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क़ानून

क़ानून

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गाँव का स्कूल, बाल मन जिज्ञासु होता हैं ! 

बऊआँ माँ से पूछता है - स्कूल में सारे बच्चों के ड्रेस एक सामान क्यों होते है?

माँ ने कहा - बेटे कोई स्कूल के बाहर निकल गुम ना जाये ! सब पकड़ की मज़बूत होनी चाहिये ! 

गाँव ,जंगल ,बाज़ार रास्ते अलग होते हैं। गाँव के लोग भोले भाले इंसान होते हैं। 

राहगीर स्कूल ला छोड़ दे ! 

बऊआँ कहता - मेरे गुरूजी कहते हैं - स्कूल में अमीर ग़रीब सब सामान हैं ! 

माँ कहती है - इसी लिए तो मध्यान भोजन भी सामान खिलाया जाता हैं ! स्कूल में ! 

तभी बऊआँ अपनी माँ से मुहावरे का अर्थ पूछता है - “अकेला चना भाड़ नही फोड़ सक़ता ,,

इसका मतलब क्या होगा ? 

माँ ने कहा - इसका मतलब जब बाबा जंगल लकड़ी ल

ेने जा रहे थे। तो बाबा एक मोटी लकड़ी को खिंचते हुए नहीं ला सकते थे। पर तुमने और मैंने मिलकर सहायता की तो उसे टुकड़े कर गठर बाँध घर ले आये ? ! चना समूह रह कर फ़ूटता हैं ! और बऊआ कहता - माँ मेरी चेतना तर्क शीलता जागृत हो गई हैं।

मेरा आख़री सवाल माँ - भैया क़ानून की पढ़ाई करने शहर गये है।पर शहर में इतने दंगे फ़साद झगड़े हो रहे है। भैया से आप कह रही थी ना ?

क़ानून के हाथ तो लम्बे होते है ?

फ़िर इतने दिनो से चले आ रहे ,झगड़े ख़त्म नहीं होते सच्चाई का पता ही नही चलता।

माँ ने सोचा बालमन के प्रश्न का जवाब - क़्या दे ?

उसे रंग जाति भेद विभिन्न असमानताओं में क्यों ढकेले आगे चल समझ ही जायेगा। 

बाऊआँ -तेरा स्कूल आ गया। 

इसका जवाब आगे पढ़ाई कर मिल जाएगा।


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