पिग्गी बैंक
पिग्गी बैंक


मालती पेट पालने के लिये घर-घर बरतन मांजती और उसका पति मजदूरी करता था! उनका एक बेटा भी था, रवि! ऐसे तो बढिया गुजर-बसर हो जाता था उनका! रवि पढने तो नहीं जाता था गरीबी से, पर वो रोज अपनी माँ से एक रुपया ले कर अपने पिग्गी बैंक में डालता था, अपनी माँ से कहता वो बडा होकर इससे एक साईकिल खरीदेगा!
उसका बडा मन करता दुसरे बच्चों को साईकिल चलाते देखकर कि वो भी चलाये! सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक आये इस लाॅकडाऊन ने कमर तोड़ दी थी इनकी!दो वक्त कि रोटी भी मुश्किल से मिलती थी! कोई राशन बांटता तो घंटो लाईन में खडी होकर मालती कैसे भी खाना बनाती, दुसरे टाईम का राशन ना रहता तो खुद आधा पेट खाकर रवि और अपने पति के लिये खाना बचाकर रख देती थी!
एक दिन तो कुछ ना था तो मालती 2000 में अपनी पायल बेच कर राशन ले आयी ,जिससे कई दिन गुजारा हुआ इन लोगों का! फिर से वही हाल, संयोग से आज 4-5 लोग आ गये राशन बांटने, मालती खुश हो गयी कि 4-5 दिन का काम बन गया! जल्दी- जल्दी वो चूल्हा फुंकने लगी, तभी मालती का पति आया, चिल्लाने लगा राशन दे सारा! मालती उसे रोकने को हुई तो वो मालती को मारने लगा और सारा राशन ले कर भाग गया!
वैसे तो ये मार-पीट देखना रवि के लिये आम बात थी, पर लाॅकडाऊन में शराबबंदी से कुछ दिन घर में शांति थी! शराब कि दुकानें जो खुल गयी थी, अब शराबी को क्या मतलब घर में खाना बने या ना, उसे तो बस दारू चाहिए! पापा के जाने के बाद रवि माँ के पास आया और उनके आंसू पोछते हुये बोला, "माँ ये लो पिग्गी बैंक इसके सारे पैसे ले लो, आप कल भी भूखीखी रह गयी थी माँ, मै साइकिल कभी और ले लूंगा"!
मालती रवि को गले से लगा के रोने लगी और बोली, "तू बड़ा हो गया रे मेरे लल्ला"!