Harish Sharma

Romance

4  

Harish Sharma

Romance

पन्द्रह मिनट प्यार के

पन्द्रह मिनट प्यार के

11 mins
278


स्टेशन पर वो एक घण्टा पहले ही पहुंच गया। क्या बेसब्री थी,जैसे इंतजार करना जो उसके लिए हमेशा एक सज़ा जैसा रहा है,आज एक मनपसन्द गीत गुनगुनाने जैसा था। उसने स्टेशन के बाहर खुली पार्किंग में ही गाड़ी स्टार्ट करके रोक ली। अभी टाइम है,बाहर गर्मी थी। जून के महीना। गाड़ी का ऐ सी इस गर्मी के बीच मनाली के एहसास जैसा था। उसने म्यूजिक सिस्टम में गाना बदला और अरिजीत सिंह को सुनने लगा। हर गाने में जैसे वो खुद हो। सामने डैश बोर्ड पर समय दिखाती घड़ी और उसके हाथ मे पकड़े मोबाइल के नोटिफिकेशन पर उसकी नजर बार बार जा रही थी। 

सिर्फ पन्द्रह मिनट ही तो रुकेगी ट्रेन यहाँ। पन्द्रह मिनट मतलब नौ सौ सेकंड,उसे समय को सेकंड्स में सोचना चाहिए,ये मिनट के मुकाबले ज्यादा अपने लगते है। पल्लवी ने व्हाट्सएप्प मैसेज किया था तो बताया था कि फोन का नेटवर्क इससे आगे शायद टूट न जाये, गाड़ी पटियाला के से गुजर चुकी है। अम्बाला पहुचने में घण्टा भर तो लग ही जायेगा। मयंक ने मोबाइल पर ट्रेन नम्बर भरा और ट्रेन का रनिंग स्टेटस चेक किया। बिल्कुल राइट टाइम शो कर रही थी।सही साढ़े चार बजे का टाइम था अम्बाला पहुंचने का। 

उसने फिर व्हाट्स ऐप पर पल्लवी का नम्बर देखा। ऑनलाइन नही थी। उसने सोचा कि पल्लवी के लिए कुछ खाने पीने का सामान खरीद ले। पर उसकी खाने की आदतें बड़ी मजेदार है। बच्चों की तरह चटपटा, खट्टा और मसालेदार। इतना बड़ा स्टेशन है, वहाँ कई स्टॉल्स हैं। कोल्ड ड्रिंक वो पीयेगी नही,उसे फ्रूटी चाहिए और साथ मे स्पाइसी चिप्स। 

आज चैट करते समय कहने लगी कि देखो ऐसा करना,स्टेशन पर छोले की सब्जी और हरी मिर्च के साथ भटूरा खाने की मुझे बचपन से आदत थी, पर अब हरी मिर्च खाती हूँ तो पेट दर्द करने लगता है, इसलिए चिप्स से काम चला लूंगी। बड़ा पैकेट ले लेना,कंजूसी मत करना,क्योकि तुम मुझे अकेली को तो खाने नही दोगे, लचओगे और पैकेट से चिप्स जरूर लोगे। पन्द्रह मिनट में दो तो खाये जा सकते हैं। कहकर फनी स्माइली भेज दिए। पल्लवी को हमेशा,हर पल मजाक की आदत है, जरा सी कोई गम्भीर बात करो तो सीधा कह देती, देखो अब मैं बोर हो रही हूँ,तुम कोई और बात क्यो नही करते। मयंक ने इसीलिए शायद उसके लिए रविन्द्र सिंह की दो लव स्टोरी वाली किताबें खरीदी है,उसका टेस्ट हैं ऐसी आरामदायक किताबों में। उसे गम्भीर होना अच्छा नही लगता। छह महीने पहले जब पल्लवी और मयंक की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई तो वो दोनों अपनी कम्पनी की तरफ से एक रिफ्रेशिंग कोर्स करने के लिए इकट्ठा हुए थे। पांच दिन का कोर्स। बड़ा रिलेक्सिंग था। मोटिवेशनल लेक्चर,सुबह योगा और वाक, लाफिंग शो, बिजनेस स्ट्रेटजी में बातचीत करने के नए ढंग। मल्टीनेशनल कंपनी के उन एम्प्लॉयीज को यहां मौका मिला, जिन्होंने अपने मार्केटिंग टारगेट को समय पर पूरा किया था। मयंक और पल्लवी उनमें से थे जो टारगेट को नाइंटी परसेंट पूरा करके भी एंट्री पा गए थे। वहां बातचीत में पता चला था कि टारगेट के पीछे पागल होने वालों में तो वो नही थे पर शायद उन्हें यहाँ आना था, तो आ गए। 

