Bindiyarani Thakur

Classics Tragedy

4.7  

Bindiyarani Thakur

Classics Tragedy

फैसला

फैसला

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 चार साल के बबलू और नौ महीने की छुटकी को लिए तपस्या जीर्ण शीर्ण हालत में आंगन में बैठी है ।छोटे भाई की शादी है इसी लिए बाऊजी लिवाने गए थे, ससुराल वाले भेजने को तैयार न थे, बड़ी मुश्किल से राजी हुए हैं कि भाभी के गृहप्रवेश होते ही तपस्या भी अगली गाड़ी से वापस आ जाएगी, इसी शर्त पर आने की इजाजत दी है। 

अम्मा से बिटिया की हालत देखी न जा रही है।दोनों ही गले लग कर रोने लगीं, बाऊ जी की आँख भी भर आई है।कहाँ बेटी के सुखद भविष्य का सपना दिखा कर मध्यस्थ ने ये रिश्ता सुझाया था और यहाँ बेटी ऐसी हालत में है कि देखने वाले दुश्मन भी रो दें। 

अम्मा बिटिया को अंदर ले गईं।बच्चों को खिला पिला कर सुलाने के बाद बातों का सिलसिला चल पड़ा। तपस्या जुल्म की दास्तान सुना रही है कैसे बात बात पर उसे प्रताड़ना दी जाती है, सबकुछ उसका पति ही करता है , घर में उसी का हुक्म चलता है, उसके पति के लिए छोटी-छोटी बातों पर हाथ उठाना तो मामूली सी बात है। सब्जी में नमक, मिर्च, का कम या ज्यादा होने जैसी बातों पर भी तपस्या का पति उसे पीट देता है।घर खर्च के लिए भी मामूली रकम ही देता है । दरअसल उसे शक की बीमारी है।अपने साधारण रंग रूप के सामने तपस्या की सुन्दरता जैसे उसे उकसाती है हिंसा करने के लिए,  तपस्या की सुन्दरता जैसे अभिशाप बन गई। विवाह की रात को ही यातनाओं का जैसे एक सिलसिला शुरू हो गया।

माँ तपस्या के चेहरे की झाईंयों को देख रही है हाथ , पैर , पीठ , जो भी खुली जगह है सभी जगह नए पुराने घाव साफ - साफ दिख रहे हैं। फूल सी कोमल बच्ची का क्या हाल कर दिया है! 

अगले दिन से वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो गए साथ ही रिश्तेदारों का आगमन और उनके सवालों का सिलसिला भी ! तपस्या जितना हो सके स्वयं को घर के कामों में व्यस्त रखती और लोगों से बचती रहती है सामने में सब सहानुभूति जताते हैं और पीठ पीछे बातें बनाते हैं! 

कोई कहता है, ससुराल पक्ष पर दहेज और प्रताड़ना का केस कर दो, ज़िन्दगी भर जेल में सड़ते रहेंगे, तो कोई दूसरा, तलाक कराने की सलाह देते हैं, यहीं रहकर कुछ काम कर लेगी हमारी बेटी बोझ थोड़े ही है, तरह तरह की बातें करते हैं मगर आगे आकर किसी ने भी मदद नहीं की और इसी तरह से दिन बीत रहे हैं। 

विवाह की रीति- रिवाजों में एक एक दिन गुजरता जा रहा है और आज भाई की शादी का दिन है भाई बारात लेकर जा रहा है कल घर में दुल्हन आ जाएगी घर में रौनक हो जाएगी और इसी के साथ तपस्या के जाने का निश्चित दिन भी आ गया। धूमधाम से शादी हो गई घर में नई दुल्हन भी आ गई।कल तपस्या ससुराल जाने वाली है, तपस्या के ससुराल से भी उसे लेने के लिए लोग आ गए हैं ।

तपस्या भरे हुए मन से अपना सामान समेट रही है। वो फिर से उस नरक में नहीं जाना चाहती है , पर क्या करे जानती है उसे वापस जाना ही पड़ेगा। यहां रही तो बाबूजी के ऊपर बोझ बनकर रह जाएगी, वैसे भी बाबूजी की आमदनी इतनी अच्छी नहीं है कि तपस्या के साथ बच्चों का भी खर्च वहन कर सकें। भाई की भी अभी अभी गृहस्थी बसी है मेरे रूक जाने से उनके विवाहित जीवन में अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। वैसे भी बच्चों को पिता से दूर रखना भी सही नहीं है, मुझसे जैसा भी व्यवहार करें लेकिन बच्चों को तो चाहते हैं ना!

और अगले दिन तपस्या आँखों में आँसू लिए विदा हो रही थी•••


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