुजुर्ग हैं,जो पढ़े लिखे नहीं हैं पर हमनें कभी उनपर हाथ नहीं उठाया ना ही कभी उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया"
"शर्म आती है तुम्हें अपना दोस्त कहते हुए,आज तुमने हम सब का सर झुका दिया।शिक्षा ये कतई नहीं सिखाती,कि हम अपने संस्कार भूल जाएं।बल्कि शिक्षा ने तो सदा विनम्र रहना सिखाया है।हम सब जा रहीं हैं,हमें तुम जैसी पढ़ी लिखी अनपढ़ दोस्त की कोई जरूरत नहीं है।"
वहाँ बैठी रिया की सभी सहेलियों ने मीना की बात को अपनी सहमती दी और उसके साथ चली गईं।रिया की हालत ऐसी थी,मानों काटो तो खून नहीं।उसे लगा जैसे किसी ने आसमान से सीधा नीचे धरती पर फैंक दिया हो।अपनी जिस पढ़ाई पर उसे अभी तक गर्व होता था,आज शर्म महसूस हो रही थी।आँखों में आए आँसुओं को पोंछते हुए वह सासु माँ के कमरे की ओर चलदी,अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने।