प्रतिशोध day-13
प्रतिशोध day-13
"रानी साहिबा, राजकुमार रणविजय ने महाराज के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया है। पूरे राजमहल में इसी पर चर्चा हो रही है। ",रानी कृष्णा की बेहद क़रीबी दासी ने आकर बताया।
राजमहल में एकदम से बढ़ी गहमागहमी को देखकर रानी ने अपनी दासी को सम्पूर्ण जानकारी लेने के लिए अभी कुछ समय पहले ही भेजा था।
"अच्छा। ",रानी कृष्णा ने कहा।
"रानी साहिबा, महाराज पधार रहे हैं। ",तब ही प्रहरी ने उद्घोषणा की।
महाराज ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महाराज को देखते ही दासी ने महाराज का अभिवादन किया और कक्ष से बाहर निकल गयी।
"महाराज, राजकुमार रणविजय के बारे में जो सुन रहे हैं ;क्या वह सत्य है ?",रानी ने प्रश्न किया।
"दुर्भाग्य से एकदम सत्य है। ",महाराज ने कहा।
"अब क्या होगा ?",रानी कृष्णा ने पूछा।
"हम विद्रोह का दमन करने जा रहे हैं। आपसे क्या रणविजय ने कभी ऐसी कोई चर्चा की थी ?आप उनके बेहद करीब रही हैं।",महाराज ने पूछा।
"नहीं, हमें तो स्वयं को ही विश्वास नहीं हो रहा है।अब आपको क्या कहें ?",रानी कृष्णा ने कहा।
"ठीक है; जल्द ही वापस लौटते हैं। ",महाराज ने कहा और वहाँ से उठकर चले गए।
"महाराज,अभी तो आगाज ही हुआ है ;अंजाम तो देखना शेष है।मेरी प्रतिज्ञा शीघ्र ही पूर्ण होने वाली है। ",रानी कृष्णा महाराज के जाते ही बुदबुदाई।
एक विशाल साम्राज्य के स्वामी महाराज विक्रम सिंह की लिप्सा लगातार बढ़ती ही जा रही थी। उन्होंने अपने आसपास के सभी राजा-महाराजाओं के राज्यों को साम, दाम,दंड, भेद से हड़प लिया था। रानी कृष्णा के पति दक्ष भी एक ऐसे ही छोटे से राज्य के राजा थे। विक्रम सिंह ने रानी कृष्णा के सौन्दर्य के बारे में सुना और रानी कृष्णा को हासिल करने के लिए उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया। विक्रम सिंह की शक्ति के सामने दक्ष ज्यादा समय तक ठहर नहीं सके थे।
रानी कृष्णा को जैसे ही दक्ष द्वारा युद्ध में वीरगति प्राप्त करने का समाचार प्राप्त हुआ ;एक बार तो उन्होंने सती होने का निर्णय ले ही लिया था। लेकिन फिर उन्होंने सोचा, "विक्रमसिंह से प्रतिशोध लेना होगा।प्रतिशोध लेने के लिए विक्रम सिंह के राजमहल में प्रवेश करना ही होगा। "
कृष्णा, विक्रम सिंह की एक और पत्नी बनकर उनके राजमहल के अंतःपुर का हिस्सा बन गयी। कृष्णा जानती थी कि, "उसे पटरानी का दर्जा कभी नहीं मिलेगा। "
विक्रम सिंह की पटरानी, सबसे बड़ी रानी के पुत्र विश्वमोहन अघोषित युवराज थे। यह तय था कि विक्रम सिंह के बाद विश्वमोहन ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। रणविजय, विश्वमोहन से छोटे थे और अधिक योग्य थे। कृष्णा ने किशोर होते रणविजय से नज़दीकियाँ बढ़ाना शुरू किया। वह रणविजय की अच्छी दोस्त,मार्गदर्शिका, गुरु सब कुछ बन गयी थी। कृष्णा धीरे-धीरे रणविजय के दिमाग में यह बात बिठाने लगी कि, "आप अधिक योग्य हैं। युवराज तो आपको ही बनाना चाहिए। आपके पिताश्री भी कहीं न कहीं आपको ही अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते थे। लेकिन बड़ी रानी साहिबा के कारण कुछ स्पष्ट नहीं कह पाते। "
आज से 2 दिन बाद विश्वमोहन का अभिषेक कर, उसे युवराज घोषित करना था। रणविजत ने महाराज से बात करनी चाही थी; लेकिन बातचीत से जब कोई हल नहीं निकला तो उसने अभिषेक के दो दिन पूर्व विद्रोह कर दिया।
अगले दिन ही विक्रम सिंह की मृत्यु का समाचार आया। रणविजय के हाथों विक्रम सिंह मृत्यु को प्राप्त हुए। विक्रम सिंह की इस तरह हुई मृत्यु से उनके सम्पूर्ण राज्य में जगह-जगह विद्रोह प्रारम्भ हो गए। गृह युद्ध से विशाल साम्राज्य छिन्न -भिन्न हो गया और कृष्णा का प्रतिशोध पूर्ण हो गया।