पप्पु से पारस

पप्पु से पारस

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पप्पू से पारसकुमार सड़क निर्माण चीफ़इंजीनियर बन आया है । 

 हरे भरे मोटे तनो के वृक्ष काट कर सीमेण्ट रोड बनाया जा रहा है । 

मिंटो में दूरी बस कार द्वारा पुरी की जायेगी । जहाँ गाँव ख़ुशियाँ मनाई बधाई दे रहे है। 

वही आज पारस पप्पू बन अपने बचपने की यादों में खोया सोच रहा है -

पप्पू अपने बाबा की बाईक पर सवार दूध के डब्बों के साथ बैठ स्कूल की दस किलो मीटर की यात्रा एक घण्टे में पुरी करता है ।आधे घण्टे कबीर रहीम के दोहे बाबा अर्थ समेत बताते भौतिक हरी भरी दुनिया से अवगत कराते ।कहते - ये तुम्हारे आगे जीवन में बहुत काम आयेंगी । रास्ते के बीच चने मटर फल्ली गन्ने रस , बाबा पेड़ नीचे विश्राम करते कूएँ का ठंडा पानी पीते पिलाते , दोहे याद करने का सुलभ तरीक़ा सिखाते । 

ये हमारे गाँव के बीच का रास्ता है ।जहा हरियाली का नामो निशान नहीं था । यहाँ हमारे पर दादाओं ने दस आम जामुन के बड़े वृक्ष एक पानी का कुआँ बनवा दिया । 

आज हम उन्हें कितनी दुआयें देते है ।अब हम बूढ़े हो जायेंगे । तो तुम्हारे नाती पोते तुम्हें कैसे याद करेंगे । 

तो तुम इन मोटे तनो पर उक़ेर रोज़ एक कबीर के दोहे लाइन लिख याद करोगे तो तुम्हें याद भी हो जायेगा । 

पप्पू कहता - कबीर के दोहे -माटी कहे कुम्हार से ,

निंदक नियरे राखिए 

पंछी को छाया नहीं फल लगे अति दूर ।

 रहीम के दोहे रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सुन ,

पानी गये ना उभरे मोती मानस चुन , 

बाबा कहते - तुम तो बड़े होशियार हो । 

देखो बाबा मैंने इन दस पेड़ों में पहले कबीर फिर रहीम के दोहे लिख याद कर लिया । 

बिगरी बात बने नही,लाखकरे किन कोय 

रहिमन फटे दूध को ,मथे ना माखन होय 

रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाय ।

टूटे तो फिर ना जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाय 

और बाबा एक ग्लास दूध मुझे पिलाते ईनाम स्वरूप  

वही आज पप्पू को भुल पारस कुमार साहब बन ठूँठ बेन वृक्षों को बाईक से अवलोकन करते मन कह उठा -

बाबा अपनी भूख की ख़ातिर मैंने ही जड़ो को काट डाला ?



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