मेरा गाँव रामरहीम पुरा

मेरा गाँव रामरहीम पुरा

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”बप्पा आजी का गाँव रामरहीमपुरा फस्ट जनरेशन “


ये गाँव की वो चौपाल है। जो सत्य, अहिंसा, की राह दिखा, अलगु चौधरी  जूम्मन काका की तरह न्याय दिलाता है। अपने नाम गाँव का वर्चस्व क़ायम रखता है। जाति धर्म का भेद नहीं, नाम भी ऐसा “रामरहीमपुरा।"

गोलू मम्मा,आख़िर इस गाँव का नाम रघुरहीमपुर क्यों रखा, ये अपने दादा जी से जा कर पूछना -गाँव पहुँचते ही दादा जी से सवालों की झड़ी लगा दी।

दादा जी - उत्तर दिए -रघु और रहीम दोनों के पितामह,आदि काल से इस गाँव में आकर, रीति रिवाज खानपान अलग होते हुए भी ऐसी दोस्ती एक मंदिर बनवाया। दूसरे ने मस्जिद। 

दया धर्म नैतिकता मानवता का ऐसा पाठ पढ़ाया। की जितने भी दिन, हीन आते सब को सुखद गुज़र बसर ज़िंदगी मिल जाती।

गाँव वालों ने इस गाँव  का नाम ऊधमपूरा से बदल रघुरहीमपुर रख दिया।


गोलू ने दादा जी दूसरा प्रश्न किया ? यहाँ के लोगों के नाम झगरू, फकरु, समरू, डमरू, हँसेढु, शेरू, कमालू,जमालु  इतने विचित्र क्यों होते है। 

दादाजी ने इन नामों की अपनी अपनी विशेषताएँ हैं,जैसे ,जागरु , तुम बोलोगे ना पर झगरू सब के प्राबलम साल्व करता है।फकरु सब का मनोरंजन करता है। समरू डमरू व्यायाम शाला चलाते है। शेरू और क़मलू गाँव में आईं विपत्तियों से मुक्त करते, हँसेढु जमालुहमेशा सेवा के लिये तत्पर।इस तरह सब मिल जुल कर यहाँ के पशु ,पक्षी ,नदी , तालाब, पेड़, पौधों से प्यार कर जीना सिख सिखाना जानते हैं। 

जीवंत रहते राहतें देते। सभी ग्रामवासी अपने जानवरों का संबोधन सगा घोड़ा चचेरा घोड़ा गाय माई, ममेरी बकरी की तरह करते।

गोलू दादा जी साथ हँसी के ठहाके गूँजने लगे, दादा जी गोलू से कहते, ये सब आँखों देखा वर्णन, गाँव कीचौपाल,अपने निबंध में लिख सकते हो ना,


दादी लाल चौरा में बड़ी दादी   “सेकेंड जनरेशन “

आज वो दिन याद रहे है। वीरान पड़ा है लाल चौरा - जहाँ निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती थी। दादी माँ बड़े चाव से आगंतुको का इंतज़ार बेसब्री करती कहती  बाँउआसिंन चाय ले आ।जो परचित निकलता उसे रोक चाय पीला कर स्नेह प्यार का उदगार भर कहती ये मेरी छोटी बाँउआसिंन है। ख़ुद काली चाय पीती है । पर तुम्हें दूध वाली चाय पिलाएगी।सुबह अपनी पत्नी को अपने घर के काम के बाद यहाँ बाँउआसिंन का हाथ बांटने भेज देना।और ये पैसे पकड़ ये लाल कपड़े पहने बैठे बाबाजी को दो रसग़ुल्ले,और मुझे दो गुलाबजामुन मेरे लिये लाना। ये ५रू तेरे लिए रोज़ क , और हाँ - भेज देना अपनी पत्नी को दो घंटे बाद पैसा खानासब मिल जाएग ।  मन के अनुसार पर रोज़ आना होगा। ज़रूरत में हम ही काम आएँगे। २५- ३० लोगों के परिवार में व्यवस्था तो बड़ी बाँउआसिंन के हाथ में होती जहाँ किसी प्रकार कमी की कोई गुंजाईश ना होती।और सब के ऊपर शेर के ऊपर सवाशेर बड़ी दादी होती। जिसे नाराज़ करने का हक़ सिर्फ़ बाबाजी को था।बाबा जी के जिगरी दोस्त के नाती आ कर कहते - जिसे दादी ने राहु केतु नाम दिया। 

बड़ी दादी से आ कर कहते - चलिये हमारे घर चलिए बहुत कोहराम मचा हुआ है। आप के पहुँचने भर से सारा माहौल सुधर जाता है, काश हमारे घर में भी आप की तरह एक समझदार दादी होती। इस तरह मुहल्ले भर की समस्याओं का निदान दादी चुटकियों में करती, शाम लाल चौरे की रौनक़ बढ़ जाती ,मनोरंजन का साधन होता।ही साथ अपनी अपनी ग़लतियों की सीख मिल जाती। करोगे तो अपने नही करोगे। तो भी अपने लिए। जैसी करनी वैसी भरनी भुगतने तैयार हो जाओ। 

कोई ये नही कहता हमारे घर दख़ल अंदाजी की ज़रूरत नही है। 

बदलते समय और परिवेश ये सारी बातें गुम हो चुकी है। लाल चौरे के इर्दगिर्द आलीशान हवेलियाँ बन चुकी है। बड़ी  दादी की बातें आज तीसरी चौथी पीढ़ी में गूँजती है...


अम्मा जी का गाँव  “थर्ड जनरेशन “

दादी की सिख आज बीत दिन की तरह अपना वजूद क़ायम रखती हैं। 

गर्मी की छुट्टियाँ में बच्चें दादी के घर गाँव आयें हुए थे। बड़े दिनो बाद दादी को मौक़ा मिला था।परिजनों के साथ अपना वर्चस्व स्थापित कर बच्चों को सिख देना दिन भर तुम सब बच्चे दादी के घर आकर भी, टी . वी  आई पेड ,फ़ोन में गेम खेलने में लगे रहते हो , तुम्हारे मम्मी पापा शोर गुल ना हो , एटिकेट मेनर्स के चलते , येआधुनिक स्पोर्ट की चीज़ें दे, उनके कार्यक्षेत्र में बाधा ना हो, तुम्हारी अपनी क्षमताओ को कम कर दिया है। थोड़ा उछल कूद करते हो, ज़रा ज़रा सी बातों पर डाँट लगाई जाती हों।

अम्मा जी कहा - चलो आज, तुम सब बच्चों को पिकनिक पर गाँव की सैर कराने लिये चलती हूँ।अपनी मम्मी से परमिशन के साथ, वाटरबाटल लंच बाक्स अपने साथ रखो ।घर से निकलते ही आसमान पर, एकसाथ  परिन्दों को एक ही दिशा में उड़ते देख बच्चों ने पूछा ? अम्माजी इन्हें कोई गाइड की आवश्यकता नही होती,  अम्मा ने उत्तर दिया, ये आत्मनिर्भर निर्भीक हो स्वयं का जुगाड़ घोसला बनाने से खाने पीने आगे बढ़ते है।तभी दूसरे बच्चे ने रंग बिरंगे पतंगों को उड़ते गिरते देख पुछा ? उस झुंड में बच्चें कितना ख़ुश हो रहे है पतंग काट कर,अम्मा जी ने कहा यही इंसानी फ़ितरत है। जहाँ इंसान बल ,बुद्धि ,विद्या का प्रयोग कर आगे बढ़ना चाहत है, 

तभी तीसरे बच्चें ने तालाब की ओर इशारा करते कहता - देखो इतनी सारी मछलियाँ तालाब में रह मगरमच्छ से बैर नही करती, चौथा बच्चा कहता कमल भी तालाब में खिल अपना,अस्तित्व , बरक़रार कर सर्वोच्चस्थान में, दादी ने कहा तुम सब बच्चें  समझदार होमौसम ख़राब हो चला घर की ओर रूख करते हैं । 

कल तुम्हें हरे भरे खेतो खलिहानों बाग़ बाग़ीचों से परिचय कराऊँगी । छोटे छुटंकी ये नही पूछेंगे की दाल और चावल एक साथ कैसे उगते है धान से चावल कैसे तैयार किया जाता है फूल से फल कैसे तैयार होता है । 


मम्मी जी का गाँव खण्डहरों में  “फोर्थ जनरेशन “

पप्पू अपने दादा दादी से कहता है -ये क्या दादी अब तो मान जाओ।

इन खण्डहर होती दीवारों को सँवार तस्वीर लगा, पेंच वर्क फूलदानो, फ़र्नीचर बर्तनों चमकाने में लगी रहती हो। 

हमारे दादा के नाम परमेश्वर निवास आप लोगों के उस समय उपयुक्त था। जब दो तीन पीढ़ियाँ साथ साथ रहती थी।आज जब सब अपने अपने क्षेत्र में जीविका पार्जन के लिए परमेश्वर निवास से बाहर है। केवल उत्सव के दौरान सब इकट्ठे होते है।व्यवस्था की सारी ज़िम्मेदारी आप दोनों पर होती है। और अब मैं भी आगेएम .एस करने विदेश जा रहा हूँ।

मैं चाहता हूँ, आप दोनों मम्मी पापा के साथ साथ शहर में रहे, मैं बहुत छोटा हूँ, आप लोगों को हर्ट नही करना चाहता हम परमेश्वर निवास को ट्रस्ट को सौंप देंगे जो समय समय पर इसकी देखभाल उपयोग सामाजिक कार्यों में किया करेंगे। 

पाँचों भाइयों का निवास "पंच परमेश्वर "के नाम से, पुरानी खण्डहरों के नाम से नही, आज की नई सोच नई दिशा के नाम से जाना जायेगा।


उद्देश्य यही था

साहस उत्साह भर मानवता मितव्यता का दर्पण हर घर ज्ञानदीप बढ़ना चाहते हैं 

साहित्य संस्कार संस्कृति को ऊँचाइयों के शिखर बढ़ना चाहते हैं


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