STORYMIRROR

Kanchan Pandey

Tragedy

4.5  

Kanchan Pandey

Tragedy

अनकही जज्बात

अनकही जज्बात

6 mins
479


कितनी बार उनकी डबडबाई आंखों को देखकर बहुत मन करता था कि एक बार तो पुछूं की आखिर क्या बात है क्या दर्द है लेकिन फिर मैं सहम जाता था कि मेरी यह दखल अंदाजी उनके मन को आहत ना कर दे कोई तो बात थी कि वह दर्द को यूं पी रही थीं भरा पूरा परिवार फिर यह.....

मन तो मेरा बेचैन हो जाता था लेकिन मेरे हाथ में कुछ था भी तो नहीं लेकिन मैंने एक दिन पुछ ही लिया क्या तकलीफ़ है मुझे बताइए शायद मैं कुछ न कुछ कर सकूं। याद है मुझे किस तरह उन्होंने डबडबाए आंखों के ऊपर अपनी दोनों भौं को तान कर कहा था भला मुझे क्या तकलीफ होने लगी और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि मेरे घर में जांच पड़ताल करो और बड़े आए तकलीफ पुछने वाले और वह तो चली गई और मैं भी अपने काम से कुछ दिनों के लिए बाहर चला गया लेकिन उनकी डबडबाई आंखें कभी कभी अपनी ओर ध्यान खींच ही लेती थी और मेरा मन उनके अन्दर चल रहे उस युद्ध को जानने के लिए एक छोटे बच्चे की तरह खुद से जिद करने लगता था।

इस तरह महीनों बीत गए और मैं अपने घर आया स्नान करने के उपरांत मैं बिस्तर पर लेट गया करवट बदलता रहा ना नींद ही आई ना मन को चैन इस तरह मैं घर से निकल पड़ा मानो मेरा कुछ छुट गया हो, सभी ने यही सोचा कि मेरा कुछ सामान स्टेशन पर या जिस रिक्शे से मैं आया था उसी पर छूट गया है लेकिन किसी को क्या मालूम कि यह मन कहां लेकर जा रहा था। मैं वहां तक पहुंच गया लेकिन न उनकी डबडबाई आंखें मिलीं न वो, हवेली में एक ताला के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दिया मैं आश्चर्यचकित हो गया पल भर के लिए जैसे सब कुछ रूक गया हो । मैं वहां जाकर बैठ गया जहां वह बैठा करती थी कि हो ना हो कुछ क्षण पश्चात वह आ जाएं और मैं एक बार और उनको छोटे बच्चे की तरह जिद करके बताने के लिए मना लूं। सहसा मेरा ध्यान तब टूट गई जब मुझे लगा कि मेरे कंधे पर किसी ने अपना हाथ रखा हो। मुझे लगा कि हो न हो, वही हैं लेकिन मेरा यह भ्रम तब टूटा जब मैंने पलट कर देखा तो यह क्या यह तो एक पीपल का पत्ता था जो शायद मेरे साथ मिलकर वही कर रहा था। उनकी तलाश या वह जानता था कि वह कहां हैं या वह कहां चली गई और शायद बताना चाहता था फिर यह क्या हुआ अचानक सामने से हवेली गायब हो गई थी, मैंने अपने हाथों से आंखों को पोछते हुए जब इधर उधर देखा तो यह तो गोधूली बेला हो गई और मैं ना जाने कब से खोया हुआ था, चरवाहे अपने गायों को लेकर वापस अपने अपने घरों की ओर जा रहे हैं और इसी कारण मुझे हवेली नहीं दिखाई दे रही थी क्योंकि धूल कण हवाओं में उड़ रहा था। मैं अपने घर की ओर लौट आया और घर पहुंच कर मेरी मां ने मुझसे पूछा कमल कहां चला गया था क्या कुछ छूट गया था, स्टेशन गया था उत्तर ना पाकर कमल कमलनाथ कहां खोया हुआ है कुछ पुछ रही हूं। मां की डांट ने मानो नींद से जगा दिया हो और मैं जाकर मां की गोद में सिर रख कर उनको सारी कहानी बता दी, मेरी मां बड़े प्यार से माथे पर हाथ फेरते हुए कहा तुम

नहीं जानते अम्मा नहीं रहीं जानोगे भी कैसे मैंने कभी बताया ही नहीं मैं एक छोटे बच्चे की तरह अपनी मां की गोद में सिमट कर रोता रहा फिर एक प्रश्न ने मेरे दिमाग में हलचल मचा दी और मैं अपने आंसुओं को अपनी मां के आंचल में पोछते हुए मां से पूछा कि आखिर अम्मा को क्या हुआ क्या वह बीमार थी या फिर...... मेरी मां ने बस इतना बताया कि अरे उम्र हो गई थी इसलिए नहीं रहीं मैं ने फिर कुछ पुछना चाहा तो मेरी मां ने बस इतना कहा कि अब चलो खा लो सफर से थककर आए और दिन में जो घर से निकले हो अभी आए हो इस तरह खाना समय पर नहीं खाओगे तो बीमार हो जाओगे और हां खाकर समय पर सो जाना नही तो कोई किताब पलट कर मत बैठ जाना मैं अपनी मां के गुस्से को देखते हुए बिना कुछ सवाल जवाब करते हुए खाना तो खा लिया लेकिन नींद नहीं आ रही थी, मैं रात भर अपने कमरे में चक्कर लगाता रहा और मन ही मन खुद को कोसता रहा कि मैं उस दिन और कुछ देर ठहर कर अम्मा से क्यों नहीं पुछा की आखिर क्या बात है यही होता ना कि वह मुझ पर गुस्सा करतीं चिल्लाती ज्यादा से ज्यादा मारती क्या कभी उन्होंने मुझे कोई चीज के लिए मना किया था जब मैं छोटा था और उनकी हवेली में खेलने जाया करता था और कैसे मन की बात जान जाती थी माना वह अम्मा थी लेकिन मुझे भी बेटे से कम नहीं मानती थी मां बता रही थीं कि अब उनका कोई यहां नहीं रहता है क्या यही ग़म उनको खाए जा रहा था क्या यह पारिवारिक पीड़ा उन्हें मौन कर दिया था या फिर बड़े बाबूजी के जाने के बाद से ही अम्मा यूं गुमसुम हो गईं थीं उस समय भी तो मैं नहीं था मैं एक बार फिर पलंग पर बैठने गया लेकिन उनकी डबडबाई आंखों की स्मृति मुझे आज बार-बार उन बातों की ओर ध्यान आकर्षित कर रही थी जो मेरी आत्मा जानने के लिए व्याकुल थी।

सुबह होते ही चारों ओर एक ही बात चल रही थी कि पहले अम्मा गईं अब हवेली भी नहीं रहेगी मैं भी हवेली की ओर जाने लगा तो मां अपनी कसम देकर रोक ली। जानती थीं कि मैं टूटती हुई हवेली नहीं देख पाऊंगा और उन्हें डर था कि मैं क्रोध में आकर कुछ ऐसा नहीं कर जाऊं जो बाद में पछताना पड़े मैं भी कई दिनों तक नहीं गया, हां लेकिन यह सच है कि उस पीपल के पेड़ से सटी जमीन पर अम्मा की हवेली है जिसमें बहुत अम्मा रहती हैं और उन लाचारों की भी मदद की जाती हैं और पीपल के पत्ते आज भी टूट कर मेरे पास आते हैं, सभी अम्मा बैठ कर बातें करती हैं लेकिन आज भी उस उड़ते हुए धूल के पीछे जहां उनकी हवेली थी वहां से उनकी डबडबाई आंखों को सोच कर मैं व्याकुल हो जाता हूं और मैं पुछ लेता हूं ना जाने किससे आखिर क्यों आपकी आंखें काले बादलों की तरह आंसुओं को समेटे हुए अपने दुखों में खुद डुबी रही क्या बात थी जो आप की आंखें डबडबाई रहती थी अब तो बोल दीजिए शायद वह अम्मा हीं थीं और मैं उस धूल के पीछे से अम्मा को अब इधर मुस्कुराते हुए देखकर मैं भी क्षण भर के लिए मुस्कुराने लगता हूं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy