STORYMIRROR

ViSe 🌈

Drama

4  

ViSe 🌈

Drama

सारंगिणी - २

सारंगिणी - २

4 mins
230

"वही मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे"

कल गुप्त जी की कविता पढ़ रही थी। और पापा न्यूज़ देख रहे थे। तुम जानती ही हो। अब तो मैंने किसी भी विषय पर बोलना सुनना ही बंद कर दिया है। क्योंकि असल ज़िन्दगी बिलकुल ही अलग है। पिता जी कल रात ११ बजे शेह्ज़ाद भाईसाहब को मिलने गए थे, आर्थिक तंगी से अपनी माता की दवाईयां तक लेने की उनकी गुंजाईश नहीं रही है। बच्चों की फीस और घर के खर्चे ही नहीं संभलते। पिछली बार ईद पर मिठाई लेकर आये तो मुझे देख कर रोने लगे। कहते की 'बिटिया' को शगुन भी नहीं दे सकता। पर जैसे ही न्यूज़ देखो तो मन डर जाता है नफरत का हलाहल फैलता देखकर मन बैठ जाता है। क्या हम शांति से नहीं रह सकते ?

मैं खुद को राष्ट्रवादी नहीं मानती। मैं अपने देश की झूठी शान का दिखावा करने में विश्वास नहीं रखती, मैं सही मायनों में अपने देश के लिए कुछ करना चाहती हूँ। पर जब तक अपने देश के काम काज में कमियां नहीं देखूंगी तब तक कैसे उन्हें ठीक करुँगी ? पिछले दिनों से हम यूनिवर्सल राइट्स के बारे में रिसर्च कर रहे हैं। हमारे आज़ाद भारत से अच्छा मुझे कुछ नहीं लगता। पर मेरा देश प्रेम किसी संगठन या पार्टी के अधीन नहीं है। अगर मैं किसी पार्टी के खिलाफ कुछ कहूं तो मैं देश विरोधी कैसे हो सकती हूँ। पर इसका अर्थ यह नहीं की देश का अपमान करूँ। मेरे फूफा जी आर्मी में थे इसलिए मैं आर्मी के कठिन जीवन और प्रतिज्ञा की बहुत सराहना करती हूँ, इसलिए जब लोगों को अपने सुरक्षा बल पर सवाल करते सुनती हूँ तो मुझे बुरा लगता है क्योंकि घर बैठे बोलना बहुत सरल होता है। पर देश विरोध का अर्थ यही नहीं है , देश विरोधी तो हम सब ही हैं। हमें अपने रीती रिवाज़ों से नफरत है , हमें अपनी पहचान से घृणा है हम बिजली की चोरी , भ्रष्टाचार का बढ़ावा करते है , हम असहयोगी भी है , हम अपने ही देश के लोगों को निचा दिखाते हैं, हम भेद भाव करते हैं, अपनों से ही बैर करते हैं, दूसरों के घर के सामने कचरा फेंकते हैं , मैं इस बात से सहमत हूँ की मैं कट्टर राष्ट्रवादी नहीं हूँ, पर कोशिश करती हूँ की कमसे कम जूठी राष्ट्रवादी तो न बनूँ। भारत का सच्चा विद्रोह है उसकी आत्मा का विद्रोह, उसके लोकतंत्र का मखौल। राष्ट्रवाद का अर्थ होता हर उस इंसान की निजता और स्वाधीनता का सम्मान करना जो भारत का नागरिक है, वो जो खुदको भारत का अटूट अंग मानता है और भारत के हर अंग का सम्मान करता है, वो जो सरकारों की खोखली संरचना की आलोचना करता है सही मायनों में वो राष्ट्रवादी है।  

आज सुबह हरिद्वार अपनी नानी के घर जाने स्टेशन जा रही थी। राजन भैया को तो यही खौफ था की "बेबी जी ट्रैन में अकेले ?" पर मेरे पिता जी के कहने पर उन्होंने हिम्मत दिखा ही दी। हाईवे पर किसानों का आंदोलन है इसलिए ट्रेन से ही जाना पड़ा। ट्रेन में केवल चेयर कार थी। ए-सी टिकट्स बुक्ड थी। रिजर्वेशन हो नहीं पायी क्योंकि हाईवे पर कल रात ही मोर्चा शुरू हुआ था। ए-सी में जाने की अनुमति नहीं थी। पिता जी ने टी सी को ५०० देकर मेरी सीट २ नंबर में ले ली थी। मैंने इसका विरोध किया पर और कर भी क्या सकते थे। जाना तो था और मोर्चा कब तक चलेगा कुछ कह भी नहीं सकते। ट्रेन में मैं कोई पहली बार नहीं आयी थी। जब हम अपने भाई बहनों के साथ कहीं भी जाया करते थे तब उनके खर्चे का ध्यान देते हुए, हम यूँ बिना ए-सी टिकट के ही जाते थे, इसलिए मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई। 

ट्रेन में लोग सीट को खुरेद रहे थे, कोई अपनी मर्ज़ी के स्टेशन पर रुकने के लिए चैन खींच रहा था और कितने लोगों के फ़ोन चोरी हो गए। और मैं भी टिकेट २ नंबर में खरीद के बैठे हुई थी। तो बताओ देशद्रोही कौन नहीं है ?

सहारनपुर में ट्रेन ३० मिनट लिए रुक गयी है तो सोचा तुमसे ही बात कर लूँ। सारांश का फ़ोन आया था उसने अपने लिए कुछ तोहफा मंगाया है , अब कोई पूछे मैं उसके लिए बिना कुछ लिए कैसे आने वाली थी। उसको तो डर था की कोई न कोई तो मुझे ज़रूर लूट लेगा और फिर मैं उसको पकड़ कर धो दूंगी , वो मुझे एक्शन फिल्म के हीरो की तरह समझता है , उफ़ सारांश, उसके बिना तो कोई दिन बीतता ही नहीं। पर मैं कभी भी उससे इज़हार नहीं करुँगी यह रिश्ता बहुत प्यारा है। 

सारंगिणी कल मिलूंगी। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama