पोस्टर
पोस्टर
रात को ही पूरे शहर में एक पोस्टर लगा दिया गया था।सुबह जो भी जिधर से गुजरता वो पोस्टर दिखाई पड़ जाता था।मजेदार बात यह थी कि वह शहर में लगने वाले पोस्टरों से भिन्न था।आमतौर पर लोग पोस्टरों में अपना नाम, पद,पता,मोबाइल नम्बर लिखते हैं और शहर के लोगों को भिन्न भिन्न त्योहारों या राष्ट्रीय पर्वों पर अपनी शुभकामनाएं देते हैं।लेकिन यह पोस्टर थोड़ा भिन्न था।
उसपर एक आदमी की तस्वीर थी और नीचे लिखा हुआ था 'आप लोग बहुत सुंदर हैं।!
शाम को इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले पॉइंट्स पर भी वही तस्वीर अपने उसी उद्बोधन के साथ दिख रही थी कि आप लोग बहुत सुंदर हैं।तस्वीर पर नाम पता पद कुछ भी नहीं लिखा हुआ था।शहर में सक्रिय लोगों में भी उस पोस्टर की चर्चा चल रही थी तो साहित्यकार लोग भी उस पोस्टर की आपस में चर्चा कर रहे थे।पत्रकार बन्धु भी उस पोस्टर की चर्चा में शामिल हो गये थे।
आखिर ये आदमी कौन है,क्या करता है और इस पोस्टर का क्या उद्देश्य है। ऐसी ही एक चर्चा में एक सज्जन पहुंचे,लोगों ने उनका अभिवादन किया।"आइए हरिहर बाबू आजकल कई दिनों से आप दिख नहीं रहे थे।ठीक ठाक तो है न सब? "
हरिहर भाई ने सबको धन्यवाद दिया और बोल उठे कि "आप लोग बहुत सुंदर हैं।ये मैं नहीं कह रहा हूँ शहर भर चिपके हुये पोस्टर की तस्वीर कह रही है।मैं तो आप लोगों को जानता ही हूँ कि कौन कैसा है।"
एक सज्जन बोले "हरिहर बाबू जरूर उस आदमी के बारे में जानते होंगे,देखा तो हमने भी पर कभी उनसे किसी प्रकार की बात नहीं हो सकी है।वो अक्सर सार्वजनिक कार्यक्रमों में उपस्थित रहते हैं।"
हरिहर बाबू बोले "ठीक से तो मैं भी उनको नहीं जानता हूँ पर कई बार मेरी उनसे बात हुई है और अभी कल ही उनसे बात हुई थी लेकिन पोस्टर के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई थी।आज मैं जिधर भी देख रहा हूँ उनका पोस्टर नजर आ रहा है।कितना अच्छा लग रहा है कोई पोस्टर में ही सही शहर के लोगों को सुंदर तो कह रहा है।अब कभी मिलेंगे तो विस्तार से जरूर पूछुंगा उनसे उनके बारे में। "
तीसरे सज्जन ने कहा "उनका नाम तो मैं जानता हूँ पर कहाँ के रहने वाले हैं, क्या करते हैं यह सब नहीं जानता हूँ।भले आदमी लगते हैं। कभी कभी इस काफी हाउस में भी आते हैं,अकेले अकेले चाय पीते हैं,अखबार पढ़ते हैं और फिर चले जाते हैं।कभी किसी बहस में हिस्सा नहीं लेते हैं।
कई बार मैंने कोशिश भी की थी कि हम लोगों की चर्चाओं में हिस्सा लें,पर वो निकल लेते हैं।हाँ ,मुझे ये जरूर लगता है कि वो हमारी बहसें बहुत ध्यान से सुनते हैं।"
अभी यह चर्चा चल ही रही थी कि वो आदमी काफी हाउस में आ गया और चुपचाप एक किनारे पड़ी खाली कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ने लगा।सब लोग उसे आते हुये और आकर खाली कुर्सी पर बैठते हुये देख ही रहे थे कि हरिभाई बोल उठे भाई साहब यहाँ आइए हम सब लोग आप ही की चर्चा कर रहे हैं और आप अकेले बैठे हुए हैं।आइए हम लोगों के बीच अपना परिचय दीजिये और सबसे परिचित हो जाइये।"
वो आदमी अपनी जगह से उठकर लोगों के पास चला आया।कहने लगा "मेरा नाम आनन्द है और मैं यहाँ का रहने वाला हूं देखता ही रहता हूँ मैं भी आप सारे लोगों को ही।खाली आदमी हूँ कोई कामधाम नहीं है मेरे पास समय गुजारने के लिये शहर में आता ही रहता हूँ।आप लोगों की बहसों में मैं जानबूझकर शामिल नहीं होता।अनावश्यक विवाद में पड़ने से मैं कतराता रहता हूँ।मैं समझ रहा हूँ आप लोग मेरी नहीं मेरे पोस्टर पर चर्चा कर रहे थे।"
एक सज्जन ने कहा "नहीं नहीं चर्चा तो आप की ही हो रही है और पोस्टर तो एक माध्यम भर है।आप को कम से कम अपना नाम और पता तो पोस्टर पर लिखना ही चाहिये था।"
आंनद बाबू कहने लगे "मुझे कौन सा चुनाव लड़ना है या अपना परिचय का दायरा बढ़ाना है या किसी तरह का प्रचार करना है।शहर में रोज पोस्टर देखता ही रहता हूँ मैंने सोचा एक पोस्टर मैं भी लगवा दूँ, और मैंने लगवा दिया और सचमुच मुझे यह शहर बहुत अच्छा लगता है यहां के लोग अच्छे लगते हैं और यही बात मैंने पोस्टर में लिखवा दिया।इतनी बात कि आप लोग बहुत सुंदर हैं।जो लोग मुझे जानते हैं उन्हें तो पता ही है मेरे बारे में और जो लोग नहीं जानते हैं उनका भी तो सरोकार है पोस्टर में।उनके भी सुंदर होने का जिक्र तो है।"
हरिहर भाई ने कहा "आप कितना जानते ही हैं इस शहर को।इस शहर में ऐसे ऐसे लोग भी हैं जो पूरे देश मे अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिये जाने जाते हैं।आप प्रबुद्ध आदमी हैं अखबार पढ़ते ही हैं ।इनका जिक्र तो आता ही रहता है खबरों में।उनके बारे में आप का क्या नजरिया है।क्या उन लोगों को भी आप सुंदर ही कहेगें।"
आनन्द बाबू ने कहा कि "जरूर मैं पढ़ता रहता हूँ इन लोगों के बारे में लेकिन मैं इतना ही कहूंगा कि पुलिस भी तो है।"
हरिहर बाबू ने कहा "कभी इनसे आप का सामना हो तो आप को पता चले कि पुलिस आप के साथ है या इनके साथ है।"
आनन्द बाबू ने कहा "इससे शहर के लोगों की अच्छाई पर क्या असर है।ये लोग सुंदर हैं और बने रहना चाहते हैं। चलिये पहली बार मैं आप लोगों के बीच अपनी बहस के बहाने शामिल हुआ।आप लोगों से परिचित हुआ।आगे भी मैं शामिल होता रहूंगा आप लोगों की दूसरी बहसों में भी।आज अभी मेरे पास एक काम है और मुझे जाना पड़ेगा।आप सभी लोगों को एक साथ प्रणाम।" यह कहते हुए आनन्द बाबू काफ़ी हाउस से बाहर चले गये।
लेकिन उनके जाने के बाद भी उन पर चर्चा होती रही कि आदमी तो बहुत अच्छा है।आज तो प्रेस क्लब में भी उसी पोस्टर की चर्चा चल रही थी।हाँ यहाँ उनको जानने वाले अधिक थे।नाम से लगभग सभी लोग परचित थे।लेकिन किसी की उनसे निकटता नहीं थी।
एक सज्जन कह रहे थे"मैं आनन्द बाबू को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ उनके ताल्लुकात ऊंचे लोगों से है ।इन ऊंचे लोगों में राजनीतिज्ञ भी हैं और अधिकारी भी हैं।लग रहा है कि वो राजनीति में आने का मन बना चुके हैं।पोस्टर लगवाने के मतलब ही यही है।दूसरे ने कहा आप बिलकुल ठीक बोल रहे हैं लेकिन उन पर किसी का विश्वास नहीं है।जानते तो सभी हैँ उनको।बड़े बड़े मसले पर वो अपनी राय बेलौस प्रकट करते हैं।राजनीति में लोगों को फालोवर की जरूरत होती है लेकिन वो किसी को फॉलो नहीं कर सकते ।देश के विभिन्न मसलों पर उनकी अपनी समझ है।"
एक सज्जन कहने लगे कि "अक्सर खुफिया विभाग के लोग उनके बारे में मुझसे कुछ जानना चाहते हैं पर खुद नहीं बताते कि किस तरह के वो आदमी हैं।उनके बारे में वो लोग क्या जानना चाहते हैं।एक रहस्यमय वातावरण तो है उनके पास।बेमतलब तो खुपिया विभाग के लोग कोई प्रयास नहीं करते।जरूरत शासन से जुड़ा कोई सन्दर्भ है।"
एक सज्जन कहने लगे "मैं जानता हूँ कि इस आदमी को इस गिरोह के लोग फूटी आंख से भी नहीं देखना चाहते लेकिन उनके खिलाफ जाने की हिम्मत नही कर पाते।जो भी हो हम लोगों को इस पोस्टर पर कोई ख़बर बनानी चाहिये।एक आदमी बिना प्रचार पाने की लालसा के हम शहर के लोगों को भला कह रहा है, अच्छा कह रहा है, शहर को सम्मान दे रहा है।"
शहर के प्रति उसकी भावना का प्रतिबिंब है उसका पोस्टर।नाम और पता नहीं छपा है तो क्या हुआ हम लोग तो जानते ही हैं उन्हें,और उनके बारे में भी बहुत कुछ।सचमुच दूसरे दिन उस पोस्टर की चर्चा सारे अखबारों में थी और उससे जुड़ी खबरों के केंद्र में एक बात कामन थी कि ऐसे लोगों की जरूरत है जो लोग निस्वार्थ भाव से शहर के लोगों को उनके अच्छा होने का एहसास दिलाता रहे।