और पल्लवी जैसे हर वक्त उसके दिमाग मे शरारत हो। मयंक को एक दिन जब स्टेज पर कुछ बोलने के लिए बुलाया तो बोलते बोलते उसकी नजर सामने बैठे लोगों में पल्लवी पर पड़ी। पल्लवी ने मयंक के साथ आई कांटेक्ट होते ही अपनी आँखों से ऐसा इशारा किया कि मयंक मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाया। लंच टाइम हो या डिनर, मयंक प्लेट में खाना कम डालता तो कहती, खाओगे पिओगे नही तो टारगेट कैसे पूरा होगा, दबा के खाओ। ज्यादा डाल लेता,तो कहती कि यार अब फ्री का है तो मतलब कम्पनी को लूटोगे तुम। तरस खाओ। मयंक अपनी हंसी मुश्किल से रोकता। और फिर चैट, मैसेजेस में हर वक्त मजाक। मयंक कई बार कन्फ्यूज हो जाता कि पल्लवी को दोस्त कहे,कलीग कहे या क्या कहे। पर धीरे धीरे जैसे मयंक को उसकी आदत हो गयी थी। ट्रेनिंग तो खत्म हो गयी। वो बैंगलोर चला गया और पल्लवी दिल्ली ब्रांच में रही। पर चैट ने उन्हें रूटीन में जोड़े रखा।

मयंक जैसे ट्रेनिंग की बातों में डूबा तो किसी कार के तेज हॉर्न ने उसकी तन्द्रा तोड़ दी। उसके साथ पार्क की कार का हार्न था,वो बाहर निकल रही थी। 

चार बजकर दस मिनट हो गए थे। सिर्फ बीस मिनट और। उसने गाड़ी को बंद किया और अपने आप को एक बार गाड़ी के मिरर में देखा। बालों को हाथों से सेट किया और मुस्कुराते हुए जैसे चेहरे के एंगल को जांचा। गाड़ी से उतर कर वो स्टेशन के अंदर प्लेटफार्म न दो की तरफ चल दिया।

प्लेटफार्म न दो पर पहले ही एक ट्रेन खड़ी थी। उसने फिर फोन चेक किया, व्हाट्स ऐप पर पल्लवी का मैसेज अभी आया ही था,बस शायद दस मिनट और। उसने रिप्लाई में लिखा,'कोई बात नही, थोड़ा इंतजार और सही'।

प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रैन का हार्न बजा, वो जाने वाली थी। मयंक प्लेटफार्म पर लगे एक बेंच जो बिल्कुल एक खाने पीने वाले स्टाल के पास था,वहां बैठ गया। पल्लवी का ए सी सेकंड का कोच और बर्थ नम्बर उसने दोबारा से पल्लवी के मैसेज में देखा।

उसने कहा दिया था कि ट्रेन से मत उतरना,जो चाहिए मैं खुद ले आऊँगा। बाहर गर्मी भी होगी और भीड़ भी। अंदर बैठ कर बात कर लेंगे। पल्लवी ने फिर मजाक में कहा था,'अच्छा। और अगर सामने की सीट पर बैठे अंकल ने घूरा फिर।'

मयंक उसकी बात याद करके हंस पड़ा। मयंक ने कहा था,'हम ऐसा कुछ नही करेंगे कि अंकल को घूरना पड़े। उन्हें चिप्स खाने का मन होगा तो पूछ लेगें।'

"अच्छा तो तुम क्या सबके लिए चिप्स का लंगर लगा रहे हो, मैं अपना पैकेट नही दूंगी किसी अंकल वंकल को। तुम उनके लिए अलग से ले लेना फिर,अगर इतनी ही सोशल सर्विस करनी है तो। 'कहकर टेढ़े मुंह वाला इमोजी भी भेज दिया।

"देखो अंकल मेरा मामा तो लगता नही,तुम्हे ही चिंता है उसके घूरे जाने की,मुझे कोई फर्क नही पड़ता।'

