Madhu Vashishta

Romance Tragedy Action

4.8  

Madhu Vashishta

Romance Tragedy Action

प्रेम की अनुभूति

प्रेम की अनुभूति

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आज बहुत समय बाद मैं उस कमरे से किसी तरह से व्हीलचेयर में बैठकर अपने पीछे वाले कमरे तक आया। उस कमरे की हर चीज मुझे सुशीला के होने का एहसास करवा रही थी। यूं ही टेबल पर पड़ा हुआ उसका लैपटॉप खोला तो उसमें सीडी यूं ही लगी हुई थी। सुशीला को इस दुनिया से गए 4 साल हो चुके और यह सीडी तब से लैपटॉप में ही लगी थी। कहीं खराब तो नहीं हो गई ऐसे सोचते हुए मैंने जब लैपटॉप में रखी वह सी.डी चलाई तो मानो मैं समय से 30 साल पीछे चला गया। वही पुराने सदाबहार गाने जो कि उस दिन मेरी गाड़ी में चल रहे थे जबकि पहली बार में सुशीला को लेकर मीटिंग के सिलसिले में दिल्ली से गुड़गांव जा रहा था। अक्सर किसी भी मीटिंग में मेरे साथ प्रशांत ही होता था लेकिन क्योंकि उस दिन मैं छुट्टी पर था और मेरे स्टाफ में सुशीला ही सबसे अच्छी टाइपिस्ट और कंप्यूटर ऑपरेटर थी। मीटिंग के मिनिट्स बनाने के लिए किसी को साथ ले जाना जरूरी था। हालांकि में स्टाफ की लड़कियों से कोई भी संबंध रखना पसंद नहीं करता था। मेरी छवि भी एक सख्त बॉस के रूप में थी और हो भी क्यों ना पापा के छोटे से ठेकेदारी के काम को मैंने बहुत बड़े दफ्तर में तब्दील कर दिया था। जिसमें की कंस्ट्रक्शन, इंटीरियर डेकोरेशन और नक्शे बनाने, वास्तु इत्यादि के सबके अलग-अलग विंग खुल चुके थे। कंस्ट्रक्शन संबंधी बहुत सी मशीनें हम खरीद चुके थे और अब अपना काम बढ़ा कर मैं प्रॉपर्टी डीलरी में भी कदम रखना चाहता था। मुझे सिर्फ बिजनेस को आगे बढ़ाने का जनून था। प्यार जैसी चीज की मेरी जिंदगी में ना तो कोई अहमियत थी।और ना ही मुझे कभी जरूरत लगी। हां मेरी बहुत सी कॉलेज की दोस्त जरूर थी जिनके साथ कई बार पब वगैरह में मैं वीकेंड पार्टी के लिए चला जाता था। कई बार ड्रिंक करते हुए मैं अपनी उन दोस्तों के साथ कैसीनो में या की रेस कोर्स में भी चला जाता था। उन दोस्तों के साथ घूमते हुए सिवाय मस्ती के मुझे कभी कुछ महसूस नहीं हुआ था।

उस दिन जब मैं सुशीला को लेकर गुड़गांव की मीटिंग में गया तो वह आगे वाली सीट में मेरे साथ ही बैठी। वह पूरे रास्ते बिल्कुल चुप ही रही। मैंने यूं ही गाड़ी में संगीत चला दिया। यह वही पुराने गाने थे जो कि शायद मैंने कभी ध्यान से नहीं सुने होंगे, सच पूछो तो मैं तो ऐसे गाने सुनता भी नहीं था शायद पापा यह गाड़ी कहीं लेकर गए होंगे तो उन्होंने शायद यह सी.डी गाड़ी में छोड़ दी होगी। वही पुराने गाने ,लग जा गले कि फिर यह हंसी रात हो ना हो, या यही वो जगह है यहीं पर कहीं आप हमसे मिले थे। और भी बहुत पुराने से अनसुने गाने जिनमें कि मैं खो सा गया था ।लोग कहते हैं ना कि कामदेव अपने अस्त्र शस्त्रों के साथ जब किसी पर भी निशाना लगाता है तो वह अचूक ही होता है शायद ऐसा ही रहा होगा, उन गानों को सुनने के बाद, साथ में बैठी हुई एकदम शांत सुशीला," वेस्टर्न कपड़ों में बैठी हुई तितलियों के साथ तो मैं बहुत घुमा था" लेकिन सुशीला की साड़ी का फैला हुआ पल्लू और गाड़ी में आई एक शांत से परफ्यूम की सुगंध, गाड़ी चलाते हुए उस संगीत में सुशीला के साथ मैं ना जाने कहां खो सा गया था। एक सुंदर सी सुगंध मेरे नाक में बस चुकी थी और शायद मुझे जीवन में पहली बात प्रेम की अनुभूति हुई थी। गुड़गांव में जब हम उतरे तो मैंने देखा यह सुगंध उसकी चोटी में गुंथे हुए गजरे की थी। मीटिंग के बाद हम वापस भी आए लेकिन सुशीला ने हां या नहीं से आगे मुझसे कुछ भी नहीं बोला था लेकिन मुझे ऐसे लग रहा था मानो उस संगीत के रूप में ही हमने बहुत कुछ बोला हो और आंखों ही आंखों में उसने जवाब भी दिया हो। ऑफिस में वापस आने के बाद भी मैं उन अविस्मरणीय पलों को भुला ना सका और फिर मेरा कहीं और मन लगा भी नहीं। मां तो मेरी थी नहीं, पापा को सुशीला के बारे में बतलाया तो पापा बेहद खुश हुए सुशीला उनके साथी ठेकेदार की ही बेटी थी जो कि उसके पापा के कहने पर पापा ने ही अपने ऑफिस में लगा ली थी।

कुछ समय बाद हम दोनों का विवाह हो गया। रिसेप्शन में आने वाले मेरे सारे ऑफिस के मातहत लोग जब सुशीला से घुलमिल कर बात करने की कोशिश कर रहे थे तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उस समय मेरे अपने कॉलेजों के दोस्तों के सामने मैं अपनी पत्नी का जो रूप दिखाकर उन्हें इंप्रेस करना चाहता था यहां तो बिल्कुल ही उससे उलट हो रहा था। मैं दिन पर दिन इतनी ऊंचाइयों पर चढ़ रहा था और मेरे बगल में बैठी हुई मेरे पत्नी के रूप में मेरी मातहत सुशीला, अचानक से मानो मोहभंग हो गया हो।

सुशीला बेहद गंभीर और बहुत अच्छी लड़की थी, मेरे पिता का और घर का वह बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी लेकिन उस दिन जब मैंने देखा कि मेरे ऑफिस के फोन से लंच टाइम में रेहाना और आशिना दोनों मिलकर सुशीला का नाम लेकर हंस हंस कर बातें कर रही थी तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने ऑफिस में ही ऑफिस के फोन से फोन करने के लिए उन्हें डांटा और फिर सुशीला को फोन करके भी बेहद खरी-खोटी सुनाई कि तुम्हें समझ नहीं है तुम्हारे ऑफिस के फोन इस तरह से प्रयोग हो रहे हैं ।अब तुम उनकी सहेली नहीं हो अब तुम इस ऑफिस की मालकिन हो अपने व्यवहार में बदलाव लाओ। उस दिन घर जाने पर देखा सुशीला के व्यवहार में काफी बदलाव आ चुका था वह मेरे सामने भी कभी सहज नहीं हो पाती थी ।शायद वह मुझे कभी पति रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाई और ना ही मैं कभी पति या कि उसका दोस्त बन पाया। वह आज भी मुझसे वैसे ही डरती थी जैसे कि ऑफिस में सख्त मिजाज बॉस से पूरा ऑफिस थर्राता था। यूं भी मैंने प्रॉपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था और मैं अक्सर व्यस्त ही रहता था। कंस्ट्रक्शन के काम भी मैने दूसरे प्रदेश में लेने शुरू कर दिए थे इसलिए अब मैं अक्सर शहर से बाहर भी रहने लगा था। मैंने उसकी ऑफिस की सहेलियां तो छुड़वा दी थी लेकिन उसने अपने इस खाली समय को मेरे दोनों बेटे जय और विजय की देखभाल में लगा दिया था। उसने मुझसे ना तो कुछ चाहा और ना ही कुछ मांगा। मेरे पिता की मृत्यु तक वह हर पल उनके साथ ही रही। मेरे दोनों बच्चों को भी उसने बहुत अच्छे संस्कार सिखाएं थे। नौवीं क्लास के बाद दोनों बेटों को मैंने इंग्लैंड के एक स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया था। पापा की भी मृत्यु हो चुकी थी। मैं तो घर में कभी-कभी ही आता था लेकिन मुझे नहीं पता कि वह अपना खालीपन और अकेलापन कैसे बिताती होगी। हां उसे संगीत का बहुत शौक था। बच्चों को जब उसने अपनी आवाज रिकॉर्ड करके लोरी वगैरा उनके कॉलेज में भेजी तो बच्चों ने उसके सभी गानों को एक यूट्यूब चैनल में भी डाल दिया था। यह तो मुझे पता चल गया था कि वह काफी प्रसिद्ध हो चुकी है लेकिन मैंने कभी उस चैनल के गाने सुनने की भी जरूरत नहीं समझी।

दोनों बच्चे एमबीए करके भी आ चुके थे और अब ऑफिस का काम भी संभाल रहे थे, हमारा ऑफिस अब बहुत बड़ा और नामी ब्रांड बन चुका था। बच्चे भी अपनी पार्टियां वगैरह में ही व्यस्त रहते थे, अब सुशीला को गानों की रिकॉर्डिंग के लिए भी टीवी चैनल्स और कैसेट्स वाले बुलाने लगे थे। एक दिन वह अपने गानों की रिकॉर्डिंग के लिए ही जा रही थी कि उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया और ड्राइवर और वह दोनों ऑन द स्पॉट ही मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

हां उसके बाद अगर फर्क पड़ा था तो सिर्फ यह कि घर में इतने नौकर चाकर होने होने के बावजूद भी घर कभी इतना व्यवस्थित नहीं मिला। मैं रात में आता था या दिन में बहुत से नौकर मेरे लिए दरवाजा खोलते पानी वगैरह देते लेकिन उन दो मुस्कुराती आंखों के जैसे किसी की भी आंख में मेरे लिए इंतजार नहीं दिखता था। शराब तो मैं पहले भी पीता था लेकिन अब तो मैंने अपने आप को और भी ज्यादा डुबो दिया था। मेरा अपना नियम दिन में कभी शराब ना पीने वाला वह भी टूट चुका था। मेरे दोनों बेटे भी मेरे ही नक्शे कदम पर चले थे और उनका भी लक्ष्य अपने इस कंस्ट्रक्शन ब्रांड को हर शहर में स्थापित करना था।

यूं ही 5 दिनों से वैसे ही भागदौड़ बहुत थी एक साथ चार टेंडर मिल गए थे। दो रात से उन्हीं का एस्टीमेट लग रहा था। बहुत से नए कंस्ट्रक्शन के यंत्र भी खरीदे गए थे। लोन वगैरह के कागज साइन करना ,फुर्सत ही नहीं मिली थी हल्का हल्का सा सीने का दर्द पता ही नहीं चला कब हार्टअटैक में बदल गया और जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने आप को

हॉस्पिटल के कमरे के बाहर पाया। जय और विजय भी हाल पूछने आए थे और मेरे लिए एक नर्स और एक अटेंडेंट रख दिया गया था। छुट्टी मिलने पर जब मैं घर में अपने कमरे में रहता तो मुझे अक्सर अब सुशीला की याद आती ‌थी। पहले जब भी मैं घर में रहता वह मेरे आसपास से घूमती और मुझे अपने होने का एहसास जरूर कराती थी पता नहीं उसे कैसे पता लग जाता था कि अब मुझे क्या खाने या क्या पीने की इच्छा होगी। हालांकि मैं जब शराब पीता था तो उसका मुंह उतर सा जाता था लेकिन वह मुझे रोकती तो नहीं थी पर मैं भी कई बार उसका मान रख देता था और बोतल से किनारा कर लेता था। घर के कमरे में मुझे होश तो आ गया था लेकिन इतनी कमजोरी आ गई थी कि मैं अपने आप को चलने फिरने में भी असमर्थ पाता था। मुझे अब पता चला कि अस्पताल में मुझे हार्टअटैक ही नहीं आया था अपितु सांस की भी समस्या होने के कारण मैं वेंटीलेटर पर भी रहा था भी।मेरे बचने की उम्मीद भी नहीं थी। अब मैं काफी ठीक तो हो गया था लेकिन कमजोरी बहुत ही ज्यादा थी और मैं खुद को अकेले बाथरूम तक भी जाने में संभाल नहीं पाता था। एक नर्स और एक अटेंडेंट हर समय मेरे साथ रहते थे। जय विजय भी समय मिलने पर मेरा हाल पूछते ही रहते थे।

आज सुबह ऐसा महसूस हुआ मानो सुशीला मेरे बालों में हाथ फिरा रही हो।

नर्स अपने कमरे में थी और अटेंडेंट सो रहा था किसी तरह से मैं व्हील चेयर पर बैठा और पीछे सुशीला के कमरे की ओर बढ़ गया। वह अक्सर वहां बैठकर अपना संगीत का रियाज करती थी या गाने सुनती रहती थी। मैंने उसका लैपटॉप खोला तो उसमें वही सीडी जो आज से 30 साल पहले कार में बज रही थी बजने लगी।, मैं भी वही पुराने समय में लौट आया और उसी प्रेम की अनुभूति मुझे फिर से हुई। फिर से मोहभंग हो गया ।मैंने अपना वह प्रेम खो दिया। मुझे कोहिनूर हीरा मिला लेकिन मैंने पैसों की ललक में उसकी कदर ही नहीं करी। तभी उसकी आवाज में वही पुराना गाना बजा

'तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे, मोहब्बत की राहों में मिलकर चले थे।"

हां यह सुशीला की ही आवाज थी। मैं पागल के जैसे चिल्ला उठा सुशीला सुशीला सुशीला!!!!!!!! अटेंडेंट और नर्स दोनों भागे भागे आए।

क्या हुआ सर ? आप यहां कैसे ? कुछ नहीं तुम जाओ या बाहर बैठो। मैं शांत होकर फिर से वही सारे गाने सुनना चाहता था जो कि सुशीला ने गाए थे या कि वह सुनती थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि उस संगीत के कारण मुझे सुशीला से प्रेम की अनुभूति हो रही थी या कि सुशीला से प्रेम के कारण मुझे वह संगीत अच्छा लग रहा था।


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