सूमि की मासूमियत
सूमि की मासूमियत


सूमि को होली पर्व बिलकुल अच्छा नही लगता, बचपन से देखते आई थी।केम्पस में होली की रात होली रस्म अदायगी के लिए नारियल दादी परिजनों के सिर से फेर नज़र उतार गुलाल शक्करमाला क़े साथ पापा को होलिका दहन के लिये देती।मम्मी पापा के साथ जाने तैयार हुई।
दादी ने मना किया। पापा को तरेर क़र देखा ? सूमि का हाथ पकड़ पापा आगे बढ़ गये। पापा होलिका देवी को नारियल माला गुलाल अर्पित कर रहे थे। मैंंने सुना देखा, केम्पस के लोग जिन्हें बुरा ना मानो होली है, कह बेहूदी हरकत मज़ाक़ के साथ गुलाल लगा कह थे। इतने में ही एक आंटी ने पापा को यह कहते गुलाल लगाया अरे जोरू के ग़ुलाम बीवी को नहीं लाते, हमसे तो गुलाल लगा लो।
पापा कहते रहे -माँ के चरणो में गुलाल अर्पित कर नैना (बीबी )से लगवाऊँगा।माँ सूमि को लगा हा
र शक्करमाला पहनायेगी।आँटी ने पापा को गुलाल लगा ही दिया।
घर पहुँचते ही पापा ने ज्यो ही मम्मी की आँखें चढ़ी हुई गुलाल लगा खुश करना चाहा, मम्मी चीख पड़ी।
आप को ये गुलाल उसी ने लगाया ना जिसके साथ आफिस में काम करते हो और हर साल उससे पहले गुलाल लगवाकर लोगों के सामने जोरू का ग़ुलाम कहला मज़ाक़ बनाते रंगरेलियाँ मनाते हों ?
झगड़े का अंत, मम्मी सूमि को दादी पापा के पास छोड़ मायके चली गईं।मम्मी जब मायके में होली मना रही थी।अपने ही लोगों के बीच हरकतों को देख लोगो की मानसिकता समझ आई। और दादी की कही बातें -होलिका दहन में पुरषो का महत्व होता है।
दादी पापा से कहा मैं सूमि के साथ होली मनाने आ रही हूँ - बुरा ना मानो होली है।
सूमि को अब होली अच्छी लगती हैं।