पिटारा ख़ुशियों वाला
पिटारा ख़ुशियों वाला
मोहन के देहांत के बाद सुनीता बिलकुल ही टूट गई थी। अभी शादी के छः महीने भी तो नही हुए थे ठीक से। कितने सपने बुने थे सुनीता ने मोहन के साथ , एक प्यारा सा घर होगा और नन्हे बच्चे होगे, सब एक ही पल में चूर हो गए जब ये समाचार मिला की एक हादसे में मोहन की मृत्यु हो गई है। सुनीता तो कई महीनो तक बुत सी बनी रह गई थी।
सुनीता के माता-पिता और सास-ससुर बहुत कोशिश के बाद तो उससे उसका दुःख बुलवा पाए थे। वह अंदर ही अंदर घुटी जा रही थी। सुनीता को हमेशा से बच्चों से बहुत प्यार था। शादी के पहले वह एक नर्सरी स्कूल में पढ़ती थी अपने इसी बच्चों के प्रेम की वजह से। मोहन को गए अब साल भर होने को आए थे। उसकी बरसी में सभी ने अनाथालय में जा कर उन बच्चों के साथ कुछ समय बिताने की सोंची ताकि सुनीता का मन भी थोडा बहल जाएगा।
अनाथालय में, सभी ने देखा, नन्हे बच्चों के साथ सुनीता बहुत खुश थी। सुनीता की सास ने कहा, बेटा तु यहाँ आ ज़ाया कर, तुझे बच्चे पसंद हैं और इन बच्चों को तुम पसंद आ रही हो। सुनीता ने हां
कर दिया। अनाथालय की दीदी से बात कर ली गई। अब सुनीता हर दिन यहाँ आती और इन बच्चों के साथ समय बिताती। कुछ पढ़ा देती, कुछ खेला देती और ढेर सारा प्यार उनपर लूटा जाती। अब वह खुश रहने लगी थी। मोहन के जाने का दर्द कम होने लगा था। घर के लोगों को भी सुकून मिलता सुनीता को खुश देख कर।
कुछ महीने बीत गए तो एक दिन सुनीता अनाथालय से एक नवजात बच्चे को घर ले आई। बड़ी रुआंसी सी हो गई जब उसने अपने सास-ससुर को बताया कि इस एक दिन के बच्चे को कोई सड़क किनारे छोड़ गया था। सुबह पुलिस इसे अनाथालय में रख गई है। थोड़ी झिझक के साथ सुनीता ने उस बच्चे को गोद लेने की बात कही। उसकी बात सुन सास-ससुर बहुत खुश हो गए कि सुनीता की ख़ुशियों का जो पिटारा , मोहन के जाने के बाद बंद सा हो गया था, वह इस बच्चे के आने से खुल गया। सुनीता को भी जीने का कारण मिल जाएगा और बच्चे को भी माँ की ममता मिल जाएगी।
कई बार ज़िंदगी स्वयं ही आगे बढ़ कर हमें हमारे ख़ुशियों का ख़ज़ाना दे जाती है और जीने की राह दिखा देती है।