asha tewari

Abstract

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asha tewari

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परित्यक्ता

परित्यक्ता

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कविता का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था। मिनी के घर से उसको अपने घर आना मुश्किल हो गया था। हिम्मत कैसे हो गई नीरज की मेरा हाथ पकड़ने की उसने गुस्से से सोचा। घर आकर उसने घंटी बजाई तो भाभी ने दरवाजा खोला। कविता गुड्डो का हाथ पकड़कर अपने कमरे में चली गई। बहुत जोरों से रुलाई आ रही थी उसको। भाभी ने ये भी नहीं पुछा की क्या हुआ। कैसे बेगानो की तरह रहती है वो यहाँ पर और हो भी क्यों न भैया तो कुछ करते नहीं है बस भाभी के पैसों से और बाबूजी की पेंशन से ही घर का खर्च चलता है।

आज जो मिनी के घर पर हुआ वो कोई नई बात नहीं थी जब से वो पति को छोड़कर भैया के घर आई है सब उसे ऐसे ही देखते है पति ने छोड़ दिया है कोई बात होगी ऐसे तो कोई थोड़े ही नहीं छोड़ देता है। अरे सबको बर्दाश्त करना पड़ता है। औरत को औरत की तरह रहना चाहिए। क्या क्या सुनना पड़ता था कविता को और आज तो हद ही कविता रोते रोते सोचने लगी की आखिर उसकी गलती क्या है। उसने क्या कोशिश नहीं की निभाने की सुधीर के साथ। उसे याद है आज भी जब वो शादी करके आई थी सुधीर के यहाँ।

वो खुद एक पढ़ीलिखी लड़की थी और अच्छी खासी नौकरी करती थी शादी से पहले। लेकिन सुधीर और उसके घर वालों की इच्छा थी की कविता नौकरी छोड़ दे तो कविता को नौकरी छोड़नी पड़ी थी दहेज़ भी खूब दिया था माँ बाप ने लेकिन न जाने क्यों ससुराल वाले कभी संतुष्ट नहीं हुए थे हमेशा शिकायत ही करते रहते थे।

कविता ने पूरे तन मन से ससुराल वालों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुबह से शाम हो जाती थी उसको काम करते करते लेकिन वो अपनापन उसे कभी भी न सुधीर से न ही ससुराल के अन्य लोगों से सुधीर के पास अपनी गाड़ी नहीं थी और वो बराबर कविता के ऊपर दबाव बना रहा था की वो अपने मायके से पैसों की मांग करे जिससे वो गाड़ी खरीद सके। लेकिन कविता भी क्या करती उसके पिता रिटायर हो चुके थे और भाई का व्यवसाय भी कुछ खास नहीं था और फिर उसपर अपने खुद के परिवार की जिम्मेदारियां थी। वो किस मुंह से पैसे मांगती। इसी बात पर करीब करीब रोज ही झगड़ा होता था। सास भी सुधीर के ही साथ थी।इसी बीच में वो बेटी गुड्डो की माँ बन गई। घर वाले ज्यादा खुश नहीं थे बेटी के जनम पर।सुधीर भी बेटी को कभी गोद में नहीं उठाते थे। कविता बहुत उपेक्षित महसूस करती थे अपने आप को। कोई भी नहीं था जिससे वो अपनी घुटन अपनी पीड़ा बाँट सके। सारी पढाई लिखाई सब बेकार हो गई थी। उस दिन तो हद ही हो गई थी।

ऑफिस से बहुत झल्लाते हुए आया था सुधीर और आते ही उसने कविता को अपने कमरे में चिल्लाकर बुलाया। कविता घबराई हुई कमरे में दाखिल हुई और सुधीर से पु"क्या हो गया है आप इतना गुस्से में क्यों है "कविता ने पूछा

"क्या हुआ तुमने बात करि पैसो की अपने घर में "सुधीर गुस्से में बोल|

 "नहीं "कविता धीरे से बोली।

"तो कब करोगी जब में मर जाऊँगा एक तो खुद और एक लड़की और पैदा करके बैठ गयी हो कौन उठाएगा तुम दोनों का खर्चा "सुधीर गुस्से में बोला"अरे आपकी औलाद है ऐसे कैसे कह रहे है आप "कविता बोली

"जबान लड़ाती है अपने पति से "उसकी सास की आवाज़ आई "यही सिखाया है तेरे बाप ने "माँ आप मेरे परिवार वालों को मत घसीटिये बीच में उनकी जितनी हैसियत थी उतना उन्होंने दिया है अब वो और नहीं दे सकते "कविता बोली।

"मेरी माँ को जवाब देती है तुम्हारी इतनी हिम्मत "सुधीर ने उसे धक्का देते हुए कहा।

कविता सम्हाल नहीं पायी अपने आपको और अलमारी का कोना उसके सर में लग गया।

"निकल यहाँ से और साथ में अपनी इस औलाद को भी ले जाओ "सुधीर ने उसे लगभग घसीटते हुए दरवाज़े से बाहर कर दिया कविता घबरा गई और रोते हुए बोली ऐसा कैसे कर सकते है आप कहाँ जाऊँगी में

:भांड में जाओ "सुधीर बोला और दरवाजा बंद कर लिया।

"क्या सोच रही हो बेटा"पिता की स्नेहमई आवाज़ सुनकर आंसू पोछते हुए उसने पलटकर देखा "क्यों रो रही हो क्या बात है मुझे बताओ "सर पर हाथ फेरते हुए उसके पिता बोले

"बाबूजी में गुड्डो को टूशन से लेने मिनी के घर गई थी तो उसके पति ने दरवाज़ा खोला और में अंदर बैठ गई। गुड्डो की टूशन पूरी नहीं हुई थी और मिनी भी अंदर थी। प्रशांत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और गलत बातें बोलने लगा "कविता बोली"क्या कह रहा था "बाबूजी बोले

"वो कह रहा था की मिनी को पता नहीं चलेगा तुम मेरी हो जाओ तुझे सब दूंगा "कविता रोते हुए बोली

बाबूजी के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई और वो कुछ नहीं बोले

कविता रोये जा रही थी "मेरी क्या गलती है आप बताइये "कविता बोली

"तेरी कोई गलती नहीं है बेटा ये समाज ही ऐसा है यहाँ पति द्वारा छोड़ी हुई औरत को ही सब गलत समझते है "बाबूजी बोले "बेटा तू फिर से जिंदगी शुरू कर तू पड़ी लिखी है अपना बायो डाटा तैयार कर और नौकरी के लिए कोशिश कर आत्मनिर्भर बन कहने दो जो लोग कहते है तुम तो गलत नहीं हो फिर समाज से क्या डरना। कामयाबी के बाद सब शांत हो जाते है कमजोर को ये समाज जीने नहीं देता है "बाबूजी ने कविता को समझाया

कविता को लगा बाबूजी ठीक ही तो कह रहे है में कल से ही कोशिश करूंगी। अगले दिन कविता ने सबसे पहले उस कंपनी में आवेदन किया जिसमे वो पहले काम करती थी। दो तीन बाद ही उसे इंटरव्यू की कॉल आ गई और वो नियत समय पर ऑफिस पहुँच गई

"आपके पति क्या करते है "इंटरव्यू में किसी ने सवाल पुछा

"जी में अकेले ही रहती हूँ "कविता बोली

"क्या तलाक हो गया है "उसने फिर पुछा

"नहीं में अलग रहती हूँ और कृपया और कोई सवाल इस विषय पर न पूछे "कविता झुंझलाकर बोली

"ओके"वो बोला

इंटरव्यू देकर वो बाहरनिकली तो उसे यह लग रहा था की उसे ये नौकरी नहीं मिलेगी

दो तीन दिन के बाद उसे ऑफिस से आया हुआ पत्र मिला और वो ख़ुशी से झूम उठी। अगले ही दिन उसने ज्वाइन कर लिया। लेकिन समस्याओं का अंत यहीं नहीं था। लंच में सभी उसकी तरफ अजीब नज़रों से देख रहे थे।

आपस में खुसर पुसर कर रहे थे। कविता ने किसी तरह खाना खाया और अपने केबिन में आकर बैठ गई। तभी उसके एक सहकर्मी ने कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गया।

"और कविता जी कैसी है आप अकेले जीवन काटना तो बहुत मुश्किल होता है है न "वो बोला

"नहीं ऐसी कोई   बात नहीं है "कविता काम करते करते बोली

"आज शाम को फ्री है आप "वो बोला

"आप जाकर अपना काम कीजिये "कविता गुस्से में बोली

"काम ही तो कर रहा हूँ "वो बेशर्मी से बोला

कविता गुस्से में उठकर अपने बॉस के कमरे में चली गई और उसकी शिकायत कर दी

कविता के बॉस एक बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति थे और कविता उनकी बेटी की तरह थी।

"देखो बेटा तुम किसी का मुंह बंद नहीं कर सकती हो तुम्हें अपने आप को ताकतवर बनाना होगा मानसिक रूप से और लोगों को जवाब देना सीखना होगा ये दुनिआ ऐसी ही है अगर तुम गलत नहीं हो तो फिर किस्से डरना कोई नहीं आएगा तुम्हारी मदद करने "कविता के बॉस ने उसे सकविता "देखो बेटा तुम किसी का मुंह बंद नहीं कर सकती हो तुम्हें अपने आप को ताकतवर बनाना होगा मानसिक रूप से और लोगों को जवाब देना सीखना होगा ये दुनिआ ऐसी ही है अगर तुम गलत नहीं हो तो फिर किस्से डरना कोई नहीं आएगा तुम्हारी मदद करने "कविता के बॉस ने उसे समझाते हुए कहा

कविता को जैसे कुछ अपने पर विश्वास जगा

अगले दिन उसमे आत्मविश्वाश था। वो ऑफिस पहुंची और अपना काम करने लगी। लंच में एक और सहकर्मी उसके पास आया।

"और कविता जी अकेले ही खाना खा रही है हमारे केबिन में आ जाती "वो बोला पति के द्वारा छोड़ी गयी नारी को लोग एक बिकाऊ चीज समझते है यह सोचकर कविता का मन वितृष्णा से भर उठा "क्यों भाई क्यों आ जाऊं में तुम्हारे केबिन में शर्म नहीं आती है तुम्हे मेरे पति ने मुझे नहीं छोड़ा है मैंने अपने पति को छोड़ा है और में कोई इजी अवेलेबल की चीज नहीं हूँ समझे बंद करा दूँगी तुम्हे sexual harrassment में जेल में "कविता ने जोर से चिल्लाकर कहा "और सभी लोग यहाँ सुन ले मुझे इस बात की कोई शर्म नहीं है की मैंने अपने पति को छोड़ा है मेरी जिंदगी है जहाँ भी रहूंगी इज्जत से रहूँगी"

सभी लोग सकते में आ गए और हॉल में सन्नाटा छा गया।

कविता को ऐसा लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली हो। जिंदगी की सारी घुटन सारा आक्रोश मानो निकल गया हो बहुत हल्का महसूस कर रही थी वो अपने आप को आज उसने बिना सहारे के जीना सीख लिया था आज वो आत्मविश्वाश से भरी हुई घर लौट रही थी वो थी एक नई कविता।


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