एक लोहार की

एक लोहार की

2 mins
618


सरोज ड्राइंग रूम में बैठी सुबह की चाय पी रही थी और पास बैठा रोहित अखबार पढ़ रहा था।डरते,सकुचाते वह रोहित से बोली-"बेटा एक बात कहूँ तुझसे।"

"हाँ, बोलो माँ।"

"तू ऑफिस चला जाता है, उसके बाद बहू बस खाना देकर अपने कमरे में बंद हो जाती है।"

"मेरे से दिनभर बात नहीं करती।अकेले में मेरा जी घबराता है।"

"तू उसको बोल थोड़ा आराम करके कुछ देर मेरे पास बैठ जाया करे।"

'माँ आपको वह खाना तो बनाकर खिला देती है ना।अब आप चाहती हो वह आपके पास भी आकर बैठे।"

"आजकल किसी से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जो जितना कर दे,बहुत है।"

बेटे से ऐसे जवाब की आशा ना थी,सो सुनकर सरोज दुःखी हो गईं। दरअसल पति के जाने के बाद बहुत अकेली हो गईं थी। बड़ा बेटा विदेश में रहता था। साल दो साल में आता था।स्वास्थ्य की वजह से ना अकेले रह सकतीं थी,ना ही विदेश जा सकती थी मजबूरन छोटे बेटे के साथ रहना पड़ता था।

शाम को रोहित ऑफिस से आया तो सीधा पूजा के पास रसोई में चला गया। कुछ देर बाद दोनों पति पत्नी माँ के पास आकर बैठ गए। 

सरोज खुश हो गई...कितना समझदार है मेरा बेटा,माँ के दुःख को समझता है..

सुधा रोहित को कोहनी मारते हुए बोली-"माँ से पूछो ना।"

रोहित थोड़ा झिझकते हुए बोला-"वो माँ ऐसा है, कि मैंने फ्लैट खरीदने के लिए बैंक से लोन लिया था। पिछले दो महीने से किश्तें नहीं भर पाया था। आज बैंक से नोटिस आया है,किस्तें नहीं भरीं तो जुर्माना लग जाएगा। अगर आप अपने एकाउंट में से एक लाख रुपये दे दोगी तो समय से पैसे भर दूँगा।"

एक पल को सरोज भावुक हो उठी,पर बेटे ने सुबह जो नसीहत दी थी उसी पर विचार करते हुए बोली-" मैंने तुम दोनों भाईयों को पहले ही तुम्हारा हिस्सा दे दिया था।अपना खर्च मैं स्वयं उठाती हूँ।अब तुम्हारे कर्जे भी मैं ही उतारूँ...ऐसा कैसे सोच लिया तुमने ?

रोहित समझ गया कि वह अपने ही बिछाए जाल में फँस चुका है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama