फन डे
फन डे
आज पेपर के मुख्य न्यूज़ में था - "होटल पनाज में बड़े स्क्रीन पर लोगों ने भारत पाकिस्स्तान के मैच का आनन्द लेते हुए फादर्स दे जम कर मनाया।"
न्यूज़ पढ़ते ही रामा बाबू अपने आप से बोल पड़े -ओफ्फ ..मैं कितना नालायक हूँ.. आज मैं बच्चों को क्या मुँह दिखाऊँगा.. मुझे दिखावा नहीं पसंद पर करना तो पड़ता है, समाज की खातिर। आखिर हम रहते तो इसी समाज में है।
बेटा और साथ-साथ बहू भी कितने प्यार से समझाई थी - डैड आपको बाबा के पास जाना चाहिए। उनके साथ कुछ समय गुजारना चाहिए। ठीक है वो बड़े चाचा के पास रहते हैं, उन्हें वहीं अच्छा लगता है तो उन्हें वहाँ रहने दीजिए, आप तो वहाँ जा कर उनसे मिल सकते हैं। गाँव का घर सभी का है आपको वहाँ जाने से तो कोई रोक नहीं सकता। चाचा भी नहीं। आपको साफ साफ दिखाई नहीं देता अतः मेरे बिना आप परेशान हो जाते हैं, किन्तु गाँव में बहुत आदमी जन हैं आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
मुझे आज तो वहाँ चले ही जाना चाहिए था। थोड़ी परेशानी तो होती पर मंहगू का बेटा मेरा बहुत खयाल रखेगा ऐसा विश्वास है। बच्चों के इशारा को मैं समझ नहीं पाया। मैं चला जाता तभी तो वो लोग भी अपने मित्रों के संग आज पनाज जैसे होटल में शान से बड़े पर्दे पर भारत पाकिस्तान का मैच देखते और फादर्स डे के रूप में अपने संडे को फन डे के रूप में मनाते।
ओफ्फ ..एक पिता होकर मैंने उनकी प्यार की भावना को नहीं समझा और उनके फादर्स डे को बरबाद कर दिया।
आज हर दिन को एक अनोखा नाम देकर हम उसे अनोखा बना मजे करते हैं।
