प्रसव पीड़ा
प्रसव पीड़ा
राकेश राकेश उठो ना सुनो किसी के कराहने की आवाज आ रही है शायद भाभी।
राकेश –सो जाओ ऐसे समय ऐसा हीं होता है रिया।
रिया –मतलब भाभी को दर्द शुरू हो गया है और तुम।
आह्ह माँ ओह माँ।
रिया से रहा ना गया तुम सो जाओ घोड़े बेचकर भाभी भाभी कमरे में नही हैं स्वयं बुदबुदाती हुई |आवाज तो शायद वहाँ से
ओह भाभी भाभी यह अँधेरी झोपड़ी दरवाजा खिड़की बंद
तुरंत निकली माँ जी माँ जी यह क्या हो रहा है
माँ जी -क्यों गला फाड़ रही है
रिया –यह क्या हो रहा है।
भाभी –आह्ह्ह माँऽऽऽऽऽऽऽऽ
र
िया फिर भागी, क्या हुआ भाभी ? ठीक तो होना, आप कौन हैं ?
माँ जी -रिया रुको यूँ बार बार मत जा।
दाई –मैं दाई, यही काम है बहू
रिया – माँ जी देखिए भाभी की स्थिती मर जाएंगी उस अँधेरी झोपड़ी में पसीने से भींगी हुई हैं
माँ –आजतक तो कोई नही मरी
रिया –राकेश राकेश।
राकेश –क्या।
रिया –इसे रोको जो हो रहा है, पढ़े लिखे होकर भी, आदर करना ठीक है लेकिन आँख बंद कर लेना, प्रसव पीड़ा गर्व की बात है लेकिन यह, अगर आज।
आह चारों ओर सन्नाटा
रिया –नहीं, भाभी।