फूल और शूल
फूल और शूल




विक्रमपुर गाँव मे नन्दू नाम का एक गरीब और होनहार लड़का रहता था।उसे गुलाब के फूलों से बड़ा लगाव था।उसने अपने घर मे फूलों का बगीचा भी लगा रखा था।उसके पास में एक ज़मींदार का घर था।ज़मीदार का लड़का मोनू नन्दू का ही सहपाठी था।नन्दू जहां फूलो से प्यार करता था,वहीं मोनू फूलों से नफ़रत।नन्दू को फूल लगाना अच्छा लगता था,वहीं मोनू को फूल तोड़ना अच्छा लगता था।नन्दू अक्सर स्कूल में सरस्वती माँ के फूल माला ले जाया करता था।इसके साथ-साथ मोनू पढ़ने में भी होशियार था।सभी अध्यापक उसको बहुत चाहते थे।वहीं मोनू,नन्दू से बड़ा चिढ़ता था।मोनू पढ़ने में भी होशियार नही था।मोनू,नन्दू से बहुत ईर्ष्या करता था।एज बार नन्दू के स्कूल में कोई प्रोग्राम था।उस प्रोग्राम में "फूल औऱ शूल" का एक नाटक भी था।अतः नन्दू के कक्षाध्यापक श्री मोहन जी वर्मा ने नन्दू को शूल सहित गुलाब के फूल लाने को कहा,नन्दू ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और बोला जी,गुरुजी,निर्धारित दिन में शूल सहित गुलाब के फूल लेकर आ जाऊँगा।निर्धारित दिन सोमवार को नन्दू शूल सहित गुलाब के फूल लेकर आ गया।नन्दू के स्कूल में भव्य प्रोग्राम हुआ।सबने नन्दू की बहुत तारीफ़ की।दुर्घटनावश,प्रोग्राम वाले दिन,प्रोग्राम समाप्ति पर मोनू ठोकर खाकर शूल वाले फूलों पर गिर पड़ा।इससे उसके हाथों पर खून निकलने लगा,उसने नन्दू को खूब बुरा-भला कहा।नन्दू,मोनू के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित था।गलती न होने पर भी उसने मोनू से क्षमा मांगी।फिर भी मोनू का गुस्सा शांत न हुआ।वह उचित समय आने पर नन्दू से बदला लेने की सोचने लगा।कुछ दिनों बाद,एकदिन मोनू अपनी साइकिल से स्कूल की ओर आ रहा था।मोनू के घर से स्कूल की ओर रास्ते मे एक जगह ढलान थी।मोनू विचारो में खोया हुआ था,अचानक उसके सामने एक कार आ गई,कार से खुद को बचाने के चक्कर में वो झाड़ियों में गिर पड़ा।और इससे मोनू की साइकिल भी टूट गई थी।नन्दू कुछ फासले पर उसके पीछे ही आ रहा था।उसने मोनू के साथ हुई दुर्घटना को अपनी आंखों से देखा वह दौड़ा हुआ आया।उसने मोनू को उठाया और उसे अपने कंधे का सहारा देकर अस्पताल की ओर ले जाने लगा।क्योकि मोनू के पैर में मोच व खरोंच दोनों आ गई थी,जिससे उसे खड़ा होने में दिक्कत आ रही थी।रास्ते मे ही उन्हें मोनू के पापा ज़मींदार साहब मिल गये।वो बोले "नन्दू बेटा इसके पैर में ये चोट कैसे लगी।"नन्दू बोलता उससे पहले ही मोनू बोला "पापा इसने ही मुझे चलती साईकिल से झाड़ियों में गिराया है,अब ये अच्छे बनने का नाटक कर रहा है और मुझे अस्पताल ले जा रहा है।"मोनू की बात सुनकर,नन्दू की बात सुने बिना ही ज़मींदार ने नन्दू को पीटना शुरू कर दिया।उसे इतना पीटा की वह अधमरा हो गया।उस समय मोनू ताली बजा-बजाकर बहुत खुश हो रहा था।कुछ समय बाद उस रास्ते से ही नन्दू के गुरुजी मोहन जी गुजरे।नन्दू को रास्ते में इस हालत में देखकर उसके गुरुजी मोहन जी वर्मा उसे अस्पताल ले गये।डॉक्टर साहब ने गुरुजी को कहा की इसे ठीक होने में 7 दिन लगेंगे और इसको यहीं भर्ती करना पड़ेगा।गुरुजी ने कहा ठीक है, आप इसे भर्ती करो।में इसके घर मे सूचना दे देता हूं।इसको आते-जाते में देखता रहूंगा।
उधर मोनू के एक,दो दिन तो अच्छे निकले।पर दो दिन बाद धीरे-धीरे उसकी अंतरात्मा उसे कचोटने लगी ।चौथे दिन उसे रात को नींद नही आई,उसके सामने नन्दू का चेहरा बार बार घूमने लगा,जैसे की नन्दू का चेहरा उससे पूछ रहा हो की,"तूने मोनू आखिर मेरे साथ ऐसा क्यों किया?मैंने कौनसा तेरा अहित किया था जो तूने तेरे पापा से मुझे बेरहमी से पिटवाया।" मोनू को अंदर ही अंदर आत्मग्लानि होने लगी।छठे दिन मोनू ने हिम्मत करके उसके पापा को सारी बात स्कूल से लेकर दुर्घटना तक कि एकदम सच-सच बता दी।उसके पापा मोनू पर बहुत गुस्सा हुए।वो मोनू को लेकर तुरन्त अस्पताल की ओर चल दिये।वहां पहले से ही गुरुजी मोहनजी वर्मा,नन्दू के माता-पिता उपस्थित थे।मोनू,आंखों में आंसू भरकर,नन्दू से बोला "यार मुझे माफ़ कर दे।तू वास्तव में एक गुलाब का फूल है।और में दूसरों को तकलीफ़ देनेवाला शूल हूं।" मोनू ने गुरुजी,नन्दू के माता-पिता से भी माफी मांगी।सबने मोनू को पश्चाताप की अग्नि में जलता देखकर उसे माफ कर दिया।नन्दू भी बोला,कोई बात नही यार,बिना शूल के फूल भी अधूरा है।ये नन्दू भी तेरे बिना अधूरा है।दोनों अब मित्र बन चुके थे।दोनों की आंखों में अब दोस्ती के आंसू छलक रहे थे।