पीड़ित

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  सत्यदेव शर्मा की रेलवे में इंजिनियर पद पर नई नियुक्ति हुई थी, सत्यदेव एक जोशीला और इमानदार नौजवान हैं। उसके मन में कुछ कर दिखाने की लगन है, रोज़ की भांति आज भी सुबह वो पटरियों पर चल रहे अधूनिकीकरण के कार्य का अवलोकन कर रहा था , 15 दिन पहले ही ये कार्य शुरू हुआ था , ये एक महत्वकांक्षी योजना थी और लम्बे समय से इसके शुरू होने की प्रतीक्षा की जा रही थी, इस काम का बड़ा हिस्सा ठेकेदारों के द्वारा किया जा रहा था लेकिन बहुत सा कार्य रेल विभाग के द्वारा किया जा रहा था|| रेल विभाग के बहुत से दैनिक दिहाड़ी और संविदा मजदूर भी इस काम में लगे थे| सबको एक वर्दी भी मिली हुई है, सत्यदेव ने आजकल वर्दी पहनने पर कुछ ज्यादा ही सख्ती की हुई थी, क्यूंकि माल की चोरी बहुत हो रही थी, सभी के वर्दी में होने से बाहरी व्यक्ति का आसानी से पता चल जाता था।

सत्यदेव के साथ ड्राफ्टमैन वीरेन्द्र भी चल रहा है, तभी सत्यदेव की दृष्टी पाँच मजदूरों पर पड़ती है, वो बिना वर्दी के ही थे और बैठे ठिठोली कर रहे थे, सत्यदेव को देखकर वो काम पर लग गए, सत्यदेव इनको पहले भी वो बिना वर्दी के ना आने के लिए कह चुका था।

सत्यदेव इन पाँचो से पहले ही असंतुष्ट था आज उसका पारा चढ़ गया, उसने उनके पास जाकर कड़क लहजे में कहा।

सत्यदेव : वर्दी कहाँ है तुम लोगो की?

एक मजदूर ने बेफिक्री के साथ कहा “फट गयी थी बाबूजी”

सत्यदेव को उसका यूँ बेफिक्री से रुखा जवाब देना और बुरा लगा वो बोला “पाँचों की एक साथ ही फट गयी थी क्या? और कई दिन से देख रहा हूँ कि वर्दी पहन कर ही नहीं आते हो तुमसब , क्या इतने दिन में ठीक नहीं करवाई गयी तुमसे?”

अब दूसरा मजदूर अपना काम रोककर वीरेन्द्र की तरफ देखकर हँसते हुए बोला “अब इत्ती लम्बी तनखा बी नई मिल रही जी, जो वर्दी को रिपेर भी करा लें”

सत्यदेव को खुद को ऐसे अनदेखा किया जाना अच्छा नहीं लगा, सत्यदेव कुछ बोले इससे पहले वीरेन्द्र बोल पड़ा उन मजदूरों से “अबे तमीज में रहो इंजिनियर साहब हैं,ससुरो कलम चला दिए तो पूरा रेल डिपार्टमेंट में कहीं काम नहीं मिलेगा”

फिर वीरेन्द्र ने सत्यदेव का हाथ पकड़ कर उसे लगभग खींचते हुए वहाँ से ले चलने का प्रयास किया और सत्यदेव से बोला “चलो सर आगे का भी देखते हैं कुछ” फिर वीरेंद्र उन मजदूरों को लगभग डांटते हुए बोला “चलो बे काम करो”

सत्यदेव को ये कुछ यूँ लगा जैसे वीरेंद्र बात को ख़त्म कर रहा है,सत्यदेव पहले भी ये महसूस कर चूका था कि इन पाँचो को कोई टोकता ही नहीं था, जबकि वो लोग काम कम और मस्ती ज्यादा करते थे और इनमें से दो तो चोरी करते हुए भी पकडे गए थे।

सत्यदेव ने वीरेंद्र से कहा “अरे रुको वीरेंद्र जी... रोज देख रहा हूँ यहाँ कोई कुछ कहता ही नहीं इन लोगो को”

सत्यदेव ने हाथ झटक कर वीरेंद्र से छुड़ाते हुए उन मजदूरों की तरफ आकर कहा “नाम बताओ अपने तुम पाँचों? ...... और सुनो सत्यदेव आगे से इन्हें कोई काम देने की जरुरत नहीं है आज की दिहाड़ी भी नहीं दी जायेगी, कुछ किए ही नहीं हैं ये”

उन मजदूरों में से एक बोल पड़ा “अरे साहब ले जाइये बड़े साहब को, काहे खुद को गर्मी में तपा रहें हैं?”

सत्यदेव ने तुरंत कहा “पगार इस बात का ही लेते हैं तो पूरा काम भी करते हैं हम”

तभी उनमें से एक मजदूर ने लगभग अकड़ते हुए कहा “अरे साहब काम करने दीजिये ना, आप तो बैठ जायेंगे अपने दफ्तर में कूलर चला कर..... हमें तो धुप में सड़ना होता है,तो काहे खाल्ली बखत ख़राब कर हो अपना भी और हमारा भी.”

वीरेंद्र सत्यदेव को अलग ले जाने का प्रायास करते हुए बोला “चलो सर..... क्यों इनके मुहँ लग रहे हो, मैं देखता हूँ ना”

सत्यदेव ने वीरेंद्र को जमकर डांट लगाते हुए कहा “चुप रहो वीरेंद्र, मैं अपना काम कर रहा हूँ जिसकी पगार ले रहा हूँ”

और सत्यदेव उन मजदूरों की तरफ बढ़ते हुए बोला “चलो जाओ यहाँ से तुम लोग”

एक मजदूर कडवी सी मुस्कराहट चेहरे पर लाकर वीरेंद्र से बोला “अरे ले जाओ इन्हें साहब”

सत्यदेव ने उस मजदुर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “हमसे बात करो हमसे. और बात क्या करना है चलो जाओ यहाँ से.”

मजदूर सत्यदेव को घूरने लगे लेकिन वहां से हटे नहीं, सत्यदेव ने आगे बढकर एक मजदूर से फावड़ा छिनते हुए कहा “चलो जाओ यहाँ से”

मजदूर ने फावड़ा पीछे खींचते हुए कहा “अरे छोड़िये साहब क्यों इतना गरम हो रहें हैं? कर तो रहें हैं काम”

सत्यदेव : नहीं तुम्हे कुछ काम नहीं करना है पिछले काफी समय से देख रहा हूँ में।

फिर सत्यदेव ने एक मजदूर की तरफ इशारा करते हुए कहा “और तुम ही थे ना जो उस दिन चोरी करते हुए पकड़े गए थे।

अब दूसरा मजदूर फिर से वीरेंद्र से बोला “अरे बताओ इन्हें हम वर्मा जी के ख़ास हैं”

सत्यदेव ने तैश में कहा “कौन वर्मा जी”

तो मजदूर ने कहा “मंत्री जी”

सत्यदेव अपनी ही रो में बोल पड़ा “रेल विभाग को हम देख रहें हैं .......मंत्री जी नही”

अब सत्यदेव ने धकेल कर मजदूर को वहाँ से हटाने का प्रयास किया।

 उन पाँचों ने तो सत्यदेव की तरफ ध्यान भी नहीं दिया, उनमे से एक बोला “आप हमारे यूनियन लीडर से बात करो हमसे बहस मत करो, हम तो संविदा कर्मी हैं..... तुम्हारी तरह मोटी तनख्वाह नहीं लेते जी, तो फिर भला नखरा क्यूँ झेलें”

 सत्यदेव से अब रहा नहीं गया और वीरेंद्र से बोला “जाओ सिक्योरिट को बुलाओ बाहर करो इन सब को”

इतना सुनते ही वो मजदूर हिंसक हो उठते हैं, और पाँचों सत्यदेव पर पिल पड़ते हैं, इसकी आशा सत्यदेव ने भी नहीं की थी,सत्यदेव का जवान खून था तो वो भी जवाब देता है लेकिन वो पाँच और वो अकेला, क्या करता? वीरेंद्र घबरा कर वहां से सिक्योरिट - सिक्योरिटी चिल्लाते हुए भागता है, जब तक सुरक्षाकर्मी वहाँ पहुँचते हैं वो मजदूर भाग जाते हैं,लेकिन तब तक वो सत्यदेव को काफी चोट पहुंचा देतें हैं.

उन पाँचो मजदूरों के विरुद्ध रिपोर्ट हो जाती है, पुलिस सभी के घरो पर दबिस दे रही हैं. लेकिन अगले ही दिन उन पाँचो मजदूरों का वकील अदालत में उनकी अर्जी दाखिल करता है की वो पाँचो दलित हैं, और शर्मा जी ब्राहमण होने के नाते उनसे चिढ़ते थे,उस दिन भी ये बिचारे अपनी मजदूरी कर रहे थे, वर्दी पहले दिन ज्यादा गन्दी हो गयी थी सो पहनी नहीं थी, इसलिए शर्मा जी ने वर्दी के बहाने इन्हें जाति सूचक शब्द कहते हुए दलित समाज को उल्टा सीधा कहा, और मारपीट तो इन बेचारे दलितों के साथ हुई है. अत: मामला शर्मा जी के साथ मारपीट का नहीं बल्कि दलित उत्पीडन का है, अदालत में वाद स्वीकार कर लिया जाता है और जो पुलिस अब तक उनको पकड़ने को भाग दौड़ कर रही थी अब वो उनके घर जाकर उनके बयान ले रही होती है, उन पाँचों ने अपने शारीर पर पट्टियाँ बंधवाई हुई हैं और अदालत में उनके वकील ने एक मेडिकल सर्टिफिकेट भी लगाया जिसमें प्रमाणित हो गया कि उन्हें काफी गंभीर चोट आयीं हैं।

वो पाँचो मजदूर सत्यदेव के साथ कुछ अज्ञात लोगो के विरुद्ध दलित उत्त्पिडन और जानलेवा हमले की रिपोर्ट करवा देतें हैं।

  अगले ही दिन पता नहीं कहाँ से और कैसे एक बड़ी भीड़ रेलवे के कार्यालय पर पहुँच जाती है और अपने पाँच दलित मजदूर भाइयो के उत्पीडन के विरोध में धरना प्रदर्शन करती है, कई स्थानीय कद्दावर कथित दलित नेता इसका नेतृत्व कर रहे हैं, सोसल मिडिया पर भी ये खबर दलित उत्पीडन का एक ज्वलंत मुद्दा बन चुकी थी.सत्यदेव जो अभी पूरी तरह से ठीक भी नही हुआ था और इन्साफ की बाँट जोह रहा था, अब उल्टा गिरफ्तारी की तलवार उनके सर पर लटक गयी, जगह जगह दलितों के द्वारा हो रहे विरोध प्रदर्शनों से दबाव में आते हुए रेलवे ने भी सत्यदेव को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, सत्यदेव के समझ नहीं आ रह था की ये हो क्या रहा है, शोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर ऐसा प्रोपैगैंडा होता है कि समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों पर भी ये खबर छा जाती है, पुरे देश में वो पाँच दलित चिंतको के लिए पोस्टर बॉय बन जातें हैं और सत्यदेव एक खलनायक।

सत्यदेव ने अपने अधिकारी से इस सम्बन्ध में बात की।

सत्यदेव ने लगभग रुआंसा होकर कहा “सर मैं तो अपना काम कर रहा था इमानदारी से, भला क्या अब इमानदारी से काम करने से भी अपराध और दलित उत्त्पिडन होता है क्या?”

तो अधिकारी ने उन्हें दलित उत्पीड़न का दर्शन समझाया,अधिकारी बोलें “भाई माल चोरी हो रहा था होने देते वो काम नहीं कर रहे थे ना करने देते,वैसे भी यार वो यहाँ मजदूरी करने नहीं चोरी करने ही आते थे, रोज का पाँच दस हज़ार बना लेते हैं ये माल चोरी करके, यार चोरी और नाकारा पन तो वो अब भी करेंगे किसी को उन्हें रोक कर तुम्हारे जैसा हाल थोड़े ही करवाना है, वो विधायक के ख़ास पायें हैं| तुम ठहरे ब्राहमण और वो दलित, यार फंस गए ना अब”

सत्यदेव के समझ नहीं आ रहा था कौन पीड़ित है और कौन शोषक ?

 




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