Harish Sharma

Abstract

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Harish Sharma

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प्री वेलेंटाइन

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शायद दोपहर ढल रही थी जब बादल छाए और बारिश शुरू हो गई। सावन के महीने की ये बारिश उमस और तपिश के माहौल में बहुत सुकून देने वाली थी। छुट्टी का दिन था और लड़के खेल के मैदान से मैच खत्म करके वापस लौट रहे थे। सोनू और निखिल दोनों आज के मैच में अपने खेल को लेकर बातें कर रहे थे।

"यार आज जो धुनाई करने का मजा आया है न,वो मॉडल स्कूल वाले हमेशा याद रखेंगे।"

"हा हा, पहली ही गेंद पर मैने जब उनके कप्तान की लेग वाली गिल्ली उड़ाई,तो उसे यही समझ नही आ रहा था कि व्हाइट हो रही गेंद उसकी विकेट कैसे ले उड़ी ।" दोनों अपनी बातों में पूरी तरह गुम थे।

हल्की बारिश शुरू हो गई। जैसे किसी ने पूजा के बाद जल का छीटा दिया हो। सोनू और निखल सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए।

सामने सड़क पर एक लाल रंग की साइकिल आती दिखी। साइकिल पर लड़की। वो साइकिल से उतरकर एक हाथ से साइकिल का हैंडिल थामे चलने लगी। फिर सड़क के दूसरी ओर लगे एक पेड़ के नीचे रुक गई। अब सड़क के दोनों ओर वे इतनी दूरी पर थे कि पूरी तरह एक दूसरे को नजर आ रहे थे।

पांच फुट चार इंच के लगभग की उस लड़की की आकृति को देखकर सोनू को जैसे किसी आकर्षण ने भींच लिया। निखिल उसे शायद कुछ कह रहा होगा पर उसका ध्यान तो केवल उस अजनबी लड़की पर था। शायद उसके कस्बें में ये लड़की उसे पहली बार आकर्षित कर रही थी। जैसे कोई खींचे चला जा रहा हो। बारिश तेज नही थी,अब सिर्फ हल्की बूंदा बांदी थी।

सोनू को जाने क्यों घूरना अच्छा नही लगा,वैसे भी वो केवल देख भर रहा था,पर शायद लड़की को ऐसे ही लगा हो। इसीलिए लड़की ने एक बार सोनू की तरफ देखा तो उसे अपनी ओर घूरते देख अपनी आंखें फेर लीं थी। सोनू भी जैसे झेंप सा गया। शायद लड़की उसे कोई आवारा न समझे,ये बात उसके जेहन में कौंधी। एक बारगी उसे लगा कि लड़की को किसी मदद की जरूरत है। उसे पहले कभी कस्बे में नही देखा था। पर साइकिल लेकर कोई ऐसे ही कस्बे में क्यो आएगा। शायद कोई ट्यूशन पढ़ने आई हो। दो साल हो गए कस्बे के पास फैक्ट्री खुली है ,इसलिए बहुत से कर्मचारी बाहरी शहरों से आकर वहां काम करने लगे हैं। फैक्ट्री के बड़े इंजीनियर फैक्ट्री के पास बने मकानों में रहते हैं जो फैक्ट्री मालिक ने अपने अफसरों के लिए बनवाये हैं।हो सकता है ये लड़की वही से आई हो। देखने में भी थोड़ी अमीर लग रही है। कस्बें में जीन्स और स्कर्ट कोई पहनता ही नही। बाल भी खुले हैं। जैसे किसी फिल्म की हिरोइन हो।

अचानक उस लड़की ने सोनू और निखिल की तरफ चलना शुरू कर दिया।

सोनू को जैसे किसी शर्म ने घेर लिया हो। जाने क्या कह दे। उसने अपने आपको कितनी बार रोकना चाहा कि वो उस लड़की को न देखे,पर उसकी आँखें उसका कहा मैं गई नही रही थीं।

"एक्सक्यूज़ मी।" लड़की ने आकर सीधा सोनू की आँखिन में आंखे डालकर कहा।

"जी ...जी ,कहिए।" सोनू की आवाज जैसे हकला रही थी।"देखिए,मेरे मोबाइल की बैटरी आफ हो गई है,क्या आप एक नम्बर मिला देंगे प्लीज। मुझे घर से ड्राइवर को बुलाना है।"

सोनु ने बिना कुछ कहे अपनी जेब से मोबाइल निकाला और लड़की की तरफ बढ़ा दिया।

"ओह, थैंक्स..... शायद ये आपका चेहरा देखकर ही खुलेगा।" लड़की ने बिना किसी हिचक के सोनू के चेहरे की ओर फोन की स्क्रीन की ।

खचक की आवाज से स्क्रीन लॉक खुल गया।

उसके फोन की स्क्रीन पर लॉक लगा था,वो भूल गया था लड़की मोबाइल पर नम्बर मिलाकर बात करने लगी।

"हाँ... ममा ..मैं दीप्ति बोल रही हूँ...अरे मेरे फोन की बैटरी आफ हो गई है...हाँ वही चौराहे के पास हूँ,...आप ड्राइवर अंकल को भेज दीजिए। ..ठीक है...वही रहूंगी। ..बाय।"

"दीप्ति....ओह कितना प्यारा नाम है। बात करते समय आवाज जैसे शहद की तरह कानों में घुल रही हो। पतले होंठ ,साफ रंग,बिना किसी मेकअप के भी कितनी ताजगी और फूल जैसी कोमलता चेहरे पर छाई थी। "सोनू को जाने कितने रूपक याद आ रहे थे।

"थैंक्स अगेन...। मुझे फैक्ट्री तक पहुंचना है,माइसेल्फ दीप्ति,बी एस सी.आनर्स,फर्स्ट ईयर,एन के कॉलेज। आप लोग।"

लड़की ने सीधे ही पूछना शुरू कर दिया,कोई फॉर्मेलिटी नही। बड़े शहर और बड़े घर ऐसी ही एडवांसमेंट के लिए जाने जाते है शायद। सोनू और निखिल दोनों ही आवाक से उसे सुन रहे थे। अब किसी मध्यवर्गीय मुहल्ले में अचानक कैटरीना कैफ आ जाय तो आदमी बौरा तो जाता ही है।

"जी जी,हां.. हां ,हम भी वहीं पढ़ते है ...पर आपको देखा नही,वैसे क्लास हम दोनों की बी काम फर्स्ट ईयर है,सेम कालेज।"

"मुझे अभी दो दिन ही हुए है कालेज जाते। पापा ने ये नई कम्पनी जॉइन की है तो हमें दिल्ली से यहां शिफ्ट होना पड़ा। अच्छा शहर है,भीड़ कम है,यहां एक बुटीक के बारे में पता चला था,तो आई थी। " लड़की बेतकुल्ल्फ़ होकर बताने लगी।

"हें हें।" हर मध्यवर्गीय लड़के की तरह वो दोनों भी मुस्कुराते हुए उसे सुनते रहें।

इसी बीच एक जिप्सी जीप आती दिखी। लड़की के पास आकर रुक गई। ड्राइवर सीट से एक आदमी उतरा और साइकिल उठाकर जिप्सी के पीछे रख दी।

"ठीक है,फिर ,कालेज में मुलाकात होगी। आप लीगों से मिलकर अच्छा लगा। ...बाय।"

लड़की आगे वाली सीट पर उस अधेड़ उम्र के ड्राइवर के साथ बैठ गई।

जिप्सी चली गई और सोनू की आंखे सड़क पर जिप्सी के ओझल होने तक उसे देखती रही।

"अब घर चला जाये,ये बूंदाबांदी तो बन्द होने से रही,वैसे भी घर जाकर नहाना ही है....चलें???"निखिल ने सोनू से पूछा था।

"हां हां... ठीक है।" जैसे सोनू ने किसी बेहोशी से उठकर कहा हो।

दीप्ति उसके दिमाग मे वायरस की तरह घुस चुकी थी। शायद इसलिए उसे चारों तरफ सिर्फ उसी का नाम,चेहरा और उसकी बातें सुनाई ,दिखाई दे रही थी।

अगले दिन कालेज पहुंचने के लिए वो बेताब था। शीशे के सामने खड़े होकर उसने अपने आपको कई ऐंगल से देखा। बनाया ,सँवारा। मोबाइल पर सेल्फी लेकर अपने साइड पोज चेक किये। स्माइल की पैमाइश देखी। टाइगर श्रॉफ और रणबीर कपूर की शक्ल से अपनी शक्ल को लगभग समान पाया। उसे अपने आप से जैसे प्यार हो गया था। लहरें जैसे सिर से पैर और पैर से सिर की ओर दौड़ रही थी।

उसे अचानक जैसे कुछ याद आया। उसने मोबाइल निकाला ,काल लॉग चेक करके पिछले डायल किये गए नम्बर देखे और एक नम्बर सेव किया।

नाम लिखा -दीप्ति होम।

व्हाट्स ऐप पर जाकर नम्बर चेक किया। डी पी आंटी जी ने दीप्ति के साथ लगा रखी थी। जैसे राखी और कैटरीना कैफ ने इक्कठे सेल्फी ली हो। शक्ल के कुछ ऐंगल दीप्ति के चेहरे के साथ ही मिल रहे थे,बस चेहरे पर अतिरिक्त चर्बी चढ़ने की वजह से अंतर नजर आ रहा था।

(अब यहाँ से कहानी किधर जाएगी,इसे अपने टीन एज के दिनों में जाकर अंदाजा लगाइए,जो अभी टीन एजर या युवा हैं,जिनकी मूछ दाढ़ी,भावनाएं और दिल की हिलोरें अभी शरीर के रासायनिक परिवर्तन के कारण होना शुरू हो गई हैं,जो लगभग स्वाभाविक हैं,वे सोनू की स्थिति समझ रहे होंगे।)

दीप्ति ने रोजमर्रा की तरह घर पहुंचकर सबसे पहले अपना मोबाइल चार्जिंग पर लगाया। मां से काफी की फरमाइश करते हुए उसके गले मे बांहे डाल दी। वो इस बात से पूरी तरह बेखबर दी कि उसकी बात करने की अदा, उसकी भंगिमाएं और उसका दिल्ली वाला एडवांस व्यवहार किसी कस्बाई लड़के के लिए किस तरह का कैमिकल लोचा पैदा कर आया है। .........

बाकि कहानी पूरी फिल्मी नही होगी...इंतजार कीजिये। गुलाब के फूल हर तरफ महक रहे हैं,बस आंख मूंद कर उन्हें महसूस कीजिये।


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