मार्गशीष
मार्गशीष
२० दिसंबर २०२१
११:०० बजे सुबह
अश्विन से मार्गशीष तक का सफर मुझे बहुत पसंद है। परन्तु पौष से लेकर फागुन तक का सफर नहीं। मुझे मध्यम ठण्ड का एहसास अच्छा लगता है पर ढलती ठण्ड का नहीं। आश्विन का महीना कितने सारे त्योहार लेकर आता है, कार्तिक का महीना देव दीपावली के साथ समाप्त और पूर्ण होता है। उसके बाद मार्गशीष कुछ दिन आराम देने आता है। नींद अच्छी लगने लगती है, सप्तपर्णी के वृक्ष छटा बिछोरना प्रारम्भ कर देते हैं और जीवन सुखद लगता है। उसके बाद तो हमारे यहाँ अंधी शीत लहर चलती है जो हर किसी को लचर कर देती है।
पिछले दिनों से मैं बहुत लचर महसूस कर रही थी। न घर से बाहर जा सकती थी और किसी को मिलने जा सकती थी। स्कूल की भी छुट्टियां हो चुकी थी। सारा होमवर्क भी समाप्त कर लिया था। सारांश से मिलने जाना चाहती थी, पर वो तो खुद ही मनाली गया हुआ है। उसने मुझसे भी पूछा था पर पापा ने जाने नहीं दिया। यूँ तो मैं सारांश के साथ अकेले उदयपुर भी गयी थी, पर बर्फीले इलाकों से पिता जी रिश्ता अच्छा नहीं हैं। मेरी माता जी की मृत्यु भी कुल्लू में ही हुई थी। मैंने तो उनकी शकल भी नहीं देखी। एक ही साल की थी और माँ पापा के साथ घूमने गयी थी , हादसे के बाद से पापा भी बहुत परेशां रहते थे इसलिए कभी मुझे पहाड़ों पर जाने नहीं दिया। सारांश ने मुझे कल फ़ोन किया, मैंने उससे पूछा की मज़ा आया तो कहता की 'मेरा दिल तो तेरे पास है , यहाँ लग ही नहीं रहा'
मैंने उसका बहुत मज़ाक बनाया पर फिर मुझे बहुत बुरा भी लगा, क्योंकि सत्य तो यह था की मन तो मेरा नहीं लग रहा था। पर इसका कारण सारांश नहीं था, ठीक है ! तुमसे बात करके मुझे महसूस होता है सारंगिणी। तुम मेरे लिए किसी दैनंदिनी से बढ़ कर हो। मैं सारांश को बहुत प्यार करती हूँ। सच कहूं तो जब से मुझे उसने अपना कहा है तब से हमने रोज़ बात की है। मुझे लगता था की यह इश्क़ होगा, पर अब यह मुहब्बत बन चूका और वात्सल्य से एक रति भी कम नहीं हैं। सारांश ने मेरे जीवन में वो कमी पूरी कर दी जो मैं जानती भी नहीं थी की उपस्थित थी। सारांश न जाने पर कैसे मेरे लिए इतना कीमती हो गया। मैं नहीं जानती की वो मुझसे कितना प्यार करता है ,पर अगर कहने वालों ने सच कहा है और आँखें अगर सच में झूठ नहीं बोलती तो मैं जानती हूँ की उसने भी मुझसे सच्चा प्रेम किया है।
आज कल मैं अधिकतर समय चिंतन में व्यतीत करने लगी हूँ, शायद यह मेरी प्रबल चैतन्य का नतीजा ही होगा पर अब हर चीज़ में मैं तर्क ढूंढती हूँ , तभी जाकर उसका रास ले पाती हूँ। आज तो पूरे ८ महीने बाद मंदिर गयी थी। क्यूंकि कल ही मेरा ईश्वर पर तर्क समाप्त हुआ। मैं खुद को बहुत गर्वित मानती हूँ की मैं भगवन ने नहीं डरती क्यूंकि वो मेरे मित्र हैं। दीनानाथ कृष्णा मेरे आराध्य ही नहीं मेरे अर्ध भी हैं और प्रेरणा भी। उनके ही सौजन्य से मुझे यह असीम विश्वास हो आया की मेरा प्रभु पर विश्वास और गूढ़ हो गया। इसलिए आज मंदिर गयी थी, धर्म पर मेरी इस रिपोर्ट को मैंने एक मैगज़ीन को भेजा है, उनका फ़ोन आया था उन्हें मेरी रिसर्च अच्छी लगी है और अगले महीने पब्लिश भी हो जाएगी। आज शाम सारांश को बताऊंगी। वो तो झूम ही उठेगा अच्छा चलो रात को बात करूँगी अभी दादा जी बुला रहे हैं।
११:३४ बजे रात्रि
घर से हर्षोल्लास से झूम उठे जब उन्हें मेरे प्रेक्षण की सूचना मिली। सारांश ने वीडियो कॉल और वहीं पर मेरे लिए केक भी काटा। मुझे कहने में अजीब लग रहा है पर आज मैं उसे कसके गले लगाना चाहती थी। जब पहली बार मैंने उसे गले लगाया था तब मुझे पूरी रात नींद नहीं आयी थी। मैंने एक कविता भी लिखी थी। पर अब मुझे लगता है की मैं कितनी बुद्धू थी। सोचती आज माँ ज़िंदा होती तो क्या कहती? पर जब पापा को देखती हूँ तो सोचती हूँ की काश माँ आज सच में जीवित होती। तो पापा भी उन्हें गले मिलकर अपने भाव साँझा कर पाते। पापा ने पूरा जीवन उनके बिना ही निकल दिया और कभी किसी और स्त्री की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा, भगवान न करे पर अगर मेरी मृत्यु हो जाएगी तो क्या सारांश भी मेरे बिना अपना जीवन व्यतीत कर लेगा ?

