वो जिन्दगी के - दो साल
वो जिन्दगी के - दो साल
दरवाजे की घंटी बजते हीं बच्चे एक साथ दौड़ पड़े पापा आ गए, पापा आ गए और यह आवाज दौड़ने के कारण दुगुनी होकर सारे घर में गूंज रही थी।
माँ [प्राची] ने कहा - अरे बच्चों दौड़ो मत गिर जाओगे, लेकिन हवा को कोई रोक पाया है दरवाजा खुलते हीं सामने कमल बहुत खुश नजर आ रहे थे, उन्होंने खुशी में बच्चों को अपने बाँहों में भर लिया
प्राची को अपने पति कमल के चेहरे को पढ़ने में तनिक न देर लगी वह रसोईघर घर गई और फटाफट पानी और चाय के साथ हाजिर हो गई।
प्राची- कमल को चाय की प्याली देते हुए बोली क्या बात है ?आज तो खुशी बाहर तक छलक रही है।
कमल ने चाय की प्याली रखते हुए कहा बात हीं ऐसी है प्राची मैंने जो प्रमोशन की परीक्षा दी थी वह मैं पास हो गया जानती हो प्राची अब मैं वह सारी खुशियाँ अपने परिवार दे पाऊंगा जिसके लिए सभी आजतक तरसे थे।
कमल- ओ प्राची प्राची प्राची आज मैं बहुत खुश हूँ, जो मैं अपने परिवार के लिए सोचा था उसको पूरा करने का समय आ गया है ।
प्राची की खुशी भी बांध तोड़ते हुए उसकी आँखों से छलक गए और वह एकटक कमल को निहारे जा रही थी वह कमल की खुशियों में यूँ खो गई कि सिर्फ कमल का मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके आँखों में समाए जा रही थी और दूर से आती कोई आवाज उसके कानों के पर्दों से टकराकर वापस जा रही थी आज तो उसका चेहरा हीं सब कुछ बयाँ कर रहा था।
प्राची ने शायद अर्शों बाद चैन की साँस ली थी क्योंकि वह तो कमल का मुस्कुराता हुआ चेहरा भूल हीं गई थी।
कुछ दिन बीतने के पश्चात एक दिन प्राची ने कमल से कहा
प्राची -रिजल्ट आए कितने दिन हो गए अभी तक आपको प्रमोशन का अनुमति पत्र भी नही दिया गया है एकबार बोस से बात करके देखिए क्या कहते हैं ?
कमल - तुम घबराओ नही, हो जाएगा ऑफिसियल वर्क में समय तो लगता हीं है
बहुत सोच विचार के पश्चात वह बोस से मिला तब यह बात जान कर बड़ी हैरानी हुई कि कमल के प्रमोशन तो हुई है लेकिन कुछ दिन उसी पद पर कार्य करने होंगे क्योंकि जिस पद के लिए प्रमोशन हुआ है वहाँ सीट अभी खाली नही है।कमल को यह जान कर बड़ी हैरानी हुई लेकिन परिवार की स्थिती और भविष्य को सोचकर बोस से मुँह लगाना उचित नही समझा और बोस का आदेश को भगवान का आदेश मानकर वह उसी पद पर काम करता रहा।
घर आते हीं प्राची क्या हुआ आपने बात की बोस से या फिर भूल गए।
कमल –तुम बहुत परेशान रहती हो जाएगा कौन-सा आफिस भागा जा रहा है या मैं।।।।
बोलते –बोलते कमल गुसलखाने की ओर बढ़ा लेकिन फिर तुरंत मुड़कर आकर सोफे पर बैठ गया
प्राची कमल के मन की छटपटाहट समझ रही थी लेकिन उसके दर्द को और हवा देकर बढ़ाना नही चाहती थी पीड़ा तो उसे भी खाए जा रही थी।
गर्मी से सर्दी आ गई सर्दी से फिर बरसात लेकिन जीवन की गाड़ी वहीँ की वहीँ थमी हुई थी।एक दिन सब्र की बांध टूट हीं गई और प्राची ने कमल को कहा।
प्राची-कमल एक बात कहूँ बुरा तो नही मानोगे।
कमल –नही कहो प्राची क्या हमदोनों के बीच कभी बुरा या अच्छा आया है क्या ?
प्राची –देखिए अब तो कितने महीने होने को आए और अब इसे महिना का नाम नही देकर साल कहें तो गलत नही होगा मेरी बात माने तो एकबार फिर बोस से बात करके देखिए शायद कुछ हो।
कमल –ठीक हीं कहती हो एकबार बात करके देखता हूँ।
कमल ने फिर एकबार बोस से इस विषय में बात कर हीं लिया लेकिन फिर वही बहाना के साथ बोस निकल लिए अब तो कमल को लगने लगा कि शायद उसकी दिन रात की पढ़ाई और उसके परिवार का त्याग का कोई प्रतिफल नही मिला और इस महंगाई ने उसकी बची खुची हिम्मत तोड़ दी थी लेकिन प्राची का आत्मविश्वास उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती थी। जिसके बल पर कमल को हिम्मत आती थी।
एक दिन तो हद हो गई जब बोस ने कहा कमल –कमल
कमल –हाँ सर क्या बात है ?कमल मन हीं मन सोच रहा था शायद आज प्रमोशन का लेटर मिल जाएगा।
बोस –थोड़ा मुझे घर छोड़ दो ।
कमल –चलिए सर
लेकिन कमल को कहाँ पता था कि आज से उसका जीवन में एक परिवर्तन होने जा रहा है अब क्या था प्रत्येक छोटा बड़ा काम के लिए कमल का दौड़ाना शुरू वह चाहे घर का काम हो या आफिस का कमल, सब यह सोच कर सहता रहा की शायद बोस किसी प्रकार खुश हो जाएँगे |
कमल –प्राची देखो मैं अब इन सब से थक गया हूँ चलो कहीं और हीं मैं कमा कर अपने परिवार को पाल लूँगा |
प्राची –परेशान मत होइए।
कमल - कैसे परेशान नही होऊं, परिवार के सुख के लिए परिवार को पल- पल दुःख देकर पढ़ा, परीक्षा दिया जरा सोचो उन दिनों में कैसे तुम अकेले हर परिस्थिती में डटी रही लेकिन तुम्हारे उस त्याग का कोई फल नही मिला।
प्राची –कैसे फल नही मिला प्रमोशन हुआ। हाँ, मानती हूँ समय लग रहा लेकिन आजकल में लेटर भी मिल जाएगा |
कमल –नही बहुत हुआ मैं कल बात करके देखता हूँ।
प्राची-देखिए गुस्से में मत आइएगा ।
दूसरे दिन कमल ने बोस से मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन अब तो बोस से मिलना बहुत मुश्किल होता जा रहा था।दिन बितता जा रहा था कमल के अंदर की शक्ति खत्म होने की कगार पर थी लेकिन अपने परिवार का दुःख उसे लड़ने के लिए मजबूर नही शक्ति प्रदान कर रही थी।
एक दिन उसने सोच लिया कि जब तक वह बोस से नही मिलेगा वह घर नही जाएगा।
आखिर बोस को लाचार होकर कमल से मिलना पड़ा।
बोस –क्या बात है कमल तुम तो परेशान कर दिए हो, मैं कितना बार कह चुका हूँ कि अभी जगह खाली नही है देखो जगह खाली होते हीं तुम्हें तुम्हारा पोस्ट दे दिया जाएगा।
कमल –सर मैं आपको क्या परेशान करूँगा, परेशान तो मैं हीं हो गया हूँ, जब जगह नही थी तब वेकेंसी क्यों निकाली गई, देखते देखते दो साल होने को आए लेकिन प्रमोशन का क्या फायदा ?
बोस –जब प्रमोशन हुई है तब क्या परेशान होना तुमको तुम्हारा टॉप पोस्ट मिल हीं जाएगी।
कमल –यह तो मैं बहुत दिन से सुन रहा हूँ।
बोस –तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ बात करने का तरीका नही रहा तुममे हद हो गई।
कमल –नही मैंने ऐसा तो नही कहा लेकिन।
बोस –लेकिन क्या तुम्हारी बातों से विरोध का भाव झलक रहा है।
कमल –नही सर, सम्भलते हुए।
बोस –अच्छा अच्छा जाओ कितना समय हो गया है मेरे बच्चे मेरा इंतजार कर रहे होंगे तुमको तो रोज वही बस।
प्राची –आज बहुत देर हो गई
कमल –हाँ, जरा बोस से बातें थीं।
प्राची –कुछ उल्टा – पुल्टा तो नही बोल दिए, ओह ! अब क्या होगा ?
कमल –क्या होगा, सभी को तो मैं हीं गलत लगता हूँ, तुम तो मुझे भी कमजोर कर देती हो सिर्फ बात की है जब जगह खाली नही थी तब वेकेन्सी निकालने का तात्पर्य क्या था, अब अपने अधिकार के लिए भीख माँग रहा हूँ।
प्राची –चलिए खाना कहा लीजिए।
कमल –मैं नही, कुछ सोचकर, अच्छा चलो नहीं तो तुम्हें भी नही खाने का बहाना मिल जाएगा।
कमल-क्या बच्चों ने खाया, आज मिल भी नही पाया।
अभी दो निवाला हलक के नीचे गया भी नही था कि मोबाईल की घंटी से प्राची की दिल की धड़कन तेज हो गई।
कमल ने मोबाइल उठाई
प्राची-क्या हुआ कमल
कमल –कुछ नही कल मीटिंग है बड़े साहब भी आ रहे हैं।
प्राची –न जाने बोस ने क्या आग लगाई है।
कमल –क्या होगा कुछ नहीं
अब तो रोज वही झिकझिक लेकिन और कुछ दिन बीतने के बाद कमल को पोस्ट मिल गया उस दिन कमल बहुत खुश था लेकिन अंदर हीं अंदर इस व्यवस्था से नाराज भी क्योंकि जो पोस्ट उसे दो साल पहले मिलना चाहिए था वह अब मिल रहा है।
कमल –प्राची जानती हो मेरे जीवन में यह बीते हुए दो साल का अब कोई अस्तित्व नहीं है।
प्राची –क्यों ?
कमल –क्योंकि उन लोगों का कहना है कि मानता हूँ कि प्रमोशन के बाद तुम वहीं कार्यरत रहे लेकिन तुम्हें रोज बड़े ऑफिस आकर हस्ताक्षर करना चाहिए था, तुम उसी ऑफिस में रहकर उसी पद के लिए हस्ताक्षर किए, अब
बताओ मुझे प्रमोशन का लेटर मिला नही मैं कैसे बड़े ऑफिस जाकर हस्ताक्षर कर आता और क़िस हक से क्या मैं दो ऑफिस में हस्ताक्षर करता अगर नही, तब तो मेरी सैलरी भी नही मिलती और प्रमोशन तो। यह कहाँ तक संभव होता।
प्राची – वाह !यह तो बहुत गलत बात है, क्या आपने बड़े साहब से बात नही की।
कमल –यह जमाना बहुत ख़राब है मेरे जैसों की कहाँ सुनते हैं कहाँ मैं दिलीप, शेखर से सीनियर था, देखो आज उनलोगों का प्रमोशन भी मेरे साथ हो गया, मेरे उन दो साल की कोई कीमत नही रही।
प्राची – अरे कल तक जहाँ आपके के लिए जगह नही थी आज वहाँ दो सिट और, कैसे ?
कमल –यही कलयुग है पगली चलो अब मेरा परिवार दुःख तो नही झेलेंगे। तुम तो खुश हो न ?
प्राची –हाँ, मैं बहुत खुश हूँ लेकिन अफ़सोस हो रही है, इस व्यवस्था को देखकर जिसमें आदर देने वाले को कमजोर समझ कर दबा दिया जाता है।
कमल –कोई बात नही और मुझे अपने लिए कुछ नही चाहिए।जीवन में जो एक आगे बढ़ने का उत्साह था वह तो कब का दफन हो चुका है। शायद, यही जीवन है आज सिर झुकाकर बात मानने वालों कि कोई मोल नही है, उनके सिर ऐसे हीं कुचले जाते हैं लेकिन शायद यह दो साल जीवन में पल -पल काँटे बनकर सामने आएँगे और मुझे इस समय का याद हीं नही दिलाएंगे अपने आपको पीछे होने का अहसास भी दिलाएँगे।