Bindiyarani Thakur

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Bindiyarani Thakur

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झरना का मन बहुत उदास है,किसी भी काम में मन नहीं लग रहा है आखिर ऐसा क्यों हुआ ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था,हमेशा जो भी किया उसके भले और अच्छी परवरिश के लिए ही किया था ना,तो फिर मेरी अपनी बेटी ही मुझसे इतनी नफरत करती है ये आज सुबह ही तो पता चला है,और ये सोचते सोचते सुबह की घटना उसकी आँखों के सामने तैर गई।

सुबह एक छोटी सी बात थी मुक्ता अपने लिए नए कपड़े खरीदने की जिद कर रही थी,महीने का आखिरी सप्ताह चल रहा है तो हाथ कुछ तंग है तो बस उसे मना कर दिया कि अभी नहीं ले सकते हैं बेटा बाद में अगले महीने ले देंगे, बस इतना ही कहना था कि हत्थे से उखड़ गई और जोर जोर से रोने लगी,कहने लगी कुछ दिनों के लिए ही तो आती हो यहाँ और एक छोटी सी चीज माँग ली तो उसके लिए भी मना कर दिया।मुझे जन्म देते ही खुद से दूर फेंक दिया और "आ जाती हो झूठा प्यार दिखाने के लिए, नहीं चाहिए मुझे ये झूठे प्यार का दिखावा जाओ चली जाओ यहाँ से" और खुद को कमरे में बंद कर लिया।

उसी समय से झरना खुद को दोषी ठहरा रही है मुक्ता को माँ के पास छोड़ने के अपने फैसले पर, वो भी क्या करती उस समय हालात ही कुछ ऐसे बन गए थे कि अपने कलेजे के टुकड़े को उसे माँ के पास छोड़ना पड़ा ।अपनी नन्ही सी जान को पालने में वह असमर्थ हो गई, बार बार बिगड़ती तबीयत, और फिर अनायास ही गर्भधारण!

अठारह वर्ष की उम्र में ही बाबूजी के बीमारी का वास्ता देकर शादी करा दिया गया, कितनी इच्छा थी कि काॅलेज में पढ़ती, अपने पैरों पर खड़ी होती मगर किसी ने उसकी कहाँ सुनी, वो तो शायद बोझ थी माँ बाबूजी के ऊपर !उनकी नजरों में सागरजी बेटी के लिए एक योग्य वर लगे बस चट मंगनी पट ब्याह और साल भर के भीतर ही झरना माँ भी बन गई ।

इसके बाद झरना बार बार बीमार रहने लगी इतनी कम उम्र में माँ बनने के वजह से ही उसकी सेहत बिगड़ी थी। उसके बार बार बीमार रहने को देखकर झरना की माँ ने कहा कि मुक्ता को मेरे पास ही रहने दो तुम पहले अपना स्वास्थ्य देखो ,झरना को माँ का फैसला सही लगा। मुक्ता ननिहाल में ही रहने लगी और नानी को अपनी माँ समझने लगी।इसी बीच झरना एक और बच्चे की माँ बन गई उसे झरना खुद ही पाल रही थी। झरना अपनी माँ के हाथों में बड़ी बेटी को सौंप कर निश्चिंत हो गई थी। ननिहाल में लाड़ प्यार से उसकी परवरिश होने लगी। 

और आज मुक्ता के शब्दों ने उसे काफी चोट पहुंचाई है, जो भी परिस्थिति है उसमें क्या हल निकलेगा, अब तो बेटी दसवीं कक्षा में है अब उसे अपने पास लाकर रख भी नहीं सकती, अपनी बेटी के मन में आई नफरत को किस प्रकार दूर करे इसका हल उसे स्वयं को ही ढ़ूँढना होगा, हो सकता है कि इसमें कुछ समय लग जाए और तबतक बेटी का ऐसा बर्ताव बर्दाश्त करना पड़ेगा। 



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