'अच्छा, बड़े एडवांस हो गए हो, हैं,वह ट्रेनिंग में तो सुबह की वाक भी इक्कट्ठे करने से डरते थे,काफी चेंज हो गए हैं।'

"अब तुम्हारे साथ रहूंगा, रोज चैट करूंगा तो फर्क तो पड़ेगा ही।"

"पड़ना ही चाहिए,अक्सर लोग ग्रेट लोगों को फॉलो करते हैं'

"बिल्कुल,तुम न ज्ञान दो तो मेरा क्या हो,जिंदगी बदल दी तुमने,बड़ी कृपा हो तुम्हारी।'

'जिंदगी बदल गई,अच्छा, देखो यार तुम दिल्ली ब्रांच में मेरे साथ आ जाओ तो सब कुछ बदल जाये,बैंगलोर में वो बात कहाँ।"

"ये भी हो सकता है तुम्हे कम्पनी बैंगलोर शिफ्ट कर दे,और तुम मेरे पास आ जाओ।"

"हम्म, ये भी है,पर दिल्ली का मजा ही और है,तुम पांच दिन तब ट्रेनिग में रहे ही हो,कितना घूमे हम आखिरी दो दिन। "

"उसी का असर है कि रोज चैट करने की आदत पड़ गई। न करो तो ऐसे लगता जैसे आज सांस ही नही ली।"

"ओह, अच्छा,इतनी प्यारी बातें....हैं,इरादा क्या है वैसे"।

"कोई इरादा नही, जो है बहुत अच्छा है,कई बातें ऐसे ही चलती रहे तो कोई न कोई मंजिल बना ही लेती हैं।"

"क्या बात है,वैसे ये डायलॉग कहा से लाते हो तुम यार।"

"हा हा,डायलॉग कहा से लाता हूँ..... तुमसे बात करते करते गूगल मेरी स्पोर्ट करता है,वही भेज देता है।"

"अच्छा मजाक है ये...।"

"शुरू तो तुमने किया ...."।

 मयंक ने जैसे कितनी बातों को याद किया हो। उसका दिल जैसे लहरों में तैर रहा हो। सामने खाली पड़ी ट्रेन की पटरी। उसकी दाई ओर से पल्लवी की ट्रेन बस अभी आने वाली है। प्लेटफार्म का डिजिटल क्लॉक पूरे चार बजकर उन्नतीस मिनट दिख रहा है। अनाउंसर आने वाली ट्रेन के बारे में बता रही है,टिंग टिंग की कम्प्यूटरीकृत आवाज जैसे मयंक की धड़कन को तेज कर देती है। ट्रेन आ गई है। धीरे धीरे रुक रही है। मयंक ने झट से स्टाल से सामान लिया और सेकंड ऐ सी की बोगी की तरफ चल पड़ा। ऐ सी बोगी के बाहर भीड़ बहुत कम होती है,इसलिए दो चार यात्री उतरे तो दो चढ़े बस। वो भी बोगी के अंदर चला गया। सीट न 52 की तरफ। पल्लवी ने उसे देख लिया था और वो उसकी तरफ आ गई। उसका हाथ पकड़ा और अपनी सीट की तरफ ले जाते हुए हंसते हुए पूछा,'ठीक हो।"

लाल रंग के कवर सजी सीट पर वे बैठ गए। टंगे हुए पर्दे, ऐ सी की ठंडक और कॉर्नर में लगा टेबल लैम्प। पल्लवी सीट पर पालथी मार कर बैठ गयी। 

"पन्द्रह मिनट हैं,आराम से बैठो। "

"पहले तुम अपने चिप्स संभालो,बैठ तो मैं गया ही। "

सामने वाली सीट पर एक अंकल लेटे हुए थे,शायद सो रहे हों।

"लो अंकल वाली दिक्कत भी दूर, अब नही घूरेंगे।" मयंक ने हंसते हुए कहा।

"घूर भी लेते तो क्या,मेरे कौन से पापा लगते।"

कहकर पल्लवी ने मयंक का हाथ पकड़ लिया।

मयंक को जैसे कोई सिहरन सी हुई हो। ट्रेनिंग के दौरान सुबह की वाक करते हुए पल्लवी ने ऐसा जब पहली बार किया तो वो इसी तरह सिहर गया था। लेकिन पल्लवी ने कहा था,"ऐसे तो सबसे हाथ मिलाते हो, अब हाथ पकड़ लिया तो कोई घबराहट तो नही।'

"वैसे तो मैं 'कमजोर दिल वालो के लिए नही', वाली सारी फिल्में देख चुका हूँ,पर ....खैर यहाँ सब ट्रेनिंग वाले जाने क्या सोचें।"

तुम्हे लोगो की इतनी फिक्र क्यो है,जब मेडिटेशन वाली क्लास लेते,तब भी तो सर्कल में हाथ पकड़वाते हैं। और क्या सोचेगें यही न कि कोई चक्कर है,ये सब दिल्ली नोएडा वाले है,सबकी न जाने कितनी एक्स होगीं और होंगे,इनको ये सब सोचना नही आता,और अगर सोच भी लें तो न इन्हें फर्क पड़ता न मुझे "।

"अच्छा यार पल्लवी,लो अब मैं दुनिया की फिक्र करना छोड़ ही दूंगा, पर मार्केटिंग में मुझे ये चिंता ही टारगेट के करीब लेकर जाएगी।"

"जिंदगी और मार्केटिंग को खिचड़ी मत बनाओ,चार दिन मिले हो तो अच्छे दोस्त की तरह फन करो बस।"

मयंक जैसे याद कर के मुस्कराया हो।

"हेलो, कहा खो गए,हाथ पकड़ लिया तो समाधि में चले गए थे क्या। " पल्लवी ने बेफिक्री से एक हाथ से चिप्स कहते हुए कहा।

"हां सच मे, यादों की समाधि में,तुम्हारी आदत पड़ रही है मुझे, समझ रही हो।"

"ज्यादा समझने समझाने में नही पड़ना चाहिए जनाब।" अभी पन्द्रह मिनट में से पांच तो निकल गए,दस रह गए,समझने के चक्कर मे पड़ना है तो साथ ही दिल्ली चलो।"

" और दिल्ली तक सब समझ जाओगी, इसकी कोई गारंटी है।"

"अब देखो तुम या तो मार्केटिंग मैनेजर की तरह बात कर लो या मयंक ही रहो। फैशन के जमाने मे गारंटी नही होती,भूल गए मार्केटिंग का फंडा।"

"और जिंदगी में तो किसी रिश्ते की होती होगी।"

""चलो छोड़ो, और बात करते हैं, तो बंगलोर कब जा रहे।"

"बस चार दिन है, फिर जाऊंगा"

"अच्छा तो दिल्ली मुझे तो मिलकर ही जाओगे न, क्योकि मैं जानती हूँ,तुम टलने वाले तो हो नही।"

"मतलब तुम नही चाहती कि मैं मिलकर जाऊं।"

"मेरे चाहने से क्या होता है,तुम्हारी मर्जी है।"

"हाँ तो मतलब तुम्हारी मर्जी नही है।"

"हम्म,चलो तुम्हारा दिल रख लेते हैं, ठीक है मिल लेंगे।'

"मेहरबानी आपकी,एयरपोर्ट के बाहर रेस्टोरेंट है,वही मिलेंगे फिर।"

"क्यो, शहर में आने से तुम्हे पुलिस ने रोक है क्या ?"

"अच्छा बाबा,तुम बता देना, में वही आ जाऊँगा।"

"वह कितना तंग करती हूँ मैं तुम्हे, नई....."।

"कोई नी, तेरा प्यार समझ लेते हैं।"

"वैसे तुम्हे गुस्सा आता होगा कईं बार मेरी बातों पर।"

"वहीं तो नही आता...  ।" मयंक ने पल्लवी की आंखों में आंखे डालकर कहा।

"तुमहे बाते इतनी प्यारी हैं कही तुमसे प्यार न हो जाये।"

" अच्छा..".( मयंक ने जैसे आपने मन मे कहा हो, 'तो और प्यार होना किसे कहते हैं।)

"क्या हुआ, बोल नही रहे कुछ।"

"कुछ नही,....खैर, उस दिन कह रही थी कि बॉस प्रोमोशन की बात कर रहा है।" 

"अरे हैं, बॉस कुछ ज्यादा ही खुश है,पूछता है,और पल्लवी कोई जरूरत हो तो बताना। " 

"फिर ....।"

"फिर क्या, मैने कहा दिया कि एक कार और एप्पल की रिस्ट वाच चाहिए,अगर आप गिफ्ट कर दें।"

"हा हा,तुम ने तो ले ली बॉस की फिर।"

"अरे नही, मैं तो मजाक कर रही थी,और मुझे तो गिफ्ट मांगने की आदत है,जो दे दे ठीक, वरना ...हा हा ...मजाक कर रही हूँ,सीरियसली मत लेना।"

मयंक भी मुस्कुरा दिया। पल्लवी का एक हाथ अब भी मयंक का हाथ पकड़े था। 

तभी चाय आ गई। पल्लवी ने आर्डर की थी। चाय के कप साइड टेबल पर रखवा लिए।

"मुझे मालूम है कि चाय के बगैर तुम काम नही करते,वरना कोल्ड ड्रिंक मंगवा लेती। अभी ये शाम की चाय के लिए मैने ही साढ़े चार के बाद बोला था। खैर चाय पता नही कैसे बनाते हैं,तुम्हे पसंद आएगी कि नही। "

"अरे ठीक है,तुम्हारे साथ पी रहा हूँ,तो चाय अपने आप अच्छी हो जाएगी।"

"अब ज्यादा नही हो रहा ये...।"

"क्या ज्यादा हो रहा,जो है सो है,कम से कम मुझे अपनी बात कहने की आजादी है कि नही।"

"जी जी आपको पूरी आजादी है मयंक महाराज,आप क्रांति करिए,हम भ्रांति में ही ठीक।"

पल्लवी ने कहकर चाय का कप उठाकर मयंक को दे दिया और अपना भी उठा कर सिप ली।

पन्द्रह मिंट या नौ सौ सेकेंड इसको जो भी कहिए, है तो वक्त ही, और वक्त कभी नही रुकता,किसी के लिए नही। 

बस जब इसकी ये बात समझ मे आने लगे तो हर पल को जी लेना ही बड़ी बात हो जाती है। मयंक और पल्लवी के बीच जैसे ये पन्द्रह मिंट जिंदगी में लंबे समय तक रुके रहेंगे शायद। 

चाय की आखिरी सिप और चिप्स का खाली पैकेट जैसे कह रहा हो कि अब जाने का वक्त है। गाड़ी के हार्न ने इस प्यारे पल के बीत जाने का जैसे संकेत दिया।

"लो चाय भी खत्म और चिप्स भी। " मयंक ने कहा।

"..और पन्द्रह मिंट का समय भी समाप्त, अच्छा चलो अब जाओ, वरना ट्रेन सुपरफास्ट है,दिल्ली तक लटके रहोगे मेरे डिब्बे में।" पल्लवी ने चेहरे पर मुस्कान लाकर कहा। उसकी आँखों मे जैसे कुछ और था। 

"हाँ यार,उतरता हूँ, तुम बड़ी बेदर्द हो, झटके से बुला लेती हो, फिर झटके से उतरने को भी कह देती हो।"

"अच्छस चलो, दरवाजे तक जाकर तुम्हे पूरे इत्मीनान और प्यार से उतार देती हो चलो।"

मयंक और पल्लवी खड़े हो गए। एग्जिट दरवाजे तक बढ़ते हुए जैसे वो आराम से आगे बढ़ रहे हो। पर दूरी बहुत कम थी दरवाजे की।आ ही गया। 

"अच्छा बाए,मिलते हैं, दिल्ली।"

"अच्छा .....ठीक है। "

मयंक ने अभी एक कदम दरवाजे से उतरने को बढ़ाया ही था कि पल्लवी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। कहा कुछ नही। 

मयंक मुड़ा और पल्लवी को बाहों में भर लिया। पल्लवी ने भी जैसे ऐसा ही चाहा था। 

"अच्छा अब जाओ, यार। इमोशनल अत्याचार न करो।" पल्लवी ने फिर हंसते हुए कहा।

"इमोशनली वीक तो मैं हूँ,तुम तो नही, तो तुम्हे क्या फर्क पड़ता है। "

कहकर दोनों मुस्कुराए और मयंक नीचे उतर गया। दोनों अपनी दिशाओं में मुड़ गए लेकिन अब भी साथ साथ थे, उनका साथ जैसे खुशबू बनकर उनके खून में दौड़ने लगा था।


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