होली का फगुआ नगाड़े संग
होली का फगुआ नगाड़े संग


बेबी कहती देखो - मम्मी आज शेखर दा , क्या किशोर दा बना हैं ! जो उसे याद कर बचपन के गीत सुना रहा हैं !
होली के फगुआ गीत सुना रहा हैं ! मुझे पढ़ाई नहीं करने दे रहा हैं !
दादी कहती - किशोर तो पढ़ लिख २५ बसंत पार अफ़सर बन विदेश चला गया ! वहाँ की नौकरी के लिय सिटीज़न सिप के लिये काली लड़की को दुल्हन बना लिया ।जब दादी ने कहाँ मुँह दिखाई के लिये ले कर आना होली के दिन सब इंतज़ाम कर दूँगी ! गाँव वालों के बीच देवर से लट्ट मार होली खिला रंगवा दूँगी पता ही नही चलेगा गाँव वालों क़ो है ना बहुरानी ? बहूँ रानी कहती - हाँ मूलधन से ब्याज ज़्यादा प्यारा होता हैं माँ जी ?
फ़िर दादी जवाब में कहती - माँ पर चला गया !एकबाप पर एक गोरा एक काला एक ही साल का अंतर था ! होली के दिन पैदा हुए ना !
दादी की बातें सुन ,मम्मी कहती - आप लोग भी हर साल फगुआ के गीत बजा जन
्मदिन आज तक मनाते हैं !
लगता हैं ! ये बहुयें आयेंगी तभी बंद होगा !
दादा दादी का ख़ुशी का ठिकाना ना था !
नगाड़ा बजा सारे दिन इसी फगुआ गीत को बजा नाक में दम कर रखा था !
आज होली ! किशोर विदेश से अपनी कारी मेडम याने (बहु )को घरवालों से मिलाने लाया हैं ! जैसे ही घरवालों ने अगवानी के लियें रंग गुलाल आरती सज़ा आरती करने लगे ! शेखरवा ने रंग गुलाल से रंग पोत अपनीभाभी का रंग छिपा गाने में मसगुल हो गया !
“गोरी संग कारी हैं कारी संग गोरी हैं
बनेगी की किसकी दूँलहनियाँ
कारे की गोरे की बोलों
तररा रा हाँ बोलों तररा रा
हों जोगी हों जोगी “
होली हो गई रे बबुआ बड़का कारी को ले उड़ा बिदेशवा रे तररआ तररा आ ?