परिवार
परिवार


अनु परिवार की छोटी बहु अपने पति अपने नाती पोतों बहुओं बेटियों के बीच अपने आपको पश्चिम सभ्यता केबीच नये साल की घड़ियों रंगीनियाँ ने बारह बजाया।
नवासे जो विदेशी शिक्षा संस्कृति के अनुसार मेट्रिक की परिक्षा के बाद अपनो से दुर आत्मनिर्भर बनने आगे कीशिक्षा के लिये बाहर जाने वाला है। सारे परिजन को एकत्रित कर नये साल का उत्सव घर में ही मनाने आमंत्रितकिया।अपनी नानी को गौरवान्वित करते कहा - अभी बारह बजने में दो घंटे है। आप अपनी आप बीती घटनायेंससुराल के सुनाईयें।
अनु नानी ने मुस्कुराते कहा - मुझे फंनी गेम का एवार्ड तो नही देने वाले हो , मैं तो अब यहाँ के मफिंस केक।चाकलेट बड़े चाव से खाती हूँ मैंने दाँत भी नये लगवाये है।
तभी बेटे बहुओं बेटियों दामाँदो ने कहा -अभी तो क्लब पार्टी जाने कह रही थी।
मेरा तो कोई सुनता नही अब सुना दीजिये।
लगता है अब सब सुनने के इक्षुक है - अनु नानी ने कहना शुरू किया।
परिवार के विषय मुझे वो वाक़या याद आ रहा हैं ! जो बाबूजी कहा करते थे -परिवार एक साधना का तपतपस्या का नाम होता हैं। जिसके प्रभावशाली व्यक्तित्व की पहचान उसकी बहुमूल्य कृति स्वाभाविकक्रियाओं द्वारा सामाजिक आर्थिक राजनैतिक अभिव्यक्तियों के द्वारा जिसका सबका अपना अलग ही महत्वहोता हैं।
बाबूजी परिवार के मुखिया थे ! उसके पहले उनकी माँ याने पारिवारिक जिम्मेदारी संभालती मुखिया का कर्तव्यनिभाती थी। बाबूजी के पिताजी तांत्रिक काली के उपासक अवघड़ थे !
बाबूजी अपनी माता जी के अंध भक्त थे !
जो उन्होंने कह दिया -पत्थर की लकीर जिसे सारे परिजनों को ३० लोगों का सामूहिक परिवार एक ही आवाज़याने माताजी बाबूजी के विचारों आदान प्रदान से चलता था।
बाबूजी ,माताजी रात का भोजन परिवार के सभी सदस्यों उपस्थिति पर होता।
किसी ने कहा - घर में जगह की कमी है। जवाब होता दिल में जगह होनी चाहिए ? वक़्त बेवक्त भोजन कीव्यवस्था करना होता तो जवाब यही होता - हमारी बहुये अन्नपूर्णा हैं ! वाद विवाद की स्थिति&n
bsp;बन जाये तोकहते - वाणी में शहद , सिर पर बर्फ़ रखो फिर सोच आगे बढ़ो ,जवाब हाँ में ही देना होता।
छोटी बड़ी समस्याओं का निदान शंख फूँक विजय नाद की तरह होना चाहिये !
स्नान ध्यान पूजा पाठ रूप बनाव शृग़ार खान पान व्यय अपव्य मितव्यतापूर्ण मनोरंजन परिजनों की सहभागिताहोती ख़ामियों को नज़र अन्दाज़ करने की आदत डालोगे। तो , लक्ष्य और रास्ता खुदबख़ुद सुगम सरल होजाएगा।
और बाबूजी की माता जी कहती - जहाँ राम लखन की तरह बेटे भाई ,लक्ष्मी ,सरस्वती की तरह बहुये ! हो।नवदिव्य स्वरूपा बेटियाँ हो ,सुभद्रा की तरह बहने हो !वहाँ सबका अच्छा हो ना स्वाभाविक होता हैं।
क्षणिक स्वार्थ के लिये बार बार ठगी जाती हूँ !
पर अपनी नज़रो में नहीं ,कुछ तो लोगों का विश्वास जीत सकूँ ,ऐसी लालसा बनी रहती !
और यही आत्म विश्वास मुझे बेटे (बाबूजी )में दिखाई देता है। अलौकिक शान्ति प्रदान करता हैं ! अपनी वाणीकी मधुरता से लोगों की सुनने की ललक बनाये रखता है।
अब दादी नब्बे वर्ष की हो चुकी है। बाबूजी बहतर ,
मेरी कही बातों को ध्यान से सुन तीसरी और चौथी पीढ़ी भी अनुसरण कर ये कहती हैं !
“हम अच्छे तो जग अच्छा ,
जग अच्छा तो हम अच्छें
जीवन होगा हमसे जगमग ,
जीवन से फिर यह जग जगमग
साथ रहे मिलजुल कर
जब बिछड़े नये रंग रूप मिलें
बिछड़कर कल की बात ना सोचे
सोचें आने वाले स्वर्णिम कल
की उसे बनाये एक धरोहर
जोड़ जोड़ कर निधि पल पल की हर दिन को नये साल की तरह मनाएँगे।
ढेरसा प्यार परिजनों के लिये जिसे आगे बढ़ाये !
और बच्चों ने अनु नानी के गले में महकें गुलाबों की माला डाल नये साल की बधाई चॉकलेट खिला कर दी।
नानी ने बच्चों को आशीर्वाद नये वर्ष का उपहार देते कहा - देखो में तुम सबको रंगीन माला के मोती कोपहनाती हूँ तुम सब इसी माला के मोती हो जिसे पीरों कर इसी में रहना हैं इसकी चमक आसमान में चमकते सितारों की तरह बरकरार रखना हैं।