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ViSe 🌈

Abstract

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प्रेम की प्रतिमूर्ति

प्रेम की प्रतिमूर्ति

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कहते हैं की वृंदा की जितनी जड़ें धरती में पनपती हैं, उतने ही जन्मों के पाप ध्वस्त हो जाते है। माहामाया के घर का एक बढ़ा अंश एक बाग़ को समर्पित है। उस बाग़ में हर प्रकार की वनस्पति होने का एहसास होता है । किसी प्रख्यात आर्टिस्ट की पेंटिंग की तरह लोग उसे निरखते हैं, घंटों उसका अध्ययन करते हैं और फिर उसकी आकृति की प्रशंसा करते हैं। पर मुझे तो वो किसी प्रख्यात आर्टिस्ट की पेंटिंग की ही तरह निरर्थक लगती है; लगता है शायद सब लोग समाज में अपनी जगह पुख्ता करने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं, न की उसके पीछे छिपी आराधना की। कौन जाने की उसकी प्रेरणा क्या हो ? क्या हर कृति का कोई अर्थ होना ही चाहिए ? क्या कोई कृति केवल कृति नहीं हो सकती ? क्यों हर कृति के पीछे एक सामाजिक प्रसंग होना ज़रूरी है ? क्या हर कलाकार की तूलिका शोषण के खम्ब [पंख] से बनी होनी चाहिए ?

प्रेम बिलकुल कला के प्रकार जटिल और व्यक्तिपरक होता है। प्रेम एक कृति है , प्यार उसका शिल्पकार और आसक्ति उसकी प्रेरणा। प्रेम को भी अर्थ नहीं दिया जा सकता , न ही कोई कारण । जिस प्रकार भय को अर्थ नहीं दिया जा सकता , भूख, प्यास , सुख और दुःख को अर्थ नहीं दिया जा सकता वैसे ही प्रेम एक निरर्थक भाव है , महज़ महसूस किया जा सकता है । प्रेम का कोई सामंजस्य नहीं हो सकता । प्रेम पर काबू भी नहीं हो सकता। प्रेम को मापा नहीं जा सकता । कला की तरह यह स्वछंद है , कहने को बहुत कुछ पर कुछ भी नहीं। प्रेम किसी से भी, कहीं भी और कैसे भी हो सकता है । कैसे भी व्यक्त किया जा सकता है। महामाया का उद्यान प्रेम की प्रतिमूर्ति है। वहां फलती-फूलती सभी लतरें और उनकी जड़ें असीम प्रेम का प्रतिबिम्ब ही हैं। 



